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सोमवार, 30 मार्च 2009

कविता वर दो दुर्गा माता... डॉ. कमल जौहरी डोगरा, भोपाल


हे दुगा माँ! शक्तिरूपिणी!
बना दे भारत की हर नारीको
दुरगा चांदी का रूप.
जो करे सामना साहस से
शोषण, उत्पीडन. बलात्कार का
जले न जीवित अग्नि दाह में
करे न आत्म हत्या फांसी से
माँ-बाप करें न भेदभाव
दें शिक्षा और दिलासा
समझें भार न कन्या को
ब्याही हो चाहे अनब्याही
कन्या देवी दुर्गा का रूप
बने रणचंडी जब हो उत्पीडन.
शिक्षा-समाज के रखवालों
उसे सिखाओ आज कराटे.
एन. सी. सी. कर दो अनिवार्य
खेल-कूद के क्षेत्र में भी
उसे बनाओ भागीदार.
गौरव से सीना तान चले वह
सर न झुकाए लज्जा से,
अपनी रक्षा आप करे वह,
निर्भर नहीं पुरुष पर हो.
ऐसा वर दो माता तुम
भारत की हर नारी को.

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1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

मंगलाचरण
दूर करो दुर्गति हमारी सिंहवाहिनी दुर्गा
विश्वपलिनी दुष्ट्नाशिनी ,त्रिपुरसुंदरी,अन्नपूर्णा दुर्गा
देर भई माँ अब तो प्रकटो
काम तनिक यह कर दो
दूर करो जग का अंधियारा
इसको जगमग कर दो


माँ दुर्गा से निवेदन
सूख रहा जीवन का रस
छूट रहा है धीरज सारा
अन्ध्कार सब ओर घिरा हो
सूझे न जब कोई किनारा
तुम यह सब चुपचाप न देखो
बरसा दो अमृत की धारा
2 सुख स्वपन बने हों जब धूमिल
जीवन करता हो छ्ल ही छल
हों बंधन में निज प्राण बंधे
और सब मुक्ति के प्रयास विफल
किसी और द्वार पर ना जा कर पुकार करें
ना और किसी का मांगें सहारा
3 कब तक हम चुपचाप रहें
और लिए अधूरी प्यास रहें
अपने छोटे से आँचल में
निराशा और अविश्वास लिए
अब मिटें हमारे सारे गम
मुसकाए फिर जीवन सारा
4कर असत्य विदीर्ण
सत्य प्रतिष्ठित तुम्ही करातीं
देख तुम्हारा तेज
कोटी कोटी सूर्यों की किरणें लजातीं
माँ जीवन को मृत्यु पर
विजय तुम्ही दिलवातीं
नव रचनायें रच जगत का सरजन तुम्ही करातीं
हे शब्द विचारतीत रुके अब जग का क्रंदन
हे दयामयी जननी हम करें तुम्हारा वंदन
५ हे शुभ्र वसना माँ तुम ही सब कुछ करतीं
हे दयामयी माता तुम जग की जड़ता हरतीं
क्ल्याणकारी तत्व में तुम्ही शक्ति हो भरती
जब चारों ओर हो जलथल जलथल
प्राण प्यासे फिर भी तरसें
अब तुम ही करो उपाय कि
सूखे जीवन में रस बरसे
छिपा कर अपने दुःख दर्द को
जीना ही जिन्दगी का नाम है
ले क्रर भगवान का सहारा
विपरीत प्रिथितियों में आगे बढना
ही हमारा काम है-अशोक