मुक्तक सलिला :
बेटियाँ
संजीव
*
आस हैं, अरमान हैं, वरदान हैं ये बेटियाँ
सच कहूँ माता-पिता की शान हैं ये बेटियाँ
पैर पूजो या कलेजे से लगाकर धन्य हो-
एक क्या दो-दो कुलों की आन हैं ये बेटियाँ
*
शोरगुल में कोकिला का गान हैं ये बेटियाँ
नदी की कलकल सुरीली तान हैं ये बेटियाँ
माँ, सुता, भगिनी, सखी, अर्धांगिनी बन साथ दें-
फूँक देतीं जान देकर जान भी ये बेटियाँ
*
मत कहो घर में महज मेहमान हैं ये बेटियाँ
यह न सोचो सत्य से अनजान हैं ये बेटियाँ
लेते हक लड़ के हैं लड़के, फूँक भी देते 'सलिल'-
नर्मदा जल सी, गुणों की खान हैं ये बेटियाँ
*
ज़िन्दगी की बन्दगी, पहचान हैं ये बेटियाँ
लाज की चादर, हया का थान हैं ये बेटियाँ
चाहते तुमको मिले वरदान तो वर-दान दो
अब न कहना 'सलिल कन्या-दान हैं ये बेटियाँ
*
सभ्यता की फसल उर्वर, धान हैं ये बेटियाँ
महत्ता का, श्रेष्ठता का भान हैं ये बेटियाँ
धरा हैं पगतल की बेटे, बेटियाँ छत शीश की-
भेद मत करना, नहीं असमान हैं ये बेटियाँ
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बेटियाँ
संजीव
*
आस हैं, अरमान हैं, वरदान हैं ये बेटियाँ
सच कहूँ माता-पिता की शान हैं ये बेटियाँ
पैर पूजो या कलेजे से लगाकर धन्य हो-
एक क्या दो-दो कुलों की आन हैं ये बेटियाँ
*
शोरगुल में कोकिला का गान हैं ये बेटियाँ
नदी की कलकल सुरीली तान हैं ये बेटियाँ
माँ, सुता, भगिनी, सखी, अर्धांगिनी बन साथ दें-
फूँक देतीं जान देकर जान भी ये बेटियाँ
*
मत कहो घर में महज मेहमान हैं ये बेटियाँ
यह न सोचो सत्य से अनजान हैं ये बेटियाँ
लेते हक लड़ के हैं लड़के, फूँक भी देते 'सलिल'-
नर्मदा जल सी, गुणों की खान हैं ये बेटियाँ
*
ज़िन्दगी की बन्दगी, पहचान हैं ये बेटियाँ
लाज की चादर, हया का थान हैं ये बेटियाँ
चाहते तुमको मिले वरदान तो वर-दान दो
अब न कहना 'सलिल कन्या-दान हैं ये बेटियाँ
*
सभ्यता की फसल उर्वर, धान हैं ये बेटियाँ
महत्ता का, श्रेष्ठता का भान हैं ये बेटियाँ
धरा हैं पगतल की बेटे, बेटियाँ छत शीश की-
भेद मत करना, नहीं असमान हैं ये बेटियाँ
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16 टिप्पणियां:
Kirti Vardhan
vah vah salil ji vah
डॉ अ कीर्तिवर्धन
विद्यालक्ष्मी निकेतन
53 -महालक्ष्मी एन्क्लेव ,
मुज़फ्फरनगर -251001 ( उत्तर प्रदेश )
08265821800
a.kirtivardhan@gmail.com
अ.भा. हिंदी विकास संस्था
बहुत हि सुंदर
bahut hi sunder muktak nikaale hain aapne.....
bahut bahut badhaai aapko.....
ज़िन्दगी की बन्दगी, पहचान हैं ये बेटियाँ
लाज की चादर, हया का थान हैं ये बेटियाँ
चाहते तुमको मिले वरदान तो वर-दान दो
अब न कहना 'सलिल' कन्या-दान हैं ये बेटियाँ
bahut hi sunder muktak
Mahesh Dewedy via yahoogroups.com
बेटियोँ को परिभाषित करती सार्थक रचना. बधाई.
पढ़कर उर्मिलेश शंखधार की स्मृति हो आई.
महेश चंद्र द्विवेदी
Achal Verma
आ. आचर्य सलिल जी,
सर झुकाता हर पिता, भ्राता , और बेटा कवि-प्रवर
हर पति के लिए होती दोस्त साथी रहगुजर
धन्य है मस्तिष्क जिसकी सोच इतनी भव्य है
शब्द भी हैं भाव भी और सबसे बढकर काव्य है ॥
Shriprakash Shukla via yahoogroups.com
आदरणीय आचार्य जी,
इस अद्भुत रचना के लिये ढेर सी बधाई स्वीलर करें ।
सादर
श्रीप्रकाश शुक्ल
Pratap Singh via yahoogroups.com
आदरणीय आचार्य जी
बहुत ही सुन्दर भावाभिव्यक्ति !
काश यही भावनाएं सभी लोगों के अन्दर पैदा हो जातीं। खासकर उत्तरी भारत के लोगो में जहां बहुत सी जगहों पर अभी भी बेटियों के पैदा होने पर लोग दुखी हो जाते हैं.
सादर
प्रताप
Kusum Vir via yahoogroups.com
अति सुन्दर मुक्तक आ० आचार्य जी,
सादर,
कुसुम वीर
Dr.M.C. Gupta via yahoogroups.com
बहुत सुंदर है.
--ख़लिश
sn Sharma via yahoogroups.com
आ० आचार्य जी,
बेटियों पर अत्यंत सार्थक और प्रेरणास्पद मुक्तकों के लिये
ढेर सराहना के साथ बधाई । विशेष -
ज़िन्दगी की बन्दगी, पहचान हैं ये बेटियाँ
लाज की चादर, हया का थान हैं ये बेटियाँ
चाहते तुमको मिले वरदान तो वर-दान दो
अब न कहना 'सलिल कन्या-दान हैं ये बेटियाँ
कमल
Ankur Khanna ankur_khanna98@yahoo.co.uk via yahoogroups.com
आदरणीय संजीव सलिल जी,
आपके 'बेटियाँ' मुक्तक कमाल के बने हैं|
पैर पूजो या कलेजे से लगाकर धन्य हो-
एक क्या दो-दो कुलों की आन हैं ये बेटियाँ
शोरगुल में कोकिला का गान हैं ये बेटियाँ
नदी की कलकल सुरीली तान हैं ये बेटियाँ
बहुत ही उत्तम भाव हैं |
नर्मदा जल सी, गुणों की खान हैं ये बेटियाँ
ज़िन्दगी की बन्दगी, पहचान हैं ये बेटियाँ
लाज की चादर, हया का थान हैं ये बेटियाँ
चाहते तुमको मिले वरदान तो वर-दान दो
अब न कहना 'सलिल कन्या-दान हैं ये बेटियाँ
बहुत ही दिलकश पंक्तियाँ है | एक -एक पंक्ति में भाव मोती से जड़े हुए है |
मेरे पास इस खूबसूरत रचना के लिए इसके वज़न जितने शब्द नहीं हैं |
भरपूर सराहना के साथ,
सादर,
अंकुर
Ram Gautam
आ. आचार्य संजीव 'सलिल' जी,
"एक क्या दो-दो कुलों की आन हैं ये बेटियाँ" बहुत सुंदर और
सार्थक मुक्तक लगे | आपको बधाई और साधुवाद !!!!
सादर - गौतम
Pranava Bharti via yahoogroups.com
आ. सलिल जी !
बेटियों की शान में क्या शान लिख दी आपने !
बेटियों के नाम सब सौगात कर दी आपने !!
साधुवाद
सादर
प्रणव
akpathak akpathak317@yahoo.co.in via yahoogroups.com
आ० सलिल जी
बहुत अच्छे व सार्थक मुक्तक लिखे आप ने "बेटियों " के नाम
बधाई
A K pathak Jaipur
+919413395592
manju bhatnagar via yahoogroups.com
आद. सलिल जी,
निशब्द कर दिया आपने, बेटियों को इतने अच्छी तरह से समझने वाले, उनको
इतना मान-सम्मान देने वाले विरले ही होते हैं....बहुत ही सुंदर शब्दों
में भावों से सुगठित कविता, अभिनंदनीय है...बधाई...
मैंने भी कुछ पंक्तियाँ विश्व की सभी बेटियों को शुभकामनाएँ देते हुए
लिखी हैं, जो मैं यहाँ साझा कर रही हूँ,पर इसमें ऐसा कुछ विशेष नहीं
है....
बेटियाँ
बेटियाँ हैं हम
झरने सी खिलखिलाती
फूलों सी मुस्काती
कोयल सी कूकती ।
सागर सा मन जिनका ,
पंछी सी है दिल की उड़ान|
पर चट्टान सी अटल ,
थामे जो हर तूफान|
नहीं निरीह हम
सकती हैं पलट
विधी का विधान |
पीढ़ी दर पीढ़ी किया है
विकसित अपने को,
संघर्ष कर बड़ी मुश्किल से,
बनाई है आज अपनी पहचान
बेटियाँ हैं हम
केवल सृष्टि नहीं
विश्व की सृष्टा भी.
---मंजु महिमा
२२/९/२०१३
मंजु जी
सारगर्भित रचना हेतु बधॆ. आपकी सहृदयता को नमन .
बच्चा मानव का पिता, कहते हैं हम-आप
मानवता की माँ रही, बेटी सबमें व्याप
जो सच से अनजान हैं, कर-पाते अपमान
बिटिया में माँ देखते, विरले चतुर सुजान
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