मुक्तिका:
संजीव
.
घर जलाते हैं दिए ही आजकल
बहकते पग बिन पिये ही आजकल
बात दिल की दिल को कैसे हो पता?
लब सिले हैं बिन सिले ही आजकल
गुनाहों की रहगुजर चाही न थी
हुए मुजरिम जुर्म बिन ही आजकल
लाजवंती है न देखो घूरकर
घूमती है बिन वसन ही आजकल
बेबसी-मासूमियत को छीनकर
जिंदगी जी बिन जिए ही आजकल
आपदाओं को लगाओ मत गले
लो न मुश्किल बिन लिये ही आजकल
सात फेरे जिंदगी भर आँसते
कहा बिन अनुभव किये ही आजकल
...
संजीव
.
घर जलाते हैं दिए ही आजकल
बहकते पग बिन पिये ही आजकल
बात दिल की दिल को कैसे हो पता?
लब सिले हैं बिन सिले ही आजकल
गुनाहों की रहगुजर चाही न थी
हुए मुजरिम जुर्म बिन ही आजकल
लाजवंती है न देखो घूरकर
घूमती है बिन वसन ही आजकल
बेबसी-मासूमियत को छीनकर
जिंदगी जी बिन जिए ही आजकल
आपदाओं को लगाओ मत गले
लो न मुश्किल बिन लिये ही आजकल
सात फेरे जिंदगी भर आँसते
कहा बिन अनुभव किये ही आजकल
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