दोहा सलिला:
संजीव
*
शब्द कौन सा जगत में, जो न तुम्हारा नाम
शब्दहीन है शब्द बन, मैया तेरा धाम
*
अक्षर-अक्षर क्षर हुआ, हो मैया से दूर
शरणागत हो क्षर हुआ, अक्षर अमर अदूर
*
रव बनकर वर दे दिया, गूँजा अनहद नाद
पिंड-मुंड, आकाश-घट, दस दिश नवल निनाद
*
आत्म तुम्हीं परमात्म तुम, तुम ही देह-विदेह
द्वार देहरी आंगना, कक्ष समूचा अगेह
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें