doha salila :
pratinidhi doha kosh 5 -
अर्चना मलैया
प्रतिनिधि दोहा कोष:५
इस स्तम्भ के अंतर्गत आप पढ़ चुके हैं सर्व श्री/श्रीमती नवीन सी. चतुर्वेदी, पूर्णिमा बर्मन तथा प्रणव भारती तथा डॉ. राजकुमार तिवारी 'सुमित्र' के दोहे। आज अवगाहन कीजिए श्रीमती अर्चना मलैया रचित दोहा सलिला में :जन्म: १८ जून १९५८, सागर मध्य प्रदेश
आत्मजा: श्रीमती राजकुमारी - श्री देव कुमार रांधेलिया कटनी।
जीवन संगी: श्री प्रकाश मलैया।
शिक्षा: एम.ए. हिंदी।
सृजन विधा: कविता, कहानी, नाटक, लेख, लघुकथा आदि.
संपर्क : चन्द्रिका टावर्स, मोडल रोड, शास्त्री पुल, जबलपुर ४८२००१ दूरभाष : ०७६१४००६७२३ / चल भाष: ९९७७२५०३४१*
०१ . प्रकृति सुंदरी खोलती, अपने सुरभित केश
अखिल सृष्टि को मोहता, सम्मोहित परिवेश
*
०२. नयनों ने न्यौता दिया, दहके प्रीती पलाश
तन की फरकन समोती, मुट्ठी में आकाश
*
०३. वासंती ने पहिनकर, पीत रंग परिधान
जानेक्यों अधरों रची, मदमाती मुस्कान
*
०४. अरुणारे खंजन नयन, चपल दामिनी देह
वासंती राधा लगे, अनुपम निस्संदेह
*
०५. वासंती के रूप में राधा का ही गान
युग बदले पर मन नहीं, गुंजित वंशी तान
*
०६. सावन सावन सा नहीं, मन में नहीं उमंग
बादल बैरी से लगें, पिया नहीं जब संग
*
०७. संबंधों की नींव का, बस इतना इतिहास
सूली पर संदेह की, टँगा रहा विश्वास
*
०८. घेरों में अपने बँधे, मनुज धर्म औ' देश
दृष्टि संकुचित प्रदूषित, करती है परिवेश
*
०९. चांद लुटाता चांदनी, सूरज झरे प्रकाश
सरहद में कब बंध सके, नीर पीर आकाश
*
१०. भीगी भीगी दृष्टि से, झंकृत होती देह
ज्यों पहली बरसात में, महमह धरती मेह
*
११. हाथ थामकर हम चलें, एहसासों के गाँव
मधुवंती चौपाल हो, सपनीली हो छाँव
*
१२. अहसासों ने बुन लिए, सपने कुछ अनजान
कौन सहेजेगा इन्हें, आँख अभी नादान
*
१३. किसके हिस्से पुण्य है, किसके हिस्से पाप
कर्मों के अनुबंध कब, जान सके हैं आप
*
१४. भरी भरी सी मैं लगूं, तुम होते जब पास
मीत प्रीत की जोत से, चरों ओर उजास
*
१५. दृष्टि तुम्हारी सौंपती, नेह भरे अनुबंध
मन प्राणों ने समो ली, भीनी भीनी गंध
*
१६. दुर्दिन को मत कोसिए, मत खो संयम रत्न
नियति नटी के सामने, बौने रहें प्रयत्न
*
१७. साँसों की लय में बसे, मन को मिले न चैन
शीतलता तब मिलेगी, छवि देखें जब नैन
*
१८. बस बातों ही बात में, बीते दिन औ' रात
बातों बातों में कही, मन ने असली बात
*
१९. इतना मत इतराइये, जैसे कोई ख्वाब
नैनन दरस न दीजिए, मन में बसे जनाब
*
२०. एक अकेला क्या करे, मिले न जब तक साथ
ताली भी तब ही बजे, मिले हाथ से हाथ
*
२१. तनिक न साधे से सधे, मन का अद्भुत खेल
इसको बंदी कर सके, बनी न ऐसी जेल
*
२२. हाथ पैर हैं, नयन हैं, तन है स्वर्ण समान
काया दे सब कुछ दिया, प्रभु तुम कृपा निधान
*
२३. जग चलता व्यवहार से, होकर चतुर सुजान
मन के गहरे भाव का, कौन करे अनुमान
*
२४. जाति धर्म में बँट गयी, मानव की सन्तान
कब आयेगा दिवस वह, होंसे सभी समान
*
२५. पत्तों शाखों पर लिखे, जाति धर्म के नाम
जड़ को ही भूले अगर, क्या होगा परिणाम
*
२६. चलो उतारें गगन से, जीवनदायी नीर
मुरझाये विश्वास की, कम तो होगी पीर
*
२७. प्राण प्रिया रटते फिरें, भरें प्रेम की पींग
बीच बीच में झलकते, घरवाली के सींग
*
२८. घर बाहर दोनों सधे, हर्रा लगे न हींग
दोनों के दुश्चक्र में, गुमी आँख से नींद
*
२९. नयना लोचन क्या कहूँ, छीने मन का चैन
आँखों का क्या दोष है, मन ही है बेचैन
*
३०. नैना बाजीगर बने, करतब अजब दिखाय
बोली ऐसी बोलते, सुन पड़ता कुछ नांय
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