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शुक्रवार, 12 जुलाई 2013

chitr par kavita: nav geet kahan ja rahe ho --sanjiv

नव गीत:
कहाँ जा रहे हो…
संजीव
*
पाखी समय का
ठिठक पूछता है
कहाँ जा रहे हो?...
*
उमड़ आ रहे हैं बादल गगन पर
तूफां में उड़ते पंछी भटककर
लिए  हाथ में हाथ जाते कहाँ हो?
बैठा है कोई खुद में सिमटकर
साथी प्रलय का
सतत जूझता है
सुस्ता रहे हो?...
*
मलय कोई देखे कैसे नयन भर
विलय कोई लेखे कैसे शयन कर
घन श्याम आते न छाते यहाँ हो?
बेकार है कार थमकर, ठिठककर 
साथी 'सलिल' का
नहीं सूझता है
मुस्का रहे हो?...
*

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