नवगीत:

तरस मत खाओ
अभी भी बहुत दम है
झाड़ कचरा, तोड़ टहनी, बीन पाती
कसेंड़ी ले पोखरे पर नहा, जल लाती
फूँकती चूल्हा कमर का धनु बनाती
धुआँ-खाँसी से न डरती
आँख नम है
बुढ़ाई काया मगर है हौसला बाकी
एक आलू संग चाँवल एक मुट्ठी भर
तोड़ टहनी फूँक चूल्हा पकाये काकी
खिला सकती है तुम्हें
ममता न कम है
***

तरस मत खाओ
अभी भी बहुत दम है
झाड़ कचरा, तोड़ टहनी, बीन पाती
कसेंड़ी ले पोखरे पर नहा, जल लाती
फूँकती चूल्हा कमर का धनु बनाती
धुआँ-खाँसी से न डरती
आँख नम है
बुढ़ाई काया मगर है हौसला बाकी
एक आलू संग चाँवल एक मुट्ठी भर
तोड़ टहनी फूँक चूल्हा पकाये काकी
खिला सकती है तुम्हें
ममता न कम है
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