दोहा सलिला:
कुछ दोहे अनुप्रास के
संजीव
*
अजर अमर अक्षर अमित, अजित असित अवनीश
अपराजित अनुपम अतुल, अभिनन्दन अमरीश
*
अंबर अवनि अनिल अनल, अम्बु अनाहद नाद
अम्बरीश अद्भुत अगम, अविनाशी आबाद
*
अथक अनवरत अपरिमित, अचल अटल अनुराग
अहिवातिन अंतर्मुखी, अन्तर्मन में आग
*
आलिंगन कर अवनि का, अरुण रश्मियाँ आप्त
आत्मिकता अध्याय रच, हैं अंतर में व्याप्त
*
अजब अनूठे अनसुने, अनसोचे अनजान
अनचीन्हें अनदिखे से,अद्भुत रस अनुमान
*
अरे अरे अ र र र अड़े, अड़म बड़म बम बूम
अपनापन अपवाद क्यों अहम्-वहम की धूम?
*
अकसर अवसर आ मिले, बिन आहट-आवाज़
अनबोले-अनजान पर, अलबेला अंदाज़
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कुछ दोहे अनुप्रास के
संजीव
*
अजर अमर अक्षर अमित, अजित असित अवनीश
अपराजित अनुपम अतुल, अभिनन्दन अमरीश
*
अंबर अवनि अनिल अनल, अम्बु अनाहद नाद
अम्बरीश अद्भुत अगम, अविनाशी आबाद
*
अथक अनवरत अपरिमित, अचल अटल अनुराग
अहिवातिन अंतर्मुखी, अन्तर्मन में आग
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आलिंगन कर अवनि का, अरुण रश्मियाँ आप्त
आत्मिकता अध्याय रच, हैं अंतर में व्याप्त
*
अजब अनूठे अनसुने, अनसोचे अनजान
अनचीन्हें अनदिखे से,अद्भुत रस अनुमान
*
अरे अरे अ र र र अड़े, अड़म बड़म बम बूम
अपनापन अपवाद क्यों अहम्-वहम की धूम?
*
अकसर अवसर आ मिले, बिन आहट-आवाज़
अनबोले-अनजान पर, अलबेला अंदाज़
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23 टिप्पणियां:
सभी दोहें अच्छे लगें, अलंकार का प्रयोग मन मुग्ध कर रहा है, बहुत बहुत बधाई आदरणीय आचार्य जी ।
acharya devesh shastri
vah... aapke dogon ka bhashya karna ek shodh prabandh hoga... vastav men maine 15 minit men padh paye... mujhe jaise shahitykar ke liye ukt dohe brahm-nad hain
jaise
अजर अमर अक्षर अमित, अजित असित अवनीश अपराजित अनुपम अतुल, अभिनन्दन अमरीश
ye 12 shabd 12 grantho ka samasik swaroop haim jaise vyakaran ke maheshwar sutron men simita hai . smuchi ashtadhyayi
आलिंगन कर अवनि का, अरुण रश्मियाँ आप्त आत्मिकता अध्याय रच, हैं अंतर में व्याप्त
*
अजब अनूठे अनसुने, अनसोचे अनजान
अनचीन्हें अनदिखे से, अद्भुत रस अनुमान
ye samucha vedant, brahm sutra v vedang hain
*
Shardula Nogaja
शब्दों का खेल कोई आपसे सीखे!
Shashi Bhushan Jauhari
सलिल जी,
बहुत सुन्दर एवम मुश्किल काम, बधाई, कितने सारे शब्द आ के आनन्द, आमोद, अवर्णीय, अनुपम, देने के लिए जमा किये हैं, आभार आपका,और अभिनन्दन
Akhil Vishva ePatrika
आ. सलिल जी, नमस्कार !
अजर अमर अलवेला अन्दाज़
बहुत आनन्द पूर्ण लगे ये दोहे!
आपका परिचय खुल नहीं रहा- पहले बाला है वैसे । चित्र पहले बाला है - नया भेज सकते हैं ।
सादर सप्रेम
गोपाल
With Regards
Gopal Baghel Madhu
Toronto, On., Canada
Canada: 001-416-505-8873
USA Ph.: 001-516-515-6906
Office: 001-647-499-0414
Skype: GlobalFibersCanada
wah wah kya kahne khoob!!
sn Sharma via yahoogroups.com
आ० आचार्य जी ,
अभिनव यमक दोहों की धमक मुग्ध कर गयी ।
एक पूरी घटना को अपने सीमित कलेवर में समेटता
विनोदपूर्ण निम्न-लिखित दोहा विशेष रुचिकर लगा ।
आपकी विद्वता को नमन -
भेज-पाया, खा-हँसा, है प्रियतम सन्देश
सफलकाम प्रियतमा ने, हुलस गहा सन्देश
कमल
आपकी पारखी दृष्टि को नमन.
Ram Gautam
आ. आचार्य सलिल जी;
आपके दोहे पुनः सशक्त और अच्छे लगे, आपको बधाई !!!
सादर- गौतम
आपकी गुण ग्राहकता को नमन.
Mahesh Dewedy via yahoogroups.com
सदैव की भांति उत्कृष्ट दोहे. बधाई सलिल जी.
महेश चंद्र द्विवेदी
Pratap Singh via yahoogroups.com
आदरणीय आचार्य जी
कुछ दोहे अच्छे हैं. किन्तु अधिकतर में सुधार की आवश्यकता है.
चंद, चंद तारों सहित, करे मौन गुणगान
रजनी के सौंदर्य का, जब तक हो न विहान …… बहुत ही सुन्दर दोहा और यमक भी है.
*
जहाँ पनाह मिले वहीं, बस बन जहाँपनाह
स्नेह-सलिल का आचमन, देता शांति अथाह …
प्रथम चरण में जगण दोष है. यमक भी नहीं है. यमक वह होता है जब दो शब्दों का दो या अधिक बार प्रयोग हो और उनका अर्थ भिन्न भिन्न हो. आपने 'जहाँ" का प्रयोग किया जो की एक स्वतंत्र शब्द है. "पनाह" का प्रयोग किया जो कि दूसरा एक स्वतंत्र शब्द है. फिर आपने "जहाँपनाह" का प्रयोग किया जो कि तीसरा एक स्वतंत्र शब्द है.
*
स्वर मधु बाला चन्द्र सा, नेह नर्मदा-हास
मधुबाला बिन चित्रपट, है श्रीहीन उदास ……… इसमे यमक कहाँ है ? उपर्युक्त दोहे की तरह ही प्रयोग है.
*
स्वर-सरगम की लता का,प्रमुदित कुसुम अमोल
खान मधुरता की लता, कौन सके यश तौल ……मुझे अर्थ स्पष्ट नहीं हो पाया।
*
भेज-पाया, खा-हँसा, है प्रियतम सन्देश …. प्रथम चरण में मात्रा दोष है.
सफलकाम प्रियतमा ने, हुलस गहा सन्देश …… तृतीय चरण में विन्यास दोष है.
*
गुमसुम थे परदेश में, चहक रहे आ देश
अब तक पाते ही रहे, अब देते आदेश ……… यमक नहीं है. दूसरे दोहे की तरह ही शब्द को तोड़ा गया है
*
पीर, पीर सह कर रहा, धीरज का विनिवेश
घटे न पूँजी क्षमा की, रखता ध्यान विशेष ……. यह दोहा सुन्दर है. यमक भी है.
*
माया-ममता रूप धर, मोह मोहता खूब
माया-ममता सियासत, करे स्वार्थ में डूब… तृतीय चरण में विन्यास दोष है. यमक भी नहीं है. दूसरी बार प्रयुक्त माया और ममता भले ही दो राजनेत्रियों के नाम हैं किन्तु उनका अर्थ तो वही है जो पहली बार के प्रयोग में है
*
जी वन में जाने तभी, तू जीवन का मोल
घर में जी लेते सभी, बोल न ऊँचे बोल…। यमक नहीं है. शब्द विच्छेदन है.
*
विक्रम जब गाने लगा, बिसरा लय बेताल
काँधे से उतरा तुरत, भाग गया बेताल …। यहाँ भी यमक नहीं है.
सादर
प्रताप
प्रियवर
अलंकार पारिजात, लेखक नरोत्तम दास स्वामी, पृष्ठ १२-१३ देखें: यमक: ' जब शब्द (दो या दो से अधिक) बार आवे और अर्थ प्रत्येक बार भिन्न हो . कभी-कभी पूरा शब्द दुबारा न आकर उस शब्द का कुछ अंश दुबारा आता है, उस अवस्था में भी यमक होता है.
उदाहरण :
१. तीन बेर खाती थीं वे बीन बेर खाती हैं. बेर = बार, बेर नाम का फल
२. बना अतीवाकुल म्लान चित्त को / विदारता था तरु कोविदार को - हरिऔध
३. कुमोदिनी मानस मोदिनी कहीं
४. फूल रहे फूलकर फूल उपवन में
५. पछतावे की परछाई सी तुम भू पर छाई हो कौन
६. फिर तुम तम में मैं प्रियतम में हो जावें द्रुत अंतर्ध्यान
७. यों परदे की इज्जत परदेसी के हाथ बिकानी थी - सुभद्रा कुमारी चौहान
८. रसिकता सिकता सम हो गयी
९. आयो सखि! सावन विरह सरसावन / लग्यो है बरसावन सलिल चहुँ और ते
१०. अली! नित कल्पाता है मुझे कांत हो के / जिस बिन कल पाता है नहीं कान्त मेरा
११. बसन देहु बृज में हमें बसन देहु बृजराज
शेष आप सही मैं गलत, खेद है.
Pratap Singh via yahoogroups.com
आदरणीय आचार्य जी
दोहों में अनुप्रास तो जबरदस्त है किन्तु मुझ जैसे पाठकों के लिए एक, दो को छोड़कर बाकी को समझने के लिए आपके मार्गदर्शन की आवश्यकता होगी।
सादर
प्रताप
sn Sharma via yahoogroups.com
आ० आचार्य जी ,
अ-कार का अद्भुत चमत्कार । आपकी लेखनी को ही ऐसे कमाल की क्षमता प्राप्त है ।
कमल
Mahesh Dewedy via yahoogroups.com
बहुत सुंदर .
महेश चंद्र द्विवेदी
Kusum Vir via yahoogroups.com
आदरणीय आचार्य जी,
वाह !
क्या बात !
अनुप्रास में रचित अद्भुत दोहे !
ढेरों सराहना और हार्दिक शुभकामनाओं के साथ,
सादर,
कुसुम वीर
Shyamal Kishor Jha via yahoogroups.com
बहुत सुन्दर महोदय - आपकी लेखनी को नमन - कुछ दिन पहले मैंने भी कोशिश की थी उसी में से एक दोहा -
सम्भव सपने से सुलभ, सुन्दर-सा सब साल।
समुचित सहयोगी सुमन, सुलझे सदा सवाल।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
achal verma
आपने एक अच्छी सोच पैदा कर दी आचार्य जी ।
मेरे मन में कभी कभी आता है , क्यों न हम सभी मिल कर एक शब्द कोष की रचना करे
जिसमें पहले "अ" अक्षर से आरम्भ होनेवाले सभी शब्द आ जाँए ।और यह सोच वास्तव में
आपकी इस कविता को पढने से पहले , "अक्षरानाम अकारोस्मि" से उत्पन्न हुई थी
जो अबतक प्रस्फ़ुटित नही हुई थी । आपका और सुमन जी का धन्यवाद कि मेरा यह विचार
दृढ हो गया कि ऐसा हो सकता है , यदि हम सब इसमे योगदान करें तो ।
अ
आपका योगदान रहा : ६३ शब्द (आचार्य संजीव सलिल जी के ) ......................................६३
असीम, अवस्था , अस्वस्थ , अपौरुषेय , अपरिचित, अनमोल, अमुल्य
अनाचार, , अगाध, अथाह , अद्वितीय , अटूट , अक्षम, अनभिग्य ,
अभिसंधि , अकृतिम , अवश्य , अवकाश ,अस्मिता, अब, अतएव ,
अतुल , अतुल्य , अमित , अमिताभ , अपरिहार्य , असमर्थ, अनजान । २८ शब्द ।............२८
देखना ये है कि इनमे कोई शब्द दुहराया तो नही गया ।
इन्हें फ़िर क्रम से सजाना होगा और जो दुरूह हों उनका अर्थ भी साथ में बताना होगा कि हम सभी को इसका ज्ञान होता चले , इतना कि ये अपने लगने लगें ।
मैं जानता हूँ कि इसमे समय और परिश्रम तो अवश्य लगेगा , लेकिन कुछ तो नए श्ब्द जो अभी हमने नहीं देखे सुने , जुडते चले जायेंगे । समय तो लगेगा , पर ये असाध्य नहीं है ॥
Deepti Gupta deeptipawas@gmail.com via yahoogroups.com
शिल्प की दृष्टि से तो दोहे सुन्दर है तथा 'अ' वर्ण की आवृति बार-बार होने के कारण अनुप्रास अलंकार की विशेषता भी झलका रहे है लेकिन दोहों को पढ़ते ही जो एकाएक भाव और अर्थ पाठक को स्पष्ट होना चाहिए, वह नहीं हो रहा ! अगर अर्थ समझने के लिए पाठक को जंग करनी पड़े, तो रचना का खूबसूरत कलेवर खाली यानी सार रहित प्रतीत होता है ! या हमारी मन्द बुद्धि अर्थ नहीं समझ पा रही ! हाल ही में प्रताप जी ने काव्य-सृजन की इस तरह की कोटियों के बारे में सोदाहरण लिखा और समझाया था !
सादर,
दीप्ति
वाह ! क्या बात सुमन जी l
कुसुम वीर
Ankur Khanna ankur_khanna98@yahoo.co.uk via yahoogroups.com
अर्थ ......????
क्षमा सहित
सादर
अंकुर
सुमन जी !
आपमें दोहा रचना की अद्भुत क्षमता और समझ है जिसका मैं प्रशंसक हूँ. आपके अनुप्रास के दोहे उत्तम हैं. बहुत बधाई।
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