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गुरुवार, 15 अगस्त 2013

azadi ka Alha : Bairagi

Amitabh Tripathi <amitabh.ald@gmail.com>

 आज़ादी का आल्हा
 
एक मेरी ही तरह राज्यकर्मचारी जिन्होने यह आल्हा लिखा है। इसे बैरागी के छद्मनाम से प्रस्तुत कर रहा हूँ।

आजादी का दिवस आ गया फिर से होगी जयजयकार।
लाल किले पर फहरायेंगे झण्डा स्वामिभक्त सरदार॥
भानुमती के कुनबे के हैं सबसे ऊँचे सिपहसलार।
करें बंदगी साँझ सवेरे माता जी हैं प्राण - आधार॥
दस वर्षों के महाकाल में किया देश का खस्ताहाल।
रुपया डूब रसातल पहुँचा लेकिन कुनबा मालामाल॥
हुये घोटालों पर घोटाले फिर घोटालों की पड़्ताल।
कोर्ट कचेहरी दिन दो दिन की रहे रूपया सालों साल॥
है शहीद होने पर अपने वीरों को भारी अफ़सोस।
गदहे सभी पँजीरीं फाँके नौ दिन चलें अढ़ाई कोस॥
उनकी स्मृतियों को बिसार कर करते हैं सब गर्दभ गान।
और दुलत्ती एक दूसरे को देकर करते जलपान॥
सीमा पर ऐसी तैयारी देखी हमने अबकी सा्ल।
अपने घर हमें घूमने से ही रोके पूँजी लाल॥
एक पड़ोसी सीमा में घुस मारे अपने वीर जवान।
और हमारे नेता जी के मुख पर पंचशील मुस्कान॥
इनकी बात यहीं पर छोड़ें चलिये अवधपुरी दरबार।
सत्ता पर बच्चा बैठा कर चाचा ताऊ करें शिकार॥
लूट खसोट बढ़ रही प्रतिदिन कोई करे कहाँ फरियाद।
बाहुबली सब बाँह सिकोड़े चौराहों पर करें फसाद॥
है ईमान मुअत्तल देखो भ्रष्ट फिर रहे सीना तान।
अन्धे की रेवड़ी बना कर बाँट रहे पदवी-सम्मान॥
लैपटाप का कर्जा सिर पर बिजली का भरा न जाय।
सूबे के आला वज़ीर की गिनती करते सर चकराय॥
जातिवाद औऽ सम्प्रदाय के वोट बैंक का सब नुकसान।
उठा रहा है देश वृहत्तर कुछ लोगों की चली दुकान॥
यही दशा यदि रही बहुत दिन मित्रो! जरा दीजिये ध्यान।
आज़ादी पर संकट है यह विफल राष्ट्र का है अभियान॥
स्वतन्त्रता-दिन के अवसर पर इतना ले यदि मन में ठान।
अगली बार उन्हें चुनना है जिन्हें देश की हो पहचान॥
घोर निराशा के बादल हैं राष्ट्र क्षितिज पर चारों ओर।
फिर भी यही कामना अपनी ना्चे आज़ादी का मोर॥

-बैरागी

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