नवगीत:

भोर भई पंछी चहके
झूले पत्ते डाली-डाली
मनके तार छेड़कर
गाऊँ राग प्रभाती
कलरव सुन सुन
धूप-छाँव से
करती सुन-गन
दूल्हा गीत
बरात सजाये
शब्द बराती
कहाँ खो गए हो?, आओ!
लाओ, अब तो चैया प्याली
लहराती लट बिखरीं
झूमें जैसे नागन
फागुन को भी
याद तुम्हारी
करती सावन
गाओ गीत
न हमें भुलाओ
भाव सँगाती
हेरूँ-टेरूँ मनका फेरूँ
मनका माला गले लगा ली
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भोर भई पंछी चहके
झूले पत्ते डाली-डाली
मनके तार छेड़कर
गाऊँ राग प्रभाती
कलरव सुन सुन
धूप-छाँव से
करती सुन-गन
दूल्हा गीत
बरात सजाये
शब्द बराती
कहाँ खो गए हो?, आओ!
लाओ, अब तो चैया प्याली
लहराती लट बिखरीं
झूमें जैसे नागन
फागुन को भी
याद तुम्हारी
करती सावन
गाओ गीत
न हमें भुलाओ
भाव सँगाती
हेरूँ-टेरूँ मनका फेरूँ
मनका माला गले लगा ली
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