



भगवान शिव के विश्वात्मक रूप ने ही चराचर जगत को धारण किया है। यही अष्टमूर्तियाँ क्रमश: पृथ्वी, जल, अग्नि,वायु,आकाश, जीवात्मा सूर्य और चन्द्रमा को अधिष्ठित किये हुए हैं। किसी एक मूर्ति की पूजा- अर्चना से सभी मूर्तियों की पूजा का फल मिल जाता है।
१. शर्व / क्षितिमूर्ति
क्षितिमूर्ति (शर्व) शिव की शर्वी मूर्ति का अर्थ है कि पूवरे जगत को धारण करने वाली पृथ्वीमयी प्रतिमा के स्वामी शर्व है। शर्व का अर्थ भक्तों के समस्त कष्टों को हरने वाला।
२. भव/ जलमूर्ति
जलमूर्ति (भव) शिव की जल से युक्त भावी मूर्ति पूरे जगत को प्राणशक्ति और जीवन देने वाली कही गई है। जल ही जीवन है। भव का अर्थ संपूर्ण संसार के रूप में ही प्रकट होने वाला देवता।
३. रूद्र / अग्निमूर्ति
अग्निमूर्ति (रूद्र) संपूर्ण जगत के अंदर-बाहर फैली समस्त ऊर्जा व गतिविधियों में स्थित इस मूर्ति को अत्यंत ओजस्वी मूर्ति कहा गया है जिसके स्वामी रूद्र है। यह रौद्री नाम से भी जानी जाती है। रुद्र का अर्थ भयानक भी होता है जिसके जरिये शिव तामसी व दुष्ट प्रवृत्तियों पर नियंत्रण रखते हैं।
४. उग्र / वायुमुर्ति
वायुमूर्ति (उग्र) वायु संपूर्ण संसार की गति और आयु है। वायु के बगैर जीवन संभव नहीं। वायुरूप में शिव जगत को गति देते हैं और पालन-पोषण भी करते हैं। इस मूर्ति के स्वामी उग्र है, इसलिए इसे औग्री कहा जाता है। शिव के तांडव नृत्य में यह उग्र शक्ति स्वरूप उजागर होता है।
५. भीम / आकाशमुर्ति
आकाशमूर्ति (भीम) तामसी गुणों का नाश कर जगत को राहत देने वाली शिव की आकाशरूपी प्रतिमा को भीम कहते हैं। आकाशमूर्ति के स्वामी भीम हैं इसलिए यह भैमी नाम से प्रसिद्ध है। भीम का अर्थ विशालकाय और भयंकर रूप वाला होता है। शिव की भस्म लिपटी देह, जटाजूटधारी, नागों के हार पहनने से लेकर बाघ की खाल धारण करने या आसन पर बैठने सहित कई तरह उनका भयंकर रूप उजागर होता है।
६. पशुपति / यजमानमूर्ति
यजमानमूर्ति (पशुपति) यह पशुवत वृत्तियों का नाश और उनसे मुक्त करने वाली होती यजमानमूर्ति है। इसलिए इसे पशुपति भी कहा जाता है। पशुपति का अर्थ पशुओं के स्वामी, जो जगत के जीवों की रक्षा व पालन करते हैं। यह सभी आंखों में बसी होकर सभी आत्माओं की नियंत्रक भी मानी गई है।
७. महादेव / चंद्रमूर्ति
चन्द्रमूर्ति (महादेव) चंद्र रूप में शिव की यह मूर्ति महादेव के रूप में प्रसिद्ध है। महादेव का अर्थ देवों के देव होता है। यानी सारे देवताओं में सबसे विलक्षण स्वरूप व शक्तियों के स्वामी शिव ही हैं। चंद्र रूप में शिव की यह साक्षात मूर्ति मानी गई है।
८. ईशान / सूर्यमूर्ति
सूर्यमूर्ति (ईशान) शिव का एक नाम ईशान भी है। यह सूर्य जगत की आत्मा है जो जगत को प्रकाशित करता है। शिव की यह मूर्ति भी दिव्य और प्रकाशित करने वाली मानी गई है। शिव की यह मूर्ति ईशान कहलाती है। ईशान रूप में शिव को ज्ञान व विवेक देने वाला बताया गया है।
मनुष्यों के शरीर में अष्ट मूर्तियों का निवास
१ आँखों में "रूद्र" नामक मूर्ति प्रकाशरूप है जिससे प्राणी देखता है
२ "भव " ऩामक मूर्ति अन्न पान करके शरीर की वृद्धि करती है यह स्वधा कहलाती है।
३ "शर्व " नामक मूर्ति अस्थिरूप से आधारभूता है यह आधार शक्ति ही गणेश कहलाती है।
४ "ईशान" शक्ति प्राणापन - वृत्ति को प्राणियों में जीवन शक्ति है।
५ "पशुपति " मूर्ति उदर में रहकर अशित- पीत को पचाती है जिसे जठराग्नि कहा जाता है।
६ "भीमा " मूर्ति देह में छिद्रों का कारण है।
७ "उग्र " नामक मूर्ति जीवात्मा के ऐश्वर्य रूप में रहती है।
८ "महादेव " नामक मूर्ति संकल्प रूप से प्राणियों के मन में रहती है।
इस संकल्प रूप चन्द्रमा के लिए "नवो नवो भवति जायमान:" कहा गया है अर्थात संकल्पों के नये नये रूप बदलते हैं ||
अष्टमूर्तियों के तीर्थ स्थल








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स्वतंत्रता सत्याग्रही न्यायाधीश शिवनारायण जौहरी
भारत की स्वतंत्रता के ७५ वे वर्ष में उन दीवानों को स्मरण करना आवश्यक है जिन्होंने जीवन का लक्ष्य ही स्वतंत्रता प्राप्ति को बना लिया तथा देश हित में जान हथेली पर लेकर संघर्ष किया।
एक वे जो देश पर कुर्बान हो गए?
एक हम जो नाम भी लेते नहीं उनका।।
वे हमारे पूर्वज ही थे जिन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए हर कुरबानी दी और हम उनकी ऐसी संतानें हैं जो उनके योगदान पर गर्व कर सर झुकाना, उनकी राह पर चलकर देश के लिए निस्वार्थ भाव से कुछ करना तो दूर उनका नाम तक नहीं लेते। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के नेतृत्व में देश की स्वतंत्रता के लिए प्राण-प्राण से जूझने वाले सत्याग्रही अब बहुत कम रह गए हैं। मेरा सौभाग्य है कि मैं ऐसी ही एक विभूति को शब्द सुमन समर्पित कर पा रहा हूँ जो कैशरय से ही देश के स्वातंत्र्य सत्याग्रह में न केवल कूद पड़ा अपितु घोर विरोध और कठोर दमन से जूझता हुआ देश स्वतंत्र होने तक न झुका, न रुका और देश स्वंत्र होने के बाद लाभ न लेकर आत्म बल और परिश्रम कर न्यायिक सेवा तथा हिंदी साहित्य की श्रीवृद्धि में उल्लेखनीय योगदान किया। इस विभूति का नाम है शिवनारायण जौहरी।
शिव जगत्पिता और हलाहल पी लेने वाले महादेव हैं। नारायण पृथ्वी पर पाप बढ़ने पर उसके शमन-दमन हेतु अवतार लेते हैं। यह दैवीय संयोग ही था कि लक्ष्मीगंज ग्वालियर निवासी हरनारायण जौहरी की जीवनसंगिनी ने उन्हें
जीवन के प्रारंभिक काल में, जब मैं छटी कक्षा में था तब मैं महात्मा गांधीनगर जी के अछूत उद्धार आन्दोलन से बहुत प्रभावित हुआ था। जातिवाद, ऊंच नीच और छुआ छूत का विरोधी हो गया और लक्ष्मीगंज, लश्कर में स्वर्ण रेखा नदी के किनारे बसे हरिजनों की बस्ती में मै काम करने लगा। मैंने वहां एक स्कूल भी खोला और उसमें मैं पढ़ाने जाने लगा। इस पर घर में विरोध हुआ। मेरे बर्तन अलग कर दिए गए और चौके में बैठ कर खाने पर रोक लग गई।
मैने इस का विरोध किया जो कई महीनो के बाद सफल हो पाया।
उस स्कूल का पढ़ा हुआ मेरा हरिजन विद्यार्थी आठवीं की परीक्षा में उत्तीर्ण हो गया और वह बस ड्राईवर बन गया तथा कुछ वर्षों पश्चात ग्वालियर से इंदौर जाने वाली बस पर उस की नियुक्ती हो गई।
इस तरह गांधी जी के आंदोलन से प्रभावित हो कर मैं राष्ट्रीय चेतना में शामिल हो गया।
गांधी जी को मैंने पहली बार सन 1942 में रेलवे स्टेशन ग्वालियर में देखा था,उस समय वे बंबई जा रहे थे। जैसे ही मुझे विदित हुआ कि वह ग्वालियर से होकर जाने वाली ट्रेन से बंबई जा रहे हैं, हम विद्यार्थी उत्सुकता वश उन्हें देखने व मिलने ग्वालियर स्टेशन पहुंचे। मेरे में नेतागिरी का जजबा कुछ ज्यादा ही था इसलिए सबसे आगे मैं ही था। मैं ट्रेन के डिब्बे का हेंडल पकड़ कर खड़ा हो गया पर मुझे पीछे से धक्का लगा और मैं डिब्बे के अंदर जा गिरा। गांधी जी ने मेरे से कहा मेरे पास आ कर बैठ जाओ मैं उधर बैठ गया। वे इधर उधर और लोगों से बात करने लगे, फिर ट्रेन चलने लगी तब उन्होने मेरे से कहा ट्रेन चल दी है उतर जाओ मैं उतर गया। उन्होंने बम्बई पहुंच कर भारत छोड़ो आंदोलन की घोषणा कर दी। सारे बड़े बड़े कांग्रेसी नेता गिरफ्तार हो गये उस के दूसरे दिन ग्वालियर स्टेट के नेता भी गिरफ्तार हो गये। इस कारण तीसरे दिन मेरे घर में ताला लगा दिया गया, जिससे मैं कहीं निकल कर बाहर न जा पाऊ, पर मैं दीवार फांद कर निकल गया और विक्टोरिया कॉलेज वाली सड़क पर पहुंच गया। वहां दौड़ते समय पुलिस घुड़सवारों का सामना करते हुए मैंनें अपनी लाठी में तिरंगा लगा कर लहराया और दूसरे विद्यार्थियों के साथ जुलूस निकाला। जब वह जुलूस सारा शहर पार करते हुए महाराज बाड़े में पहुचा तो पुलिस ने लाठी चार्ज कर दिया और हवा में फायरिंग कर दी। सब लोग समझे कि उन पर गोली चलाई गई है और सारा जुलूस तितर-बितर हो गया। सब आस पास के घरों में छुप गये पर पुलिस ने ढूंढ निकाला एवं मुझे अन्य पचास लोगों के साथ गिरफ्तार कर लिया। मैं दो दिन तक कोतवाली में रहा। दूसरे दिन जब सत्याग्रह नहीं हुआ तो हमें छोड़ दिया गया। मेरे भाई ने जमानत देने की कोशिश की, पर मैंने जमानत पर जाने से इंकार कर दिया। जब दो दिन तक सत्याग्रह नहीं हुआ तो केस वापस ले लिया गया। तब शासन ने हमें बिना जमानत के ही छोड़ दिया।
इस घटना से एक दिन पूर्व हम लोगों ने रेल पटरी उड़ाने की भी योजना बनाई थी। बंम बनाने का सारा सामान मुरार के पास एक खंडहर में लाकर रख दिया और रसायन शास्त्र के ज्ञान के अनुसार बनाने का प्रयास करने लगे उसी समय वहां एक बिल्ली उस पर कूद कर आ गिरी और उसके छिछडे उड़ गए। हम लोग उधर से भाग निकले।
गांधी जी से वैसे तो मैं बहुत प्रभावित था किन्तु अहिंसा मतलब जुल्म सहते रहना, और मुस्लिम लोगों के प्रति नम्र व्यवहार पसंद नहीं था। बाकी उनकी देशभक्ति और अन्य आंदोलनों से बहुत आकर्षित था।
अंग्रजों के खिलाफ कर रहे सत्याग्रह आंदोलन के कारण मुझे गिरफ्तार कर लिया था , गिरफ्तार होने के फलस्वरूप मुझे 12वीं कक्षा की परीक्षा देने से रोक दिया और कोलेज से निकालने की कार्यवाही शुरू कर दी पर शासन द्वारा लगाया गया केस वापस ले लिया गया। इसलिए अंग्रेज़ प्रिन्सिपल अपनी कार्यवाही में सफल नहीं हो सके।
कई वर्षों बाद जब मैं डिस्ट्रिक जज बन कर मुरैना पहुंचा तब एक समारोह में तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री पी सी सेठी ने औरों के साथ मुझे प्रशस्ति पत्र दिया था। मुरैना में एक स्तम्भ पर स्वतंत्रता सेनानियों के नाम लिखे गये और उस सूची में मेरा नाम भी 7वें नंबर पर लिखा हुआ है। उसकी पेंशन मुझको अभी तक मिल रही है ।
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आपका साहित्यिक पक्ष अत्यंत सराहनीय रहा है। चार पांच वर्ष की आयु से ही कविता ,गजल आदि सुनने का बहुत शौक रहा। धीरे धीरे स्कूल और मित्रों के बीच छोटी छोटी कविताएं लिखना,सुनाना पसंद था। जैसे जैसे बड़े होते गए यह शौक का रूप परिपक्वता की ओर बढ़ता गया। अनुभव, अर्जित ज्ञान, इच्छुक प्रवृति, लगन से, कविता लेखन अनंत गहराइयों में उतर गये।जब कामायनी खंड काव्य से प्रभावित हो कर 'रूपा' खंड काव्य की रचना कर दी। कामायनी के ही समान आपने इस खंड को ५सर्गो में बांट दिया।
सूर्य कांत त्रिपाठी निराला जी ने तो अंग्रेजी भाषा में टिप्पणी प्रशंसा से कवी का मनोबल बढ़ा दिया---
किन्तु आपने कुछ अलग ही पात्रों को चयनित किया है।
मानस जीवन के संघर्षों से जूझता हुआ सफलता की ओर उन्मुख होता है।
कुछ प्रसिद्ध कविओं लेखकों की टिप्पणी रूपा खंड काव्य पर--
श्री शिवनारायण जौहरी विमल ने नारी को अ +बला नहीं माना बल्कि उसके सशक्त रूप से जन मानस में परिचित कराया।
अरे रूप अबला का कैसी होती ओछी बात,
तुम्ही भरत की तात मात विश्वास।।
कवी ने अपने व्यक्तिगत जीवन में अनेकानेक संघर्षों का सामना किया, अनेक दर्द ,पीड़ाओं को सहा । उनकी कविताओं में यत्र - तत्र सर्वत्र परिलक्षित होता है।
कविता में विशेष रुचि होने के कारण माह दो माह में घर पर ही काव्य गोष्ठी का आयोजन करते थे। विशेष तौर पर शरद्पूर्णिमा के दिन।
किंतु यह सब सरकारी अधिकारियों को सहन नहीं हुआ। एक बार जब वे किसी कवी सम्मेलन में भाग लेने जा रहे थे कार से तो अपनी कविताओं की डायरी कार में छोड़ दुकान में कुछ खरीदने चले गए लौट कर आते तो देखा बेग सहित कविता की डायरी भी चोरी हो गई।यह देख उनके ऊपर बिजली सी गिर गई।घर के सभी सदस्यों के जोर देने पर बची हुई रचनाओं को उन्होंने अंतर्मन के साथ काव्य संग्रह में प्रकाशित करवाया। यह इतना ज्यादा साहित्यिक मतलब अलंकरणों आदि से भर पूर था कि लोगों के सिर के ऊपर से निकल जाता था। आपकी कविताओं में अनेक रसों, शब्द शक्तियों, अलंकारों ,व्यंजना,लक्षणा का प्रयोग किया गया है । अनुभूति को व्यक्त करने का अनूठा तरीका रहा है, जो साहित्य के पारखी ही समझ पाते व टिप्पणी देते थे। जैसे----
हम सबकी सलाह से काव्य में जन मानस की भाषा में लिखना प्रारंभ किया ही था कि प्यारी सी पत्नी का देहांत हो गया तो दुखो का पहाड़ टूट गया। जीने का एक ही खास संबल रह गया। दुख सुख ,आशा निराशा, प्रसन्नता के बीच झूलते रहे। कठिन परिस्थितियों से उबरने के लिए अपने आपको पूर्ण रूप से काव्य लेखन में डुबो दिया।
उसके पश्चात जीजीविषा काव्य संग्रह लिखा। इसका विमोचन श्री सुशील कुमार शिंदे जी ने किया। आपने बुंदेलखंडी भाषा में भी अनेक कविताएं लिखी। कविओं को उनके नाम से सम्मानित किया गया।श्री जौहरी जी को भी स्मारिका भी दी गई।
जीजीविषा काव्य संग्रह पर दी गई टिप्पणियां----
जीजीविषा के पश्चात त्रिपथगा-- काव्य संग्रह लिखा
इसका विमोचन मध्यप्रदेश गवर्नर आनंदीबेन ने किया।
इस त्रिपथगा काव्यसंग्रह पर दी गई टिप्पणियां है ---
प्रपात काव्यसंग्रह
इस काव्यसंग्रह का विमोचनअखिलभारतीय कायस्थ समाज मे में भोपाल में २००१८ में केन्द्रीय मंत्री श्रीवास्तव जी, श्री कुलश्रेष्ठ जी, शर्मा जी द्वारा किया गया।
हाल ही में श्री शिवनारायण जौहरी विमल का एक और शब्द का श्रृंगार
आया है।
आपके कुछ भजनों को जैसे-- मैने शाम रंग ओढ़ लियो रे-----
ज्ञान ध्यान श्रद्धा से बोलो मेरे हरि का नाम-----
यशोदा झूम रही है----
आपने स्वयं अपनी आवाज में कविताओं, गीतों का पाठ किया। भोपाल,रांची, मुम्बई आकाशवाणी केंद्रों से प्रसारित हुआ है।
अनेक पत्र पत्रिकाओं कविताएं लेख प्रकाशित हुए।
फेसबुक, कविता कोष,यूट्यूब,ब्लोग में आपकी कविताएं हैं लोगों ने बहुत सराहा है।
अनेक सम्मान भी मिले हैं साहित्य क्षेत्र में।
बुन्देलखण्डी कविताओं पर सम्मान
अनेक सांझा काव्य संग्रह और पत्रिकाओं में भी आपकी कविताएं हैं--
बापू कल आज और कल।
वतन के रखवाले
चांद के पार
चमकते सितारे
स्पंदन भाग १,२
प्रेरणा
चिकीर्षा
साक्षात्कार
शिखरवार्ता
शुभ्र ज्योत्स्ना
लफ्ज़
शब्द की आत्मा
वागार्थ
गगनांचल
प्रभात प्रकाशन टिगा आदि आदि में
अनेक लेख भी प्रकाशित हुए।
दूरदर्शन पर साक्षात्कार भी प्रसारित हुए।
टिप्पणियां-
श्री रवीश जी एन डी टी वी
श्री विष्णु राजौरिया
श्री निराला जी
डा राम कुमार वर्मा
श्री बल्देव प्रसाद मिश्र आदि अनेक महानुभावों की है।
कविता लेखन का कार्य अभी तक ९७वर्ष की आयु में भी कंप्यूटर पर सतत करते रहे। किंतु दृष्टि और श्रवण शक्ति थोड़ी कम हो गई है इसलिए मन मारकर लिखना कम कर दिया है। कविता के प्रति रुचि में कोई कमी नहीं आई है।
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