doha salila :
pratinidhi doha kosh 2-
purnima barman, sharjah
प्रतिनिधि दोहा कोष:2
इस स्तम्भ के अंतर्गत आप पढ़ चुके हैं सर्व श्री/श्रीमती नवीन सी. चतुर्वेदी तथा पूर्णिमा बर्मन के दोहे। आज अवगाहन कीजिए प्रणव भारती रचित दोहा सलिला में ::
प्रणव भारती
*
मानव ज्ञानी है नहीं, ज्ञानी केवल आप
तथ्य न जो यह मानता, वह करता है पाप
प्रणव नहीं मन में करूँ, कभी किसी से बैर
आस-दिया रवि ने जला, दिया उजाला-ताप
तूने द्वार ढुका दिए ,भर मन में संताप
-मन तो जाने बावरा ,मन की कहाँ बिसात
मन ही मन फूला फिरे ,कहे न असली बात
प्रेम बिना जीवन नहीं, प्रेम कभी मत तोल
संवेदन तुलता नहीं ,जीवन के बाज़ार
संवेदन जो तोलता ,वह जीवन बेकार
चन्दा सा मुखड़ा लिए, हँसी- खुला अध्याय
जब समीप आने कहूँ ,भागे कहकर 'बाय'
जो चाहे सबका भला, रोये न उसका मन
*
2 टिप्पणियां:
aapki har rachna lajwab hoti hai ab en doho ko hi dekhiye kitne sundar hain
badhai bahut bahut badhai
आपकी गुण ग्राहकता को नमन। सराहनेवाले न हों रचना का सौंदर्य कैसे निखर सकता है?
एक टिप्पणी भेजें