स्मृति आलेख:
उनके छात्र जीवन में जगदीश चन्द्र बोस तथा प्रफुल्ल चन्द्र सेन अपनी ख्याति
के शिखर पर थे. सहपाठियों के रूप में सत्येन्द्र नाथ बोस, ज्ञान घोष तथा
जे. एन. मुखर्जी जैसी प्रतिभाओं का तथा तथा कालांतर में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में
विख्यात गणितज्ञ अमियचरण बनर्जी का साथ उन्हें मिला. साहा ने इलाहाबाद
विश्वविद्यालय में भौतिकी विभाग की स्थापना की. वे अनीश्वरवादी (एथीस्ट)
थे.
वे भारत की विश्व विख्यात विज्ञान-संस्थाओं के जनक थे. उन्हीं की प्रेरणा से १९३० में राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी (National Academy of Science), , १९३४ में इंडियन फिजीकल सोसाइटी, १९३५ में भारतीय विज्ञान संस्थान (Indian Institute of Science), तथा १९४४ में Indian Association for the Cultivation of science की स्थापना हुई. १९४३ में कलकत्ता में स्थापित Saha Institute of Nuclear physics उनके महत्वपूर्ण कार्य के प्रति राष्ट्र की ओर से व्यक्त कृतज्ञता का स्मारक है. वे नदी-नियोजन के प्रमुख वास्तुविद थे. दामोदर घाटी परियोजना का मूल प्रस्ताव उन्हीं ने तैयार किया था. मेघनाद साहा का नाम १९३५-३६ में नोबल पुरस्कार हेतु एस्ट्रोफिजिस्ट के रूप में नामांकित किया गय. यह गौरव पानेवाले वे एकमात्र भारतीय हैं. १९५२ में उन्हें उत्तर-पश्चिम कलकत्ता क्षेत्र से सांसद चुन गया. वे परमाण्विक ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग के पक्षधर तथा भारतीय नीति के निर्माता थे. वे भारतीय राष्ट्रीय कैलेण्डर निर्धारण समिति के अध्यक्ष थे. उन्हीं के प्रयास से राष्ट्रीय कैलेण्डर का निर्धारण बिना किसी विवाद के हो सका. १६ फरवरी १९५६ को हृदयाघात से उनके निधन से भारत ही नहीं विश्व ने एक प्रतिभा संपन्न वैज्ञानिक खो दिया.
समर्पित भौतिकीविद डॉ. मेघनाद साहा
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
आधुनिक विज्ञान के उन्नयन में भौतिकी का तथा भौतिकी के उन्नयन में डॉ. मेघनाद साहा का योगदान अनन्य
है. एस्ट्रोफिजिक्स के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य कर डॉ. मेघनाद साहा ने
स्पेक्ट्रल लाइन्स की उपस्थिति की व्याख्या हेतु विश्व विख्यात 'ओयोनाइजेशन फार्मूला'
दिया। बांगला देश स्थित ढाका जिले के शाओराटोली गाँव में एक निर्धन परिवार में ६ अक्तूबर
१८९३ को बंगाली कायस्थ श्री जगन्नाथ साहा तथा श्रीमती भुवनेश्वरी देवी के आँगन में ऐसा
पुष्प खिला जिसने अपनी मेधा की सुगंध से सकल जगत में अपना नाम किया। उनके
पिता एक छोटे से किराना व्यापारी थे जो बहुत कठिनाई से अपने परिवार को पाल
पाते थे. बालक मेघनाद की शिक्षा गाँव की पाठशाला से आरम्भ हुई. डॉ. अनंत कुमार
दास ने उनकी प्रतिभा को पहचानकर उनके आवास-भोजन का प्रबंध किया और वे १०
किलोमीटर दूर शिक्षा अर्जन कर ढाका कोलेजिएट स्कूल तथा ढाका कोलेज में आगे शिक्षा ग्रहण कर सके. वे आजीवन डॉ. दास द्वारा समय पर की गयी इस सहायता के
प्रति आभार तथा कृतज्ञता व्यक्त करते थे.
मेघनाद साहा ने किशोरीलाल जुबली स्कूल में प्रवेश लेकर १९०९ में
कलकत्ता विश्वविद्यालय की एंट्रेंस परीक्षा भाषा समूह (अंग्रेजी, बंगाली,
संस्कृत) तथा गणित में सर्वाधिक अंकों सहित उत्तीर्ण की तथा समूचे पूर्व
बंगाल में प्रथम स्थान पाया. १९११ में इंटर साइंस परीक्षा में वे तृतीय
स्थान पर रहे जबकि प्रथम स्थान पर रहे सत्येन्द्र नाथ बोस बाद में विश्व
विख्यात वैज्ञानिक हुए. १९१३ में उन्होंने प्रेसिडेंसी कोलेज कलकत्ता से
गणित मुख्य विषय लेकर स्नातक परीक्षा में द्वितीय स्थान पाया। १९१५ में एम.
एससी. परीक्षा में मेघनाद साहा एप्लाइड मैथेमैटिक्स में तथा सत्येन्द्र
नाथ बोस प्योर मैथेमैटिक्स में प्रथम स्थान पर रहे.
वर्ष
१९१७ में कलकत्ता में नए प्रारंभ यूनिवर्सिटी कोलेज ऑफ़ साइंस में
व्याख्याता के रूप में श्री साहा ने कार्य आरम्भ कर क्वांटम फिजिक्स का
शिक्षण किया. उन्होंने सत्येन्द्र नाथ बोस के साथ मिलकर रिलेटिविटी पर
आइन्सटाइन तथा हरमन मिंकोवस्की के अंग्रेजी में प्रकाशित शोधपत्र का
अंग्रेजी में अनुवाद किया. वर्ष १९१९ में अमेरिकन एस्ट्रोफिजिक्स जर्नल में
उनका शोधपत्र “On Selective Radiation Pressure and its Application”
प्रकाशित हुआ. इसमें उन्होंने स्पेक्ट्रल लाइन्स की उपस्थिति की व्याख्या
करते हुए 'तत्वों के ऊष्मीय आयनीकरण' (थर्मल आयोनाइजेशन ऑफ़ एलिमेंट्स) का
सिद्धांत प्रतिपादित कर 'साहा समीकरण' प्रस्तुत किया जो एस्ट्रोफिजिक्स के
क्षेत्र में मील का पत्थर सिद्ध हुआ. यह समीकरण तारों के स्पेक्ट्रा के आगामी अध्ययन हेतु आधार बना जिससे शोधकर्ता तारों का तापमान तथा
उनका निर्माण करनेवाले तत्वों का पता कर सके. उन्होंने २ वर्षों तक
इम्पीरियल कोलेज लन्दन तथा रिसर्च लेबोरेटरी जर्मनी में शोध कार्य किया. वे
१९२३ से १९३८ तक इलाहाबाद विश्व विद्यालय में प्राध्यापक तथा तत्पश्चात
१९५६ में निधन तक कलकत्ता विश्व विद्यालय में साइंस फैकल्टी के डीन रहे.
लन्दन की रॉयल सोसायटी ने १९२७ में उन्हें फेलो चुनने का असाधारण गौरव
प्राप्त किया. १९३४ में भारतीय विज्ञान कांग्रेस अपने २१ वें सत्र में
उन्हें अध्यक्ष की आसंदी पर पाकर गौरवान्वित हुई. उन्होंने पत्रिका 'साइंस एंड कल्चर' की स्थापना कर आजीवन सम्पादन किया.
वर्ष
१९३२ में मेघनाद साहा ने इलाहाबाद में उत्तर प्रदेश एकेडमी ऑफ़ साइंस की
स्थापना की. १९३८ में वे साइंस कोलेज कलकत्ता में आणविक भौतिकी (Nuclear
physics) के क्षेत्र में कार्य किया. कालांतर में विज्ञान के उच्च अध्ययन
एवं शोध हेतु यह संस्था उन्हीं के नाम पर 'साहा इंस्टीटयूट ऑफ़ न्यूक्लिअर
फिजिक्स' के नाम से विख्यात हुई. उन्हीं की पहल पर विदेशों में परमाण्विक
भौतिकी संबंधी शोधों हेतु प्रयुक्त सायक्लोट्रोंन (cyclotrons) पहले-पहल
१९५० भारत में लाया गया तथा इस संस्था में इस पर शोध कार्य किये गये.
उन्होंने सौर किरणों का वज़न तथा दबाव मापने हेतु एक यंत्र का अविष्कार किया
जिसे बहुत सराहना मिली. उन्होंने विश्व प्रसिद्ध ‘equation of the
reaction-isobar for ionization’ की खोज की जिसे कालांतर में Saha’s
“Thermo-Ionization Equation” के नाम से प्रसिद्धि मिली.उल्लेखनीय कार्य कर डॉ. मेघनाद साहा ने
स्पेक्ट्रल लाइन्स की उपस्थिति की व्याख्या हेतु विश्व विख्यात 'ओनाइजेशन फार्मूला'
दिया।
वे भारत की विश्व विख्यात विज्ञान-संस्थाओं के जनक थे. उन्हीं की प्रेरणा से १९३० में राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी (National Academy of Science), , १९३४ में इंडियन फिजीकल सोसाइटी, १९३५ में भारतीय विज्ञान संस्थान (Indian Institute of Science), तथा १९४४ में Indian Association for the Cultivation of science की स्थापना हुई. १९४३ में कलकत्ता में स्थापित Saha Institute of Nuclear physics उनके महत्वपूर्ण कार्य के प्रति राष्ट्र की ओर से व्यक्त कृतज्ञता का स्मारक है. वे नदी-नियोजन के प्रमुख वास्तुविद थे. दामोदर घाटी परियोजना का मूल प्रस्ताव उन्हीं ने तैयार किया था. मेघनाद साहा का नाम १९३५-३६ में नोबल पुरस्कार हेतु एस्ट्रोफिजिस्ट के रूप में नामांकित किया गय. यह गौरव पानेवाले वे एकमात्र भारतीय हैं. १९५२ में उन्हें उत्तर-पश्चिम कलकत्ता क्षेत्र से सांसद चुन गया. वे परमाण्विक ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग के पक्षधर तथा भारतीय नीति के निर्माता थे. वे भारतीय राष्ट्रीय कैलेण्डर निर्धारण समिति के अध्यक्ष थे. उन्हीं के प्रयास से राष्ट्रीय कैलेण्डर का निर्धारण बिना किसी विवाद के हो सका. १६ फरवरी १९५६ को हृदयाघात से उनके निधन से भारत ही नहीं विश्व ने एक प्रतिभा संपन्न वैज्ञानिक खो दिया.
आत्म मूल्यांकन :
प्रायः वैज्ञानिकों पर हाथी दांत की मीनार में रहने और सचाइयों को न स्वीकारने का आरोप लगाया जाता है. अपने कीमती वर्षों में राजनैतिक आंदोलनों से जुडाव के बावजूद १९३० तक मैं ऐसी मीनार में रहा किन्तु वर्तमान में प्रशासन के लिए विज्ञान भी शांति-व्यवस्था की तरह आवश्यक है. मैं क्रमशः राजनीति की ओर झुका क्योंकि मैं अपने तरीके से देश के किसी काम आना चाहता था.
प्रायः वैज्ञानिकों पर हाथी दांत की मीनार में रहने और सचाइयों को न स्वीकारने का आरोप लगाया जाता है. अपने कीमती वर्षों में राजनैतिक आंदोलनों से जुडाव के बावजूद १९३० तक मैं ऐसी मीनार में रहा किन्तु वर्तमान में प्रशासन के लिए विज्ञान भी शांति-व्यवस्था की तरह आवश्यक है. मैं क्रमशः राजनीति की ओर झुका क्योंकि मैं अपने तरीके से देश के किसी काम आना चाहता था.
- श्रृद्धांजलि:
- डॉ. जयंत विष्णु नार्लीकर: मेघनाद साहा का आयनीकरण समीकरण जिसने स्टेलर एस्ट्रोफिजिक्स का द्वार खोला २० वीं सदी की दस महत्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक है किन्तु नोबल पुरस्कार श्रेणी में नहीं चुना जा सका.
- एस. रोज़लैंड: साहां के कार्य द्वारा एस्ट्रोफिजिक्स को मिले महत्त्व का अधिमूल्यन संभव है क्योंकि पश्चातवर्ती काल में हुई समस्त प्रगति साहा की अवधारणाओं से प्रभावित है.
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