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शुक्रवार, 20 मार्च 2009

kavita samay khatm devendra mishra

कविता

समय ख़त्म

देवेन्द्र कुमार मिश्रा

खेल शुरू होने से पहले की
जिज्ञासा और तैयारी
चलते खेल पैर भरी
कोशिश जीतने की
दोनों पक्ष पसीने से तरबतर
भरपूर प्रयास
जी तोड़ कोशिश
दर्शक दीर्घ में बैठे
अपने-अपने खिलाड़ियों की
जीत के प्रति प्रार्थना
भरोसा और
हौसला अफजाई भी
जीत लक्ष्य है।
जीतना चाहते हैं दोंनों ही
पर
जीतता कोई एक ही है
किसी को तो हारना भी है।
कौन जीता?
अधिक मेहनती,
अधिक लगनवाला,
या किस्मतवाला?
जीत-हार न हो तब भी
सीटी बजी- खेल ख़त्म
समय तो सीमित ही है
समय ख़त्म...खेल ख़त्म...
ऐसे ही चलता है जीवन
खेलो..हारो...जीतो...
समय पर सब ख़त्म।

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