कुल पेज दृश्य

मंगलवार, 13 जनवरी 2015

navgeet: -sanjiv

नवगीत: 

संजीव 
खों-खों करते 
बादल बब्बा 
तापें सूरज सिगड़ी 
आसमान का आँगन चौड़ा 
चंदा नापे दौड़ा-दौड़ा 
ऊधम करते नटखट तारे 
बदरी दादी 'रोको' पुकारें 
पछुआ अम्मा 
बड़बड़ करती 
डाँट लगातीं तगड़ी 
धरती बहिना राह हेरती
दिशा सहेली चाह घेरती  
ऊषा-संध्या बहुएँ गुमसुम 
रात और दिन बेटे अनुपम 
पाला-शीत न 
आये घर में 
खोल न खिड़की अगड़ी
सूर बनाता सबको कोहरा 
ओस बढ़ाती संकट दोहरा
कोस न मौसम को नाहक ही 
फसल लाएगी राहत को ही 
हँसकर खेलें 
चुन्ना-मुन्ना 
मिल चीटी-धप, लँगड़ी  
.... 
 

कोई टिप्पणी नहीं: