कविता:
श्रम को नमन
श्रम को नमन
कम किसी से हम रहें, कर सकते हर काम
कहें रहे क्यों क्यों पुरुष का, किसी कार्य हित नाम
शर्म न, गौरव है बहुत, कर सकते हर काम
रिक्शा-चालन है 'सलिल', सिर्फ एक आयाम
हम पर तरस न खाइये, दें अब पूरा मान
नारी भी हर क्षेत्र में, है नर सी गुणवान
मन अपना मजबूत है, तन भी है मजबूत
शक्ति और सामर्थ्य है, हममें भरी अकूत
हम न तनिक कमजोर हैं, सकते राह तलाश
रोक नहीं सकते कदम, परंपरा के पाश
करते नशा वही हुआ, जिनका मन कमजोर
हम संकल्पों के धनी, तम से लायें भोर
मत वरीयता दीजिए, मानें सिर्फ समान
लेने दें अधिकार लड़, आप न करिए दान
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