नवगीत:

वृक्ष ही हमको हुआ
स्टेडियम है
शहर में साधन हजारों
गाँव में आत्मबल
यहाँ अपनापन मिलेगा
वहाँ है हर ओर छल
हर जगह जय समर्थों की
निबल की खातिर
नियम है
गगन छूते भवन लेकिन
मनों में स्थान कम
टपरियों में संग रहते
खुशी, जीवट, हार, गम
हर जगह जय अनर्थों की
मृदुल की खातिर
प्रलय है
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