सामान्यतः आरोपित किया जाता है कि भारतीय रचनाकारों में राष्ट्रीयता की भावना कम है पर पीठ का अनुभव इसके विपरीत रहा. योजना लगभग सौ रचनाओं का संकलन निकलने की थी किन्तु सहभागी बहुत बड़ी संख्या में सम्मिलित हुए. फलतः, इसे दो भागों में प्रकाशित किया जाना तय किया गया. 'नमामि मातु भारतीम' शीर्षक से प्रथम भाग का प्रकाशन गत दिनों पूर्ण हो गया.
इस संकलन में देश के विविध प्रान्तों से सवा सौ से अधिक कवियों की राष्ट्रीय भावपरक रचनाएँ, चित्र तथा संक्षिप्त परिचय दो पृष्ठों में प्रकाशित किया गया है. पाठ्य-शुद्धि के प्रति पर्याप्त सजगता राखी जाने पर भी अहिंदीभाषी प्रदेश से मुद्रण होने पर कुछ त्रुटियां होना स्वाभाविक है. संपादन की छाप प्रायः हर पृष्ठ पर अनुभबव की जा सकती है.
संकलन के आदि में श्री सलिल द्वारा लिखित सारगर्भित अग्रालेख राष्ट्रीयता पर समग्रता से चिंतन को प्रेरित करता है. इस भावधारा के पूर्व प्रकाशित संकलनों का उल्लेख व् संक्षिप्त चर्चा शोधार्थियों के लिए उपयोगी होगी. इस सकल योजना के संयोजक प्रो. श्यामलाल उपाध्याय का अहर्निश श्रम श्लाघनीय है. यह सुमुद्रित संकलन कड़े सादे किन्तु आकर्षक जिल्द में मेट २९९ रु. में पीठ के कार्यालय में उपलब्ध है.
पीठ का पता- प्रो. श्यामलाल उपाध्याय, भारतीय वांग्मय पीठ, लोकनाथ कुञ्ज, १२७ / ए / ज्योतिष राय मार्ग, नया अलीपुर, कोलकाता ७०००५३.
: प्रेषक - मन्वंतर.
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