kruti-charcha: sanjiv
काव्याभिनंदन: भाव-चन्दन
चर्चाकार: आचार्य संजीव
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[कृति विवरण: काव्याभिनंदन, काव्य संग्रह, संपादक विकास मिश्र, आकार डिमाई, आवरण पेपर बैक, २००६, पृष्ठ ५६, यू.एस.एम. पत्रिका २ बी १३६ नेहरू नगर गाज़ियाबाद २०१००१]
पूत धरा के धरा पर, रहे जमाये पैर
माँ हिंदी को सेवते, वाणी-सुर निर्वैर
माँ हिंदी को सेवते, वाणी-सुर निर्वैर
शंकाएँ निर्मूल कर, वरा सदा विश्वास
कर्मवीर ने कर्म पर, कभी न छोड़ी आस
कर्मवीर ने कर्म पर, कभी न छोड़ी आस
रजनी का तम पी लिया, देकर सृजन-उजास
मिला कलम में ही तुम्हें, ईश्वर का आभास
मिला कलम में ही तुम्हें, ईश्वर का आभास
श्रम-निष्ठा के गीत नित, रचे अनवरत मीत
शब्द-जगत प्रति समर्पण, तुम्हें सुहाई रीत
शब्द-जगत प्रति समर्पण, तुम्हें सुहाई रीत
तरु तुम शाखाएँ हुईं, रचनाएँ-अखबार
जीवन को दे पूर्णता, सरस सृजन-संसार
जीवन को दे पूर्णता, सरस सृजन-संसार
वीतराग-अनुराग मिल, जब जाते हैं खिल
कहे उमाशंकर जगत, सृजन-धार अविकल
कहे उमाशंकर जगत, सृजन-धार अविकल
कवि मित्रों ने समर्पित, किया भाव-चंदन
काव्य पंक्तियों से किया, अर्पित अभिनन्दन
काव्य पंक्तियों से किया, अर्पित अभिनन्दन
छोटे-बड़े सभी खड़े, शब्द-सिपाही साथ
कवितांजलि अर्पित करें, मिला हाथ से हाथ
कवितांजलि अर्पित करें, मिला हाथ से हाथ
पृष्ठभूमि सबकी अलग, किन्तु भाव है एक
वंदन-चंदन समर्पित, उसे रहा जो नेक
वंदन-चंदन समर्पित, उसे रहा जो नेक
मृदुल किन्तु दृढ़ मनस है, संकल्पी है आत्म
सत-शिव-सुंदर सृजन में, देख रहे परमात्म
सत-शिव-सुंदर सृजन में, देख रहे परमात्म
नेह-नर्मदा-नीर ले, आया है संजीव
सफल साधना सुयश दे, कलम बने गांडीव
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सफल साधना सुयश दे, कलम बने गांडीव
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