कुल पेज दृश्य

रविवार, 22 मार्च 2009

मुक्तक संजीव 'सलिल'

*************************
खन-खन, छम-छम तेरी आहट, हर पल चुप रह सुनता हूँ।
आँख मूँदकर, अनजाने ही तेरे सपने बुनता हूँ।
छिपी कहाँ है मंजिल मेरी, आकर झलक दिखा दे तू-
'सलिल' नशेमन तेरा, तेरी खातिर तिनके चुनता हूँ।
*************************
बादलों की ओट में महताब लगता इस तरह
छिपी हो घूँघट में ज्यों संकुचाई शर्मीली दुल्हन।
पवन सैयां आ उठाये हौले-हौले आवरण-
'सलिल' में प्रतिबिम्ब देखे, निष्पलक होकर मगन।
*******************

1 टिप्पणी:

Pradeep ۩۞۩ with Little Kingdom ۩۞۩ ने कहा…

Kya baat hai Salil ji bahut khub....collage ke din yaad dilaye aapki in panktiyon ne....

Shubkamnayain....

-PRADEEP PATHAK