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बुधवार, 26 नवंबर 2014

navgeet

नवगीत :

नीले-नीले कैनवास पर
बादल-कलम पकड़ कर कोई
आकृति अगिन बना देता है

मोह रही मन द्युति की चमकन
डरा रहा मेघों का गर्जन
सांय-सांय-सन पवन प्रवाहित
जल बूँदों का मोहक नर्तन
लहर-लहर लहराता कोई
धूसर-धूसर कैनवास पर
प्रवहित भँवर बना देता है

अमल विमल निर्मल तुहिना कण 
हरित-भरित नन्हे दूर्वा तृण 
खिल-खिल हँसते सुमन सुवासित
मधुकर का मादक प्रिय गुंजन  
अनहद नाद सुनाता कोई
ढाई आखर कैनवास पर
मन्नत कफ़न बना देता है

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