गीत:
किरण कब होती अकेली…
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किरण कब होती अकेली…
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किरण कब होती अकेली?, नित उजाला बांटती है
जानती है सूर्य उगता और ढलता, उग सके फिर
सांध्य-बेला में न जगती भ्रमित होए तिमिर से घिर
चन्द्रमा की कलाई पर, मौन राखी बांधती है
चांदनी भेंटे नवेली
किरण कब होती अकेली…
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किरण कब होती अकेली…
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मेघ आच्छादित गगन को देख रोता जब विवश मन
दीप को आ बाल देती, झोपड़ी भी झूम पाए
भाई की जब याद आती, सलिल से प्रक्षाल जाए
साश्रु नयनों को, करे पुनि निज दुखों का आचमन
वेदना हो प्रिय सहेली
किरण कब होती अकेली…
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किरण कब होती अकेली…
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पञ्च तत्वों में समाये, पञ्च तत्वों को सुमिरती
तीन कालों तक प्रकाशित तीन लोकों को निहारे
भाईचारा ही सहारा, अधर शाश्वत सच पुकारे
गुमा जो आकार हो साकार, नभ को चुप निरखती
बुझती अनबुझ पहेली
किरण कब होती अकेली…
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किरण कब होती अकेली…
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salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in
3 टिप्पणियां:
kusum sinha
priy sanjiv jee
bahut hi sundar kavita badhai aapke kavitwa ko
आपको कविता सुहाई, धन्य मेरा भाग
प्रभु कृपा से सत्य के प्रति हो सुदृढ़ अनुराग
Kiran Sinha
Adarniye Sanjiv ji,
'Bahan' ka itna bada maan diya, achha laga. bahut bahut dhanyavaad. hamara yah parivaar sachmuch bahut bada hai jis par garv hota hai.
sadar
Kiran Sinha
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