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बुधवार, 10 जुलाई 2013

doha salila 4: SUMITRA

doha salila

pratinidhi doha kosh 4 -  

rajkumar tiwari sumitra, jabalpur  


प्रतिनिधि दोहा कोष:४ 

 इस स्तम्भ के अंतर्गत आप पढ़ चुके हैं सर्व श्री/श्रीमती  नवीन सी. चतुर्वेदी, पूर्णिमा बर्मन तथा प्रणव भारती के दोहे। आज अवगाहन कीजिए डॉ. राजकुमार तिवारी सुमित्र दोहा सलिला में :

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 जन्म: २५ अक्टूबर १९३८
आत्मज: स्व. ब्रम्हदत्त तिवारी
शिक्षा: एम.ए. हिंदी, पीएच. डी., डिप्लोमा शिक्षण, डिप्लोमा पत्रकारिता।
कृतियाँ: काव्य- संभावना की फसल, यादों के नागपाश, बढ़त जात उजियारो (बुन्देली), आंबे कहूं जगदंबे कहूं (देवी गीत), साईं नाम सलोना (साई गीत), स्वरुप चन्दन काव्य, चारू चिंतन (निबन्ध), बतकहाव (व्यंग्य), कभी सोचें (चिंतन कण), खूंटे से बंधी गाय (व्यंग्य), गीतों की रेलगाड़ी (बालगीत), पांच स्वतंत्रता संग्राम सेनानी (बालोपयोगी)
संपर्क: ११२ सराफा, जबलपुर ४८२००२। दूरभाष: ०७६१ २६५२०२७, चलभाष: ९३००१२१७०२।
ई मेल: drrajkumar_sumitra90@yahoo.in
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०१. हंसारूढ़ा शारदे, प्रज्ञा प्रभा निकेत
      कालिदास का कथाक्रम, तेरा ही संकेत 
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०३. शब्द ब्रम्ह आराधना, सुरभित सुफलित नाद
      उसकी ही सामर्थ्य है, जिसको मिले प्रसाद
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०४. वाणी की वरदायिनी, दात्री विमल विवेक
      सुमन अश्रु अक्षर करें, दिव्योपम अभिषेक
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०५. तेरी अन्तःप्रेरणा, अक्षर का अभियान
      इंगित  से होता चले, अर्थों का संधान
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० ६. कवि साधक कुछ भी नहीं, याचक अबुध अजान
      तेरी दर्शन दीप्ति से, लोग रहे पहचान
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०७. बाँच सको तो बाँच लो , आँखों का अखबार
      प्रथम पृष्ठ से अंत तक, लिखा प्यार ही प्यार
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०८. लगुन शगुन तिथि महूरत, सब साधेंगे राम
      हम तो घर से चल पड़े, लेकर तेरा नाम
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०९. फूल अधर पर खिल गये, लिया तुम्हारा नाम
      मन मीरा सा हो गया, आँख हुई घनश्याम
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१०. सब कुछ तुमको मानकर, तोड़े सभी उसूल
      या पर्वत हो जायेंगे, या धरती की धूल
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११. तुम बिन दिन पतझर लगे, दर्शन है मधुमास
      एक झलक में टूटता, आँखों में उपवास
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१२. आँखों के आकाश में, घूमें सोच-विचार
       अन्तःपुर आँसू बसें, पलकें पहरेदार
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१३. नयन देखकर आपके, हुआ मुझे अहसास
       जैसे ठंडी आग में, झुलस रही हो प्यास
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१४. नयन तुम्हारे वेद सम, चितवन है श्लोक
       पा लेता हूँ यज्ञ फल, पलक पूरण विलोक
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१५. याद हमारी आ गयी, या कुछ किया प्रयास
       अपना तो ये हाल है यादें बनीं लिबास
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१६. यादों की कंदील ने, इतना दिया उजास
      भूलों के भूगोल ने, बांच लिया इतिहास
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१७. सफर सफर के बीच में, या फिर उसके बाद
       तुम तक पहुँची या नहीं, मेरी पैदल याद
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१८. अधरों पर रख बाँसुरी, और बाँध भुजपाश
      नदी आग की पी गया, लेकिन बुझी न प्यास
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१९. ह्रदय विकल है तो रहे, इसमें किसका दोष
      भिखमंगों के वास्ते, क्या राजा का कोष
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२०. पैर रखा है द्वार पर, पल्ला थामे पीठ
       कोलाहल का कोर्स है, मन का विद्यापीठ
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२१. बालों में हैं अंगुलियाँ, अधर अधर के पास
      सब कुछ ठहरा है मगर, मन का चले प्रवास
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२२. पंछी होता मन अगर, गाता बैठ मुंडेर
       देख नहीं पाता तुम्हें, कितनी कितनी देर
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२३. गिरकर उनकी नजर से, हमको आया चेत
       डूब गए मँझधार में, अपनी नाव समेत
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२४. एक गुलाबी गात ने, पहिन गुलाबी चीर
      फूलों के इतिहास को, दे दी एक नजीर
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२५. क्या मेरा संबल भला, बस तेरा अनुराग
       मन मगहर को कर दिया, तूने पुण्य प्रयाग
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२६. सांस सदा सुमिरन करे, आँखें रहीं अगोर
       आह, प्रतीक्षा हो गयी, द्रौपदि वस्त्र अछोर
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२७. साँसों में हो तुम रचे, बचे कहाँ हम शेष
      अहम् समर्पित कर दिया, और करें आदेश
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२८. दूरी से संशय उगे, जगे निकट से प्रीत
       हम साधारण शब्द हैं, गाओगे तो गीत
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२९. शब्दों के सम्बन्ध का ज्ञात किसे इतिहास
      तृष्णा कैसे दृग बनी, दृग कैसे आकाश
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३०. मानव मन यदि खुद सके, मिलें बहुत अवशेष
       दरस परस छवि भंगिमा, रहती सदा अशेष
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3 टिप्‍पणियां:

Mahesh Dewedy via yahoogroups.com ने कहा…

सलिल जी .अत्यंत अलंकृत भाषा मे लिखेगये प्रभावी दोहे. परिचय हेतु धन्यवाद.

महेश चंद्र द्विवेदी

kusum vir ने कहा…

Kusum Vir via yahoogroups.com

आदरणीय आचार्य जी,
डॉ. राजकुमार तिवारी सुमित्र जी के प्रतिनिधि दोहे मन को बहुत भाए l
इन्हें मंच पर साझा करने के लिए बहुत आभार l
सादर,
कुसुम वीर

sanjiv ने कहा…

कुसुम जी
इन दोहों को पढ़ने-गुनगुनाने से अपने दोहे लिखने में सहायता मिल सकती है।
आपकी गुण ग्राहकता को नमन
Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in