हास्य
कविता-प्रतिकविता:
ठलुआ-रत्न जयेंद्र जी! आप पहन लें हार
ठलुआ मिला न आप सा मान रहे हम हार
मान रहे हम हार, बनायें ठलुआ-संसद
मैनपुरी में तब हो फिर संजीव बरामद
शिवा करें आतिथ्य, विराजें शिव संग ललुआ
करें मुलायम भी जय-जय जब घेरें ठलुआ
कविता-प्रतिकविता:
"'लल्ला' इस संसार मेँ जितने हुए महान
उन्हेँ बनाने के समय ठलुआ था भगवान!"
उन्हेँ बनाने के समय ठलुआ था भगवान!"
"ठलुआ इस संसार मेँ सबसे ज्यादा व्यस्त
कामकाज वाला दुखी लेकिन ठलुआ मस्त"
कामकाज वाला दुखी लेकिन ठलुआ मस्त"
"फेसबुक के घाट पर भयी ठलुअन की भीर
चलते चारोँ तरफ से तरह तरह के तीर"
चलते चारोँ तरफ से तरह तरह के तीर"
"दुनिया मानेगी सदा ठलुओं का उपकार
ठलुआई की देंन हैं सारे आविष्कार"
ठलुआई की देंन हैं सारे आविष्कार"
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संजीव वर्मा 'सलिल'
ठलुआ मिला न आप सा मान रहे हम हार
मान रहे हम हार, बनायें ठलुआ-संसद
मैनपुरी में तब हो फिर संजीव बरामद
शिवा करें आतिथ्य, विराजें शिव संग ललुआ
करें मुलायम भी जय-जय जब घेरें ठलुआ
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