नव गीत:
कहाँ जा रहे हो…
संजीव
*
संजीव
*
पाखी समय का
ठिठक पूछता है
कहाँ जा रहे हो?...
*
उमड़ आ रहे हैं बादल गगन पर
सुस्ता रहे हो?...
*
*
उमड़ आ रहे हैं बादल गगन पर
तूफां में उड़ते पंछी भटककर
लिए हाथ में हाथ जाते कहाँ हो?
बैठा है कोई खुद में सिमटकर
साथी प्रलय का
सतत जूझता हैसाथी प्रलय का
सुस्ता रहे हो?...
*
मलय कोई देखे कैसे नयन भर
विलय कोई लेखे कैसे शयन कर
घन श्याम आते न छाते यहाँ हो?
बेकार है कार थमकर, ठिठककर
साथी 'सलिल' का
साथी 'सलिल' का
नहीं सूझता है
मुस्का रहे हो?...
*
मुस्का रहे हो?...
*
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