दोहा सलिला:
मधु गुप्ता
*
मधु गुप्ता
*
धन-दौलत का पुल बना,जिस पर धावक तीन |
चढ़ मर्यादा-मान पर, अहं बजावे बीन
दुःख का कितना माप है, आँसू कितने ग्राम
नयन तराजू तौलते, भीतर-बाहर थाम
पत्थर-ईंटें चीन्हकर, महल लिये चिनवाय
पाहुन आवत देखकर, नाहक द्वार ढुकाये ?
ईश-दरश को हम गए, माथे लिया प्रणाम
क्षण में अर्पित कर दिया, जीवन प्रभु के नाम
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