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शुक्रवार, 19 जुलाई 2013

shram ko naman

 कविता:
श्रम को नमन

हमीरपुर जिले के बदनपुर गांव की फूलमती बुंदेलखंड की धरती पर वह कर रही हैं , जिसे देखकर पुरुष भी दांतों तले उंगली दबा लेते हैं। इतनी पढ़ी लिखी तो हैं नहीं कि पायलट बन सकें , लेकिन ऊपर वाले ने बाजुओं में वो ताकत जरूर दी है कि सम्मानपूर्वक परिवार का पालन-पोषण कर सकें। पति नशेबाज व अकर्मण्य निकला तो वह प्रतिदिन हमीरपुर से बदनपुर के बीच रिक्शा चलाकर सवारियां ढोती हैं ...! सलाम माँ भारती की इस माता को ... सलाम इनके जज्बे को ..!

कम किसी से हम रहें, कर सकते हर काम
कहें रहे क्यों क्यों पुरुष का, किसी कार्य हित नाम

शर्म न, गौरव है बहुत, कर सकते हर काम
रिक्शा-चालन है 'सलिल', सिर्फ एक आयाम

हम पर तरस न खाइये, दें अब पूरा मान
नारी भी हर क्षेत्र में, है नर सी गुणवान

मन अपना मजबूत है, तन भी है मजबूत
शक्ति और सामर्थ्य है, हममें भरी अकूत

हम न तनिक कमजोर हैं, सकते राह तलाश
रोक नहीं सकते कदम, परंपरा के पाश

करते नशा वही हुआ, जिनका मन कमजोर
हम संकल्पों के धनी, तम से लायें भोर

मत वरीयता दीजिए, मानें सिर्फ समान
लेने दें अधिकार लड़, आप न करिए दान



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