हास्य रचना 
 
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गंगाराम गए ससुराल 
आवभगत से हुए निहाल 
      बन कर आए गरम पकौडे 
      खाए छक कर एक न छोडे 
खा कर चहके गंगाराम 
सासू जी इसका क्या नाम 
       अच्छे लगे और लो थोड़े 
       लल्ला इसका नाम पकौडे 
गद गद लौटे गंगाराम 
घर पहुंचे तो भूले नाम 
        हुए भुलक्कड़पन से बोर 
        पत्नी पर फिर डाला जोर 
भागवान तू वही बाना दे 
जो खाए ससुराल खिला दे 
        बेचारी कुछ समझ न पाई 
       फिर बोली जिद से खिसियाई 
अरे पहेली नहीं बुझाओ 
जो खाया सो नाम बताओ 
       गंगाराम को आया गुस्सा 
       खीँच धर दिया नाक पे मुक्का 
गुस्सा उतरा लगे मनाने  
तब पत्नी ने मारे ताने 
         ऐसी भी मेरी क्या गलती 
         तुमने नाक पकौड़ा कर दी 
बोला अरे यही खाया था 
पहले क्यों नहीं बताया था 
          सीधे से गर बना खिलाती 
          नाक पकौड़ा क्यों हो जाती  ?
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sn Sharma via yahoogroups.com  | 
 
 
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