नवगीत:
संजीव
.
मिल जाइये
खिल जाइये
बढ़ते रहें
चढ़ते रहें
सपने नए
गढ़ते रहें
मुसकाइये
शरमाइये
तकदीर को
पढ़ते रहें
तदबीर भी
करते रहें
मन भाइये
फिर गाइये
.
संजीव
.
मिल जाइये
खिल जाइये
बढ़ते रहें
चढ़ते रहें
सपने नए
गढ़ते रहें
मुसकाइये
शरमाइये
तकदीर को
पढ़ते रहें
तदबीर भी
करते रहें
मन भाइये
फिर गाइये
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