नवगीत :
जितने मुँह हैं
उतनी बातें
शंका ज्यादा, निष्ठा कम है
कोशिश की आँखें क्यों नम हैं?
जहाँ देखिये गम ही गम है
दिखें आदमी लेकिन बम हैं
श्रद्धा भी करती
है घातें
बढ़ते लोग जमीं कम पड़ती
नद-सर सूखे, वनश्री घटती
हँसे सियासत, जनता पिटती
मेहनत अपनी किस्मत लिखती
दिन छोटा है
लंबी रातें
इंसां कभी न हिम्मत हारे
नभ से तोड़ बिखेरे तारे
मंज़िल खुद आएगी द्वारे
रुक मत, झुक मत बढ़ता जा रे!
खायें मात
निरंतर मातें
***
१३-११-२०१४
१२७/७ आयकर कॉलोनी
विनायकपुर, कानपूर
जितने मुँह हैं
उतनी बातें
शंका ज्यादा, निष्ठा कम है
कोशिश की आँखें क्यों नम हैं?
जहाँ देखिये गम ही गम है
दिखें आदमी लेकिन बम हैं
श्रद्धा भी करती
है घातें
बढ़ते लोग जमीं कम पड़ती
नद-सर सूखे, वनश्री घटती
हँसे सियासत, जनता पिटती
मेहनत अपनी किस्मत लिखती
दिन छोटा है
लंबी रातें
इंसां कभी न हिम्मत हारे
नभ से तोड़ बिखेरे तारे
मंज़िल खुद आएगी द्वारे
रुक मत, झुक मत बढ़ता जा रे!
खायें मात
निरंतर मातें
***
१३-११-२०१४
१२७/७ आयकर कॉलोनी
विनायकपुर, कानपूर
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