चित्र पर गीत :
बाँसुरी मैं.….
संजीव 'सलिल'
*
बाँसुरी मैं ,
मैं तुम्हारी बाँसुरी की धुन.
तुम बजाओ,
लीन होकर मैं रही हूँ सुन…
*
कुछ कहे जग हमें क्या ?
हम तुम हुए जब एक.
एक दूजे का सहारा
तजें ना है टेक.
तुम कमल,
तुम भ्रमर,
तुम घनश्याम,
तुम पावस.
द्वैत तज, अद्वैत वर
मैं-तुम हुए हम गुन…
*
मूक है विधि, तो रहे
संसार सूर समान.
जो सबल उसका करे जग
निबल बनकर गान.
मैं नहीं मैं,
तुम नहीं तुम,
मिल हुए
हमदम.
दूरियाँ वर निकटता का
स्वप्न सकते बुन…
*
मुझमें तुम हो,
तुम हो मुझमें.
तुम ह्रदय में,
तुम नयन में.
दीप्ति तुम,
तुम दीप.
तुम मुक्ता,
तुम्हीं हो सीप.
सलिल सलिला किसने
किसको कब लिया है चुन…
*
12 टिप्पणियां:
Mahipal Tomar via yahoogroups.com
संजीव जी,
बधाई
इस "लघु-सी,पर विशाल" प्रस्तुति के लिए ।
सादर, शुभेच्छु,
महिपाल
अनुज को मिला अग्रजाशीष
सदय हैं सचमुच महा महीश
Sitaram Chandawarkar viayahoogroups.com
chandawarkarsm@gmail.com
आदरणीय आचार्य ’सलिल’ जी,
अति सुंदर!
कविवर रविन्द्रनाथ ठाकुर की पंक्तियां याद आयीं:
"तुमि केमॉन कॉरे गान कोरो जे गुणी
ओबाक होये शुनि, केबॉल शुनि"
(तुम कैसे गाते हो, हे गुणी
अवाक हो सुनता हूं केवल सुनता हूं)
सस्नेह
सीताराम चंदावरकर
मिला अनुराग हो गया धन्य
संग गुणियों का सत्य अनन्य
Santosh Bhauwala via yahoogroups.com
आदरणीय संजीव जी ,
बहुत सुंदर गीत है साधुवाद !
संतोष भाऊवाला
आपको रुचा हुआ संतोष
न रीते सद्भावों का कोष
sn Sharma via yahoogroups.com
आ० आचार्य जी,
उत्तम कविता उत्तम कल्पना उत्तम प्रस्तुति,
साधुवाद
तुम्ही हो सलिल
तुम्ही साहिल
सृजनकर्ता तुम
तुम्ही हो सृजन
दीप तुम्ही हो
प्रीत तुम्ही हो
नीर नर्मदा तुम
शुद्ध काव्यकला तुम
इस अकिंचन के ह्रदय की
बांसुरी की तुम्ही धुन
धन्य हो रहे हम सुन सुन
तुम्हारे गीतों के गुन गुन
कमल
श्रेष्ठ-ज्येष्ठ आशीष लुटाकर
तृप्त करें मन-प्राण
लगता तब मृण्मय जगत
मुस्काता सम्प्राण
ksantosh_45@yahoo.co.in via yahoogroups.com
आ० सलिल जी,
अति सुन्दर रचना।
बहुत-बहुत बधाई।
सन्तोष कुमार सिंह
दे सका पठनीय कुछ,
सार्थक हुआ कवि कर्म.
है यही संतोष-
पाया निभा मैं युग-धर्म।
Mukesh K. Tiwari via yahoogroups.com
mukuti@gmail.com
आ. आचार्य जी,
सुन्दर चित्र की तरह ही भावविभोर करती हुई कविता. ..
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
अलौकिक अनुभूति लेकर चित्र यह आया
थमा कर में कलम कवि से गीत रचवाया
कर रहे उत्साहवर्धन सुहृद दे आशीष -
धन्यता अनुभव हुई, संदेश जब पाया
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