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बुधवार, 12 जनवरी 2022

सॉनेट सलिला

अनुक्रम १ सवेरा, २ मन की बात, ३ भोर भई, ४ कबीर, ५ वंदना, ६ जिंदगी के रंग, ७ अपनी कहे, ८ सैनिक, ९ संतोष, १० विसंगतियाँ, ११ काग गाएँ, १२ समय, १३ गृह प्रवेश , १४ प्रेम की भागीरथी, १५. नवांकुर, १६ हुक्मरां, १७ सरदार, १८ भक्ति की बीन, १९ वीणा की झंकार, २० गुरुआनी, २१ नमन, २२ सौदागर, २३ चित्रगुप्त, २४ अभियान, २५ शारदा, २६ पाखी, २७ नारी, २८ गणपति, २९ विवाह, ३० गणपति, ३१ भोर, ३२ चलते रहिए, ३३ बेबस सारा देश, ३४ सत्य की वाह, ३५-३६ जबलपुर , ३७ कोरोना, ३८ उपनिषद, ३९ चंपा, ४० गौरैया, ४१ शीत, ४२ ठंड, ४३ अलविदा, ४४ राग दरबारी, ४५ नया साल, ४६ जाड़ा आया है, ४७ सूरज , ४८ चित्रगुप्त, ४९ सरगम, ५० दीवार, ५१ चक्की, ५२ सॉनेट, ५३ साहब, ५४ तिल का ताड़, ५५ बातचीत, ५६ मरने न दीजिए, ५७ हिंदी, ५८ विवेकानंद, ५९ चिड़िया, ६० लालबहादुर, ६१ महर्षि महेश योगी, ६२ रस, ६३ संक्रांति, ६४ आशा, ६५ थल सेना दिवस, ६६ गीता, ६७ मानस, ६८ मानस-गीता, ६९ राम-श्याम, ७० टू मच, ७१ डीप प्रज्ज्वलन, ७२ बिरजू महाराज, ७३ हेरा-फेरी, ७४ छीछालेदर, ७५  आवागमन, ७६ सुभाष,  ७७ शुभ प्रभात, ७८ सुतवधू, ७९ वाक् बंद है, ८० नव जतन हो, ८१ साधना, ८२ उल्लू , ८३ बजट, ८४ सुतवधु , ८५ ऋतुराज, ८६ शीत, ८७ सावित्री, ८८ लता, ८९ परापरा, ९० क्यों?, ९१ बसंत, ९२ रस, ९३ चुनाव, ९४ दयानन्द, ९५ वसुधा, ९६ रामजी, ९७ सदा सुहागिन, ९८ धीर धरकर, ९९ प्रभु जी!, १०० शुभेच्छा, १०१ अधिनायक, १०२ वह, १०३ शुभकामना, १०४ नदी, १०५ मातृभाषा, १०६ आँसू, १०७ सूरज, १०८ वंदे मातरम्, १०९ वसुंधरा, ११० तुम, १११ ख़्वाब, ११२ मानव, ११३  शेर, ११४   
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११३ शेर  
चूहे को पंजे में दाब शेर मुस्काए। 
चीं-चीं कर चूहा चाहे निज जान बचाए। 
शांति वार्ता का नाटक जग के मन भाए।।  
बंदर झूल शाख पर जय-जयकार गुँजाए।। 

'भैंस उसी की जिसकी लाठी' अटल सत्य है। 
'माइट इज राइट' निर्बल ही पीटता आया। 
महाबली जो करे वही होता सुकृत्य है।।
मानव का इतिहास गया है फिर दुहराया।।

मनमानी को मन की बात बताते नेता। 
देश नहीं दल की जय-जय कर चमचे पाले। 
जनवाणी जन की बातों पर ध्यान न देता।। 
गुटबंदी सीता को दोषी बोल निकाले।।
  
निज करनी पर कहो बेशरम कब शरमाए। 
चूहे को पंजे में दाब शेर मुस्काए।।
२८-२-२०२२    
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११२ मानव
मानव वह जो कोशिश करता।
कदम-कदम नित आगे बढ़ता।
गिर-गिर, उठ-उठ फिर-फिर चलता।।
असफल होकर वरे सफलता।।

मानव ऐंठे नहीं अकारण।
लड़ बाधा का करे निवारण।
शरणागत का करता तारण।।
संयम-धैर्य करें हँस धारण।।

मानव सुर सम नहीं विलासी।
नहीं असुर सम वह खग्रासी।
कुछ यथार्थ जग, कुछ आभासी।।
आत्मोन्नति हित सदा प्रयासी।।

मानव सलिल-धार सम निर्मल।
करे साधना सतत अचंचल।।
२७-२-२०२२
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१११ ख्वाब  
हुआ हक़ीक़त रहा न ख्वाब
तुमको ज्योंही दिया गुलाब।
कौन ला सके बोलो ताब।।
चाँद लजाया ऐसी आब।। 

छूने से मैला हो रूप। 
तुमको पा मन खुश हो भूप। 
उजला उजला रूप अरूप।। 
तुम्हें देख धूमिल हो धूप।।

हारा हृदय, आप ही आप। 
शांत दग्ध उर का है ताप।  
हर्ष गया जीवन में व्याप।।

तजा द्वैत; अद्वैत वरा। 
खोटा मन हो गया खरा। 
खुद को खोकर तुम्हें वरा।।  
 
११० तुम 
आँख लगी तुम रहीं रिझाती।
आँख खुली हो जातीं गायब।
आँख मिली तुम रहीं लजाती।।
आँख झुकी झट रीझ गया रब।।

आँख उठाई दिल निसार है।
आँख लड़ाई दिलवर हारा।
आँख दिखाई, क्या न प्यार है?
आँख तरेरी उफ् फटकारा।।

आँख झपककर कहा न बोलो।
आँख अबोले रही बोलती।
आँख बरजती राज न खोलो।।
आँख लाल हो रही डोलती।।

आँख मुँदी तो हो तुम ही तुम।
आँख खुली तो हैं हम ही हम।।
२६-२-२०२२
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सॉनेट गीत
१०९ वसुंधरा
हम सबकी माँ वसुंधरा।
हमें गोद में सदा धरा।।
हम वसुधा की संतानें।
सब सहचर समान जानें।
उत्तम होना हम ठानें।।
हम हैं सद्गुण की खानें।।
हममें बुद्धि परा-अपरा।
हम सबकी माँ वसुंधरा।।
अनिल अनल नभ सलिल हमीं।
शशि-रवि तारक वृंद हमीं।
हम दर्शन, विज्ञान हमीं।।
आत्म हमीं, परमात्म हमीं।।
वैदिक ज्ञान यहीं उतरा।
हम सबकी माँ वसुंधरा।।
कल से कल की कथा कहें।
कलकल कर सब सदा बहें।
कलरव कर-सुन सभी सकें।।
कल की कल हम सतत बनें।।
हर जड़ चेतन हो सँवरा।
हम सब की माँ वसुंधरा।।
(विधा- अंग्रेजी छंद, शेक्सपीरियन सॉनेट)
२४-२-२०२२
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सॉनेट गीत
१०८ वंदे मातरम्
वंदे मातरम् कहना है।
माँ सम सुख-दुख तहना है।।
माँ ने हमको जन्म दिया।
दुग्ध पिलाया, बड़ा किया।
हर विपदा से बचा लिया।।
अपने पैरों खड़ा किया।।
माँ संग पल-पल रहना है।
वंदे मातरम् कहना है।।
नेह नर्मदा है मैया।
स्वर्गोपम इसकी छैंया।
हम सब डालें गलबैंयां।
मिल खेलें इसकी कैंया।।
धूप-छाँव सम सहना है।
वंदे मातरम् कहना है।।
सब धर्मों का मर्म यही।
काम करें निष्काम सही।
एक नीड़ जग, धरा मही।।
पछुआ-पुरवा लड़ी नहीं।।
धूप-छाँव संग सहना है।
वंदे मातरम् कहना है।।
२४-२-२०२२
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१०७ सूरज 
रोज निकलता नभ पर सूरज। 
उषा-धरा को तकता सूरज। 
आँख सेकता घर-घर सूरज।।
फिर भी कभी न थकता सूरज।।

रुके नहीं यायावर सूरज। 
दोपहरी भर रास रचाता। 
झुके नहीं, पछताकर सूरज।।
संध्या को ठेंगा दिखलाता।।

रजनी को अपनाता सूरज।
सारी रैन बिताता सूरज।।
राज नहीं बतलाता सूरज।  
हाथ नहीं फिर आता सूरज।।

जग में पूजा जाता सूरज। 
क्यों आँखें दिखलाता सूरज।। 
१०६ आँसू

यम सम्मुख सब झुके राम रे!
बन न सके क्यों कहो काम रे!
हाय! न यम से बचे राम रे!
मिट ही जाते सकल नाम रे!


कहें विधाता हुआ वाम रे!
हाथ न लेता कभी थाम रे!
मिटना तो क्यों दिया चाम रे!
हुई भोर की सदा शाम रे!

नाहक करते इंतिजाम रे!
यहाँ-वहाँ है कहाँ गाम रे!
कौन कहे कब हो विराम रे!
खास न कोई सभी आम रे!

काश हो सकें हम अकाम रे!
सम हो पाए छाँह-घाम रे!
२२-२-२०२२
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१०५ मातृभाषा

माँ की भाषा केवल ममता।
वात्सल्य व्याकरण अनोखा।
हर अक्षर है प्यारा चोखा।।
खूब लुटाती नेह न कमता।।


बारहखड़ी दूध की धारा।
शब्द-शब्द का अर्थ त्याग है।
वाक्य-छंद में भरा राग है।।
कथ्य गीत का तन-मन वारा।।

अलंकार लोरी में अनगिन।
रस सागर की लहरें मत गिन।
शिशु बन हो आनंदित पल-छिन।।

पल में तोला, पल में माशा।
श्वास-श्वास दे जन्म तराशा।
माँ की भाषा दूध-बताशा।।
२२-२-२०३२
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१०४ नदी
नदी नहीं है सिर्फ नदी।
जीवन-मृत्यु किनारे इसके।
सपने पलें सहारे इसके।।
देख नदी में अगिन सदी।।

मरु को मधुवन नदी बनाती।
मिले मेघ से जितना पानी।
सागर को जा देती दानी।।
जीवन को जीना सिखलाती।।

गर्मी-सर्दी, धूप-छाँव में।
पर्वत-जंगल नगर गाँव में।
बहती रुके न एक ठाँव में।।

जननी जन्मे, विहँस पालती।
काम न किंचित कभी टालती।
नव आशा का दीप बालती।।
२१-२-२०२२
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१०३ शुभकामना
सुमन करते आपका स्वागत।
भाल पर शोभित तिलक चंदन।
सफलता है द्वार पर आगत।।
हृदय करते आपका वंदन।।

अनिल कर दे श्वास हर सुरभित।
जया दे जय, जयी हो हर आस।
अनल से पा तेज हों प्रमुदित।।
धरा-नभ दे धैर्य शौर्य हुलास।।

सलिल सिंचित माथ हो गर्वित।
वरद हों कर, हृदय करुणापूर्ण।
दिशाएँ वर दें रहो चर्चित।।
हर विपद कर कोशिशें दें चूर्ण।।

वह मिले जो चाहते हैं आप।
यश युगों तक सके जग में व्याप।।
२०-२-२०२२
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१०२ वह

हमने उसे नहीं पहचाना।
गिला न शिकवा करता है वह।
रूप; रंग; आकार न जाना।।
करे परवरिश हम सबकी वह।।

लिया हमेशा सब कुछ उससे।
दिया न कुछ भी वापिस उसको।
उसकी करें शिकायत किससे?
उसका प्रतिनिधि मानें किसको?

कब भेजे?; कब हमें बुला ले?
क्यों भेजा है हमें जगत में?
कारण कुछ तो कभी बता दे।
मिले न क्यों वह कभी प्रगट में?

करे किसी से नहीं अदावत।
नहीं किसी से करे सखावत।।
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१०१ अधिनायक

पत्थर दिल होता अधिनायक।
आत्ममुग्ध, चमचा-शरणागत।
देख न पाता विपदा आगत।।
निज मुख निज महिमा अभिभाषक।।

जन की बात न सुनता, बहरा।
मन की बात कहे मनमानी।
भूला मिट जाता अभिमानी।।
जनमत विस्मृत किया ककहरा।।

तंत्र न जन का, दल का प्यारा।
समझ रहा है मैदां मारा।
देख न पाता, लोक न हारा।।

हो उदार, जनमत पहचाने।
सब हों साथ, नहीं क्यों ठाने।
दल न, देश के पढ़े तराने।।
१९-२-२०२२
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१०० शुभेच्छा
नहीं अन्य की, निज त्रुटि लेखें।
दोष मुक्त हो सकें ईश! हम।
सद्गुण औरों से नित सीखें।।
काम करें निष्काम सदा हम।।

नहीं सफलता पा खुश ज्यादा।
नहीं विफल हो वरें हताशा।
फिर फिर कोशिश खुद से वादा।।
पल पल मन में पले नवाशा।।

श्रम सीकर से नित्य नहाएँ।
बाधा से लड़ कदम बढ़ाएँ।
कर संतोष सदा सुख पाएँ।।
प्रभु के प्रति आभार जताएँ।।

आत्मदीप जल सब तम हर ले।
जग जग में उजियारा कर दे।।
१८-२-२०२२
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९९ प्रभु जी!
प्रभु जी! तुम नेता, हम जनता।
झूठे सपने हमें दिखाते।
समर चुनावी जब-जब ठनता।।
वादे कर जुमला बतलाते।।

प्रभु जी! अफसर, हम हैं चाकर।
लंच-डिनर ले पैग चढ़ाते।
खाता चालू हम, तुम लॉकर।।
रिश्वत ले, फ़ाइलें बढ़ाते।।

प्रभु जी धनपति, हम किसान हैं।
खेत छीन फैक्टरी बनाते।
प्रभु जी कोर्ट, वकील न्याय हैं।।
दर्शन दुलभ घर बिकवाते।।

प्रभु कोरोना, हम मरीज हैं।
बादशाह प्रभु हम कनीज़ हैं।।
१७-२-२०२२ 
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९८ धीर धरकर
पीर सहिए, धीर धरिए।
आह को भी वाह कहिए।
बात मन में छिपा रहिए।।
हवा के सँग मौन बहिए।।
मधुर सुधियों सँग महकिए।
स्नेहियों को चुप सुमिरिए।
कहाँ क्या शुभ लेख तहिए।।
दर्द हो बेदर्द सहिए।।
श्वास इंजिन, आस पहिए।
देह वाहन ठीक रखिए।
बनें दिनकर, नहीं रुकिए।।
असत् के आगे न झुकिए।।
शिला पर सिर मत पटकिए।
मान सुख-दुख सम विहँसिए।।
१६-२-२०२२
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९७ सदा सुहागिन
खिलती-हँसती सदा सुहागिन।
प्रिय-बाहों में रहे चहकती।
वर्षा-गर्मी हँसकर सहती।।
करे मकां-घर सदा सुहागिन।।

गमला; क्यारी या वन-उपवन।
जड़ें जमा ले, नहीं भटकती।
बाधाओं से नहीं अटकती।।
कहीं न होती किंचित उन्मन।।

दूर व्याधियाँ अगिन भगाती।
अपनों को संबल दे-पाती।
जीवट की जय जय गुंजाती।।

है अविनाशी सदा सुहागिन।
प्रिय-मन-वासी सदा सुहागिन।
बारहमासी सदा सुहागिन
•••
९६ रामजी
मन की बातें करें रामजी।
वादे कर जुमला बतला दें।
जन से घातें करें रामजी।।
गले मिलें, ठेंगा दिखला दे।।

अपनी छवि पर आप रीझते।
बात-बात में आग उगलते।
सत्य देख-सुन रूठ-खीजते।।
कड़वा थूकें, मधुर निगलते।।

टैक्स बढ़ाएँ, रोजी छीने।
चीन्ह-चीन्ह रेवड़ियाँ बाँटें।
ख्वाब दिखाते कहें नगीने।।
काम कराकर मारें चाँटे।।

सिय जंगल में पठा रामजी।
सत्ता सुख लें ठठा रामजी।।
१४-२-२०२२
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९५ वसुधा
वसुधा धीर जवान गगन सी।
सखी पीर को गले लगाती।
चुप सह लेती, फिर मुसकाती।।
रही गुनगुना आप मगन सी।।

करें कनुप्रिया का हरि वंदन।
साथ रहें गोवर्धन पूजें।
दूर रहें सुधियों में डूबें।।
विरह व्यथा हो शीतल चंदन।

सुख मेहमां, दुख रहवासी हम।
विपिन विहारी, वनवासी हम।
भोग-योगकर सन्यासी हम।।

वसुधा पर्वत-सागर जंगल।
वसुधा खातिर होते दंगल।
वसुधा करती सबका मंगल।।
१४-२-२०२२
९४ दयानन्द
शारद माँ के तप: पूत हे!
करी दया आनंद  लुटाया।
वेद-ज्ञान-पर्याय दूत हे!
मिटा असत्य, सत्य बतलाया।।

अंध-भक्ति का खंडन-मंडन। 
पार्थिव-पूजन को ठुकराया। 
सत्य-शक्ति का ले अवलंबन।। 
आडंबर को धूल मिलाया।। 

राजशक्ति से निर्भय जूझे। 
लोकशक्ति को जगा उठाया। 
अनगिन प्रश्न निरंतर बूझे।।
प्राणदीप अनवरत जलाया।।

प्रतिष्ठित की आर्य भाषा। 
भाग्य भारत का तराशा।।  
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९३ चुनाव
लबरों झूठों के दिन आए।
छोटे कद, वादे हैं ऊँचे।
बातें कड़वी, जहर उलीचे।।
प्रभु ये दिन फिर मत दिखलाए।।

फूटी आँख न सुहा रहे हैं।
कीचड़ औरों पर उछालते।
स्वार्थ हेतु करते बगावतें।।
निज औकातें बता रहे हैं।।

केर-बेर का संग हो रहा।
सुधरो, जन धैर्य खो रहा।
भाग्य देश का हाय सो रहा।।

नाग-साँप हैं, किसको चुन लें?
सोच-सोच अपना सिर धुन लें।
जन जागे, नव सपने बुन ले।।
१३-२-२०२२
•••
९२ रस
रस गागर रीते फिर फिर भर।
तरस न बरस सरस होकर मन।
नीरस मत हो, हरष हुलस कर।।
कलकल कर निर्झर सम हर जन।।

दरस परस कर, उमग-उमगकर।
रूपराशि लख, मादक चितवन।
रसनिधि अक्षर नटवर-पथ पर।।
हो रस लीन श्वास कर मधुबन।।

जग रसखान मान, अँजुरी भर।
नेह नर्मदा जल पी आत्मन!
कर रस पान, पुलक जय-जयकर।।
सुबह शाम हर फागुन-सावन।।

लगे हाथ रस गर न बना रस।
लूट लुटा रे धँस-हँस बतरस ।।
११-२-२०२२
९१ बसंत
पत्ता पत्ता झूम नाचता।
कूक सारिका लुकती छिपती।
प्रणय ऋचाएँ सुआ बाँचता।।
राह भ्रमर की कलिका तकती।।

धार किनारों से भुज भेंटे।
लहर लहर को गले लगाती।
तितली रूप छटा पर ऐंठे।।
फूल फूल जा गेह भुलाती।।

मन कुलाँच भरता हिरनों सम।
हिरन हुआ होश महुआ का।
हेर राह प्रिय की अँखियाँ नम।।
भेद भूल पुरवा-पछुआ का।।

जप-तप बिसरा, तकें संत जी।
कहाँ अप्सरा है बसंत जी।।
१०-२-२०२२
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९० क्यों?

अघटित क्यों नित घटता हे प्रभु?
कैसे हो तुम पर विश्वास?
सज्जन क्यों पाते हैं त्रास?
अनाचार क्यों बढ़ता हे विभु?

कालजयी क्यों असत्-तिमिर है?
क्यों क्षणभंगुर सत्य प्रकाश?
क्यों बाँधे मोहों के पाश?
क्यों स्वार्थों हित श्वास-समर है?

क्यों माया की छाया भाती?
क्यों काया सज सजा लुभाती?
क्यों भाती है ठकुरसुहाती?

क्यों करते नित मन की बातें?
क्यों न सुन रहे जन की बातें?
क्यों पाते-दे मातें-घातें?
९-२-२०२२
•••
८९ परापरा 
*
सुमति-कुमति हर हृदय बसी हैं।
सुमति ज्ञान की राह दिखाती।
कुमति सत्य-पथ से भटकाती।।
अपरा-परा न दूर रही हैं।।

परा मूल है, छाया अपरा।
पुरुष-प्रकृति सम हैं यह मानो।
अपरा नश्वर है सच मानो।।
अविनाशी अक्षरा है परा।।

उपज परा से मिले परा में।
जीव न जाने जा अपरा में।
मिले परात्पर आप परा में।।

अपरा राह साध्य यह जानो।
परा लक्ष्य अक्षर पहचानो।
भूलो भेद, ऐक्य अनुमानो।।
८-२-२०२२ 
••
८८ लता
लता ताल की मुरझ सूखती।
काल कलानिधि लूट ले गया।
साथ सुरों का छूट ही गया।।
रस धारा हो विकल कलपती।।

लय हो विलय, मलय हो चुप है।
गति-यति थमकर रुद्ध हुई है।
सुमिर सुमिर सुधि शुद्ध हुई है।।
अब गत आगत तव पग-नत है।।

शारदसुता शारदापुर जा।
शारद से आशीष रही पा।
शारद माँ को खूब रहीं भा।।

हुआ न होगा तुमसा कोई।
गीत सिसकते, ग़ज़लें रोई।
खोकर लता मौसिकी रोई।।
६-२-२०२२

प्रिय बहिन डॉक्टर नीलमणि 
सॉनेट
८७ सावित्री
सावित्री जीती या हारी?
काल कहे क्या?, शीश झुकाए।
सत्यवान को छोड़ न पाए।।
नियति विवशता की बलिहारी।।

प्रेम लगन निस्वार्थ समर्पण।
प्रिय पर खुद को वार दिया था।
निज इच्छा को मार दिया था।।
किया कामनाओं का तर्पण।।

श्वास श्वास के संग गुँथी थी।
आस आस के साथ बँधी थी।
धड़कन जैसे साथ नथी थी।।

अब प्रिय तुममें समा गए हैं।
जग को लगता बिला गए हैं।
तुम्हें पता दो, एक हुए हैं।।
***
प्रिय बहिन डॉक्टर नीलमणि दुबे प्राण प्रण से तीन दशकीय सेवा करने के बाद भी, अपने सर्वस्व जीवनसाथी को बचा नहीं सकीं। जीवन का पल पल जीवनसाथी के प्रति समर्पित कर सावित्री को जीवन में उतारकर काल को रोके रखा। कल सायंकाल डॉक्टर दुबे नश्वर तन छोड़कर नीलमणि जी से एकाकार हो गए।
मेरा, मेरे परिवार और अभियान परिवार के शत शत प्रणाम।
••
८६ शीत
पलट शीत फिर फिर है आती।
सखी! चुनावी नेता जैसे।
रँभा रहीं पगुराती भैंसे।।
यह क्यों बे मौसम टर्राती।।
कँपा रही है हाड़-माँस तक।
छुड़ा रही छक्के, छक्का जड़।
खड़ी द्वार पर, बन छक्का अड़।।
जमी जा रही हाय श्वास तक।।
सूरज ओढ़े मेघ रजाई।
उषा नवेली नार सुहाई।
रिसा रही वसुधा महताई।।
पाला से पाला है दैया।
लिपटे-चिपटे सजनी-सैंया।
लल्ला मचले लै लै कैंया।।
५-२-२०२२
•••
•••
८५ ऋतुराज
ऋतुराज का स्वागत करो!
पवन पिक हिलमिल रहे हैं
आम्र तरुवर खिल रहे हैं।।
पुलक पल पल सुख वरो।।

सुमन चहके, सुमन महके।
भ्रमर कर रसपान उन्मत।
फलवती हो मिलन चाहत।।
रहीं कलिकाएँ दहक।।

बाग में गुंजार रसमय।
काममय संसार मधुमय।
बिन पिए भी चढ़ी है मय।।

भोगियों को है नहीं भय।
रोगियों का रोग हो क्षय।
योगियों होना न निर्भय।।
४-२-२०२२
•••
८४ सुतवधु 
*
सुतवधु आई, पर्व मन रहा।
गूँज रही है शहनाई भी।
ऋतु बसंत मनहर आई सी।। 
खुशियों का वातास तन रहा।। 

ऊषा प्रमुदित कर अगवानी।
रश्मिरथी करता है स्वागत। 
नज़र उतारे विनत अनागत।।  
शुभद सुखद हों मातु भवानी।।

जाग्रत धूम्रित श्वास वेदिका। 
गुंजित दस दिश ऋचा गीतिका।
परचम ऊँचा रहे प्रीति का।।
 
वरद रहें नटवर अभ्यंकर।
रहे सुवासित नित मन्वन्तर।
सलिल साधना हो हरी सुखकर।।
३-२-२०२२ 
***
***
८३ बजट  
*
जनगण  का धन, धनपति पाएँ। 
आम लोग हों निर्धन ज्यादा। 
सरकारों का यही इरादा।।
श्रमिक-कृषक भूखे सो जाएँ।।  

आँखों को सपने दिखला दो।
हाथों में झुनझुना थमाकर। 
भूखा सो जा पैर मोड़कर।।  
राम नाम लेकर बहका दो।।

रोजी छिनी, न शोर मचाओ। 
थाम कटोरा, दर-दर जाओ। 
रोटी माँगो, लाठी खाओ। 

क्या थे?, क्या हो? भेद भुलाओ।।
मंत्री जी की जय-जय गाओ।।
टुकड़े पाकर पूँछ हिलाओ।।
२-२-२०२२ 
***
८२ उल्लू
*
एक ही उल्लू काफी था।
हर शाख पे उल्लू बैठा है।
केवल मन मंदिर बाकी था।।
भय कोरोना का पैसा है।।

सोहर बन्ना बन्नी गाने।
जुड़ने से हम कतराते हैं।
लाशें बिन काँध पड़ी रहतीं।।
हम बलिपंथी भय खाते हैं।।

हमसे नारे लगवालो तुम।
हम संसद में जा झगड़ेंगे।
कविताएँ सौ लिख लेंगे हम।।
हर दर पर नाकें रगड़ेंगे।।

उल्लू को उल्लू मत बोलो।
उल्लू वंदन कर यश ले लो।।
१-२-२०२२
•••
८१ साधना
*
साध पले मन में सतत, साध सके तो साध।
करे साध्य की साधना, संसाधन संसाध्य।
जीव रहे पल पल निरत, हो संजीव अबाध।।
तजे काम मत कामना, हो प्रसन्न आराध्य।।

श्वास श्वास घुल-मिल सके, आस-आस हो संग।
नयनों में हो निमंत्रण, अधरों पर हो हास।।
जीवन में बिखरें तभी, खुशहाली के रंग।।
लिए हाथ में हाथ हो, जब जब खासमखास।।

योग-भोग का समन्वय, सभी सुखों का मूल।
प्रकृति-पुरुष हों शिवा-शिव, रमा-रमेश सुजान।
धूप-छाँव में साथ रह, इक दूजे अनुकूल।।
रसमय हों रसलीन हों, हों रसनिधि रसखान।।

हाथ हाथ में हाथ ले, हाथ हाथ के साथ।
साथ निभाने चल पड़ा, रखकर ऊँचा माथ।।
३१-१-२०२२
●●●
***
८० नव जतन हो
*
अब तो इस तालाब का पानी बदल दो। 
ये कमल के फूल मुरझाने लगे हैं। 
उठो, जागो देश को अब नई शकल दो।।
मूक कोयल, काग फरमाने लगे हैं।।

बंग भू ने अहं को धरती सुँघाई।
झुका सत्ता के न सम्मुख, जाट जीता। 
रौंद जन को कौन सत्ता टिकी भाई?
जो न बदला हो गया इतिहास बीता।। 

अंधभक्तों से न बातें अकल की कर। 
सच न सुनना, झूठ कहना ठानते वे।
सत्य के पर्याय पर लांछन लगाकर।। 
मार गोली अमर होंगे मानते वे।।

सत्य की जय हेतु फिर से नव जतन हो। 
मुदित धरती और हर्षित तब गगन हो।।
***
७९ वाक् बंद है
*
बकर-बकर बोलेंगे नेता।
सुन, जनता की वाक् बंद है।
यह वादे, वह जुमले देता।।
दल का दलदल, मची गंद है।।

अंधभक्त खुद को सराहता।
जातिवाद है तुरुपी इक्का।
कैसे भी हो, ताज चाहता।।
खोटा दलित दलों का सिक्का।।

जोड़-घटाने, गुणा-भाग में।
सबके सब हैं चतुर-सयाने।
तेल छिड़कते लगी आग में।।
बाज परिंदे लगे रिझाने।।

खैर न जनमत की है भैया!
घर फूँकें नच ता ता थैया।।
३०-१०२०२२
***
७८ सुतवधु
*
विनत सुशीला सुतवधु प्यारी।
हिलती-मिलती नीर-क्षीर सी।
नव नातों की गाथा न्यारी।।
गति-यति संगम धरा-धीर सी।।

तज निज जनक, श्वसुर गृह आई।
नयनों में अनगिनती सपने।
सासू माँ ने की पहुनाई।।
जो थे गैर, वही अब अपने।।

नव कुल, नव पहचान मिली है।
नई डगर नव मंज़िल पाना।
हृदय कली हो मुदित खिली है।।
नित्य सफलता-गीत सुनाना।।

शुभाशीष जो चाहो पाओ।
जग-जीवन को पूर्ण बनाओ।।
३०-१-२०२२
***
७७ शुभ प्रभात 
*
सबका शुभ-मंगल करिए प्रभु!
हर चेहरे पर हो प्रसन्नता।
हृदय हृदय से मिले, खिले विभु!
कहीं न किंचित् हो विपन्नता।।

शरणागत हम राह दिखाओ।
मति दो सबके काम आ सकें।
भूल-चूक हर हँस बिसराओ।।
सबसे शुभ आशीष पा सकें।।

अहंकार हर, हर लो, हे हर!
डमडम डमरू नाद सुनाओ।
कार्य सधे सब हे अभ्यंकर!
गणपति-कार्तिक मंगल गाओ।

जगजननी ममता बरसाओ।
मन मंदिर से कहीं न जाओ।।
२४-१-२०२२
***
७६ सुभाष 
*
नरनाहर शार्दूल था, भारत माँ का लाल।
आजादी का पहरुआ, परचम बना सुभाष।
जान हथेली पर लिए, ऊँचा रख निज भाल।।
मृत्युंजय है अमर यश, कीर्ति छुए आकाश।।

जीवन का उद्देश्य था, हिंद करें आजाद।
शत्रु शत्रु का मित्र कह, उन्हें ले लिया साथ।
जैसे भी हो कर सकें, दुश्मन को बर्बाद।।
नीति-रीति चाणक्य की, झुके न अपना माथ।।

नियति नटी से जूझकर, लिखा नया इतिहास।
काम किया निष्काम हर, कर्मयोग हृद धार।
बाकी नायक खास थे, तुम थे खासमखास।।
ख्वाब तुम्हारे करें हम, मिल-जुलकर साकार।।

आजादी की चेतना, तुममें थी जीवंत।
तुम जैसा दूजा नहीं, योद्धा नायक संत।।
२३-१-२०२२
***
७५ आवागमन 
*
देह मृण्मय रहो तन्मय।
श्वास अगली है अनिश्चित।
गमन से क्यों हो कहें भय।।
लौट आना है सुनिश्चित।।

दूर करती अनबनों से।
क्या गलत है, क्या सही है?
मुक्त करती बंधनों से।।
मौत तो मातामही है।।

चाह करते जिंदगी की।
कशमकश में है गुजरती।
राह भूले बंदगी की।।
थके आ-जा दम ठहरती।।

डूब सूरज, उगे फिर कल
भूल किलकिल, करो खिलखिल।।
२२-१-२०२२
***
७४ छीछालेदर 
*
है चुनाव हो छीछालेदर। 
नूराकुश्ती खेले नेता। 
सत्ता पाता वादे देकर।।
अनचाहे वोटर मत देता।।

नाग साँप बिच्छू सम्मुख हैं। 
भोले भंडारी है जनता।  
जिसे चुनो डँसता यह दुख है।। 
खुद को खुद मतदाता ठगता।।

टोपी दाढ़ी जैकेट झंडा। 
डंडा थामे है हर बंदा। 
जोश न होता ठगकर ठंडा।।
खेल सियासत बेहद गंदा।।

राम न बाकी; नहीं सिया-सत। 
लत न न्याय की; अदा अदालत।।  
***
७३ हेरा-फेरी
*
इसकी टोपी उसके सर पर। 
उसकी झोली इसके काँधे। 
डमरू बजा नजर जो बाँधे
वही बैठता है कुर्सी पर

नेता बाज; लोक है तीतर। 
पूँजीपति हँस  डाले दाना। 
चुग्गा चुगता सदा सयाना।। 
बिन बाजी जो जीते अफसर। 

है गणतंत्र; तंत्र गन-धारी। 
संसद-सांसद वाक्-बिहारी। 
न्यायपालिका है तकरारी। 

हक्का बक्का हैं त्रिपुरारी। 
पंडिताई धंधा बाजारी। 
पैसा फेंक देख छवि प्यारी।।
२१-१-२०२१ 
***
७२ बिरजू महाराज
*
ताल-थाप घुँघरू मादल
एक साथ हो मौन गए
नृत्य कथाएँ कौन कहे?
कौन भरे रस की छागल??

रहकर भी थे रहे नहीं
अपनी दुनिया में थे लीन
रहे सुनाते नर्तन-बीन
जाकर भी हो गए नहीं

नटसम्राट अनूठे तुम
फिर आओ पथ हेरें हम
नहीं करेंगे हम मातम

आँख भले हो जाए नम
जब तक अपनी दम में दम
छवियाँ नित सुमिरेंगे हम
१८-१-२०२२
***
७१ दीप प्रज्जवलन
*
दीप ज्योति सब तम हरे, दस दिश करे प्रकाश।
नव प्रयास हो वर्तिका, ज्योति तेल जल आप।
पंथ दिखाएँ लक्ष्य वर, हम छू लें आकाश।।
शिखर-गह्वर को साथ मिल, चलिए हम लें नाप।।

पवन परीक्षा ले भले, कँपे शिखा रह शांत। 
जले सुस्वागत कह सतत, कर नर्तन वर दीप।
अगरु सुगंध बिखेर दे, रहता धूम्र प्रशांत।।
भवसागर निर्भीक हो, मन मोती तन सीप।।

एक नेक मिल कर सकें, शारद का आह्वान। 
चित्र गुप्त साकार हो, भाव गहें आकार।
श्री गणेश विघ्नेश हर, विघ्न ग्रहणकर मान।।
शुभाशीष दें चल सके, शुभद क्रिया व्यापार।।

दीप जले जलता रहे, हर पग पाए राह।
जिसके मन में जो पली, पूरी हो वह चाह।।
छंद- दोहा
१८-१-२०२२
***
७० टू मच 
*
कण-कण में जो बस रहा
सकल सृष्टि जो रच रहा
कहिए किसके बस रहा?
बाँच रहा, खुद बँच रहा।

हँसा रहा चुप हँस रहा
लगे झूठ पर सच कहा
जीव पंक में फँस रहा
क्यों न मोह से बच रहा।

काल निरंतर डँस रहा
महाकाल जो नच रहा
बाहुबली में कस रहा
जो वह प्रेमिल टच रहा।

सबको प्रिय निज जस रहा।
कौन कहे टू मच रहा।।
१७-१-२०२२
***
६९ सॉनेट 
राम-श्याम
*
राम-राम जप जग तरे 
जिए कहे जय राम जी 
सिया-राम-पग सर धरे 
भव तारे यह नाम जी 

श्याम सरस लीला करे
नटखट माखनचोर बन 
मित्रों की पीड़ा हरे 
छत्र सदृश घनश्याम तन 

राम-श्याम दोउ एक हैं 
भिन्न नहीं जानो इन्हें 
कारज करते नेक हैं 
सब अपना मानो इन्हें 

हरते सभी अनिष्ट हैं  
दोनों जनगण इष्ट हैं। 
१६-१-२०२२  
*** 
६८ मानस-गीता 
*
मानस कहती धर्म राह चल 
गीता कहती कर्म नहीं तज 
यह रखती मर्यादा पल-पल 
वह कहती मत स्वार्थ कभी भज 

इसमें लोक शक्ति हो जाग्रत 
उसमें राजशक्ति निर्णायक 
इसमें सत्ता जन पर आश्रित 
उसमें सत्ता बनी नियामक 

इसका नायक है पुरुषोत्तम
प्रतिनायक विद्वान् धीर है  
उसका नायक है रसिकोत्तम 
प्रतिनायक क्रोधी; अधीर है 

सीख मिले दोनों से एक 
विजयी होता सत्य-विवेक 
१६-१-२०२२ 
***  
६७ मानस
*
भक्ति करो निष्काम रह
प्रभु चरणों में समर्पित 
हर पल मन जय राम कह
लोभ मोह मद कर विजित।

सत्ता जन सेवा करे
रहे वीतरागी सदा
जुमलाबाजी मत करे
रहे न नृप खुद पर फिदा।

वरण धर्म पथ का करो
जनगण की बाधा हरो।
१६-१-२०२२
***
६६ गीता
*
जो बीता वह भुलाकर
जो आगत वह सोच रे,
रख मत किंचित लोच रे! 
कर्म करो फल भुलाकर।

क्या लाए जो खो सके?
क्या जाएगा साथ रे?
डर मत, झुका न माथ रे!
काल न रोके से रुके।

कौन यहाँ किसका सगा?
कर विश्वास मिले दगा
जीव मोह में है पगा।

त्याग न लज्जा, शर्म कर,
निर्भय रहकर कर्म कर 
चलो हमेशा धर्म पर।
१६-१-२०२२
***
६५ सॉनेट 
थल सेना दिवस 
*
वीर बहादुर पराक्रमी है, भारत की थल सेना। २८ 
जान हथेली पर ले लड़ती, शत्रु देख थर्राता।
देश भक्ति है इनकी रग में, कुछ न चाहते लेना।।
एक एक सैनिक सौ सौ से, टकराकर जय पाता।।

फील्ड मार्शल करियप्पा थे, पहले सेनानायक। 
जिनका जन्म हुआ भारत में, पहला युद्ध लड़ा था। 
दुश्मन के छक्के छुड़वाए थे, वे सब विधि लायक।।
उनन्चास में प्रमुख बने थे, नव इतिहास लिखा था।।

त्रेपन में हो गए रिटायर, नव इतिहास बनाकर। 
जिस दिन प्रमुख बने वह दिन ही, सेना दिवस कहाता।।
याद उन्हें करते हैं हम सब, सेना दिवस मनाकर।।
देश समूचा बलिदानी से, नित्य प्रेरणा पाता।।

युवा जुड़ें हँस सेनाओं से, बनें देश का गौरव। 
वीर कथाओं से ही बढ़ता, सदा देश का वैभव।।
१५-१-२०२२ 
***  
६४ आशा
*
गाओ मंगल गीत, सूर्य उत्तरायण हुआ।
नवल सृजन की रीत, नव आशा ले धर्म कर।
तनिक न हो भयभीत, कभी न निष्फल कर्म कर।।
काम करो निष्काम, हर निर्मल मन दे दुआ।।

उड़ा उमंग पतंग, आशा के आकाश में।
सीकर में अवगाह, नेह नर्मदा स्नान कर।
तिल-गुड़ पौष्टिक-मिष्ठ, दे-ले सबका मान कर।।
करो साधना सफल, बँधो-बाँध भुजपाश में।।

अग्नि जलाकर नाच, ईर्ष्या-क्रोध सभी जले।
बीहू से सोल्लास, बैसाखी पोंगल मिले।
दे संक्रांति उजास, शतदल सम हर मन खिले।।

निकट रहो या दूर, नेह डोर टूटे नहीं।
मन में बस बन याद, संग कभी छूटे नहीं।
करो सदा संतोष, काल इसे लूटे नहीं।।
१५-१-२०२२
***
६३ संक्रांति
*
भुवन भास्कर शत अभिनंदन
दक्षिणायणी था अब तक पथ।
उत्तरायणी होगा अब रथ।।
अर्पित अक्षत रोली चंदन।।
करूँ पुष्प बंधूक समर्पित।
दो संक्रांति काल को मति-गति।
शारद-रमा-उमा की हो युति।।
विधि-हरि-हर मन-मंदिर अर्चित।।
चित्र गुप्त उज्जवल हो अपना।
शुभ सबका, अब रहे न सपना।
सत-शिव-सुंदर हो प्रभु! नपना।।
पोंगल बैसाखी हँस गाए।
बीहू सबको गले लगाए।
मिल खिचड़ी गुड़ लड्डू खाए।।
१४-१-२०२२
***
६२ रस
*
रस जीवन का सार है।
रस बिन नीरस जिंदगी।
रसमय प्रभु की बंदगी।।
सरस ईश साकार है।।


नीरसता भाती नहीं।
बरस बरस रस बरसता।
रस पाने मन तरसता।।
पारसता आती नहीं।।


परस मिले प्रिय का सदा।
चरस दूर हो सर्वदा।
दरस ईश का हो बदा।


हो रसलीन करूँ सृजन।।
रसानंद पा कर जतन।।
हो रसनिधि रसखान मन।।
१४-१-२०२२
***
***
६१ महर्षि महेश योगी
*
गुरु-पद-रज, आशीष था।
मार्ग आप अपना गढ़ा।
ध्यान मार्ग पर पग बढ़ा।।
योग हुआ पाथेय था।।

महिमा थी ओंकार की।
ब्रह्मानंद सुयश भजा।
फहराई जग में ध्वजा।।
बना विश्व सरकार दी।।

सपने थे अनगिन बुने।
वेद-ज्ञान हर जन गुने।
जतन निरंतर अनसुने।

पश्चिम नत हो सिर धुने।।
योग मार्ग अपना चुने।।
त्याग भोग के झुनझुने।।
१३-१-२०२२
***
६० लालबहादुर
*
छोटा कद, ऊँचा किरदार।
लालबहादुर नेता सच्चे।
सादे सरल जिस तरह बच्चे।।
भारत माँ पे हुए निसार।।


नन्हें ने दृढ़ कदम बढ़ाया।
विश्वशक्ति को धता बताया।
भूखा रहना मन को भाया।।
सीमा पर दुश्मन थर्राया।।

बापू के सच्चे अनुयायी।
दिशा देश को सही दिखायी।
जनगण से श्रद्धा नित पायी।

विजय पताका थी फहरार्ई।।
दुश्मन ने भी करी बड़ाई।।
सब दुनिया ने जय-जय गाई।।
१३-१-२०२२
***
५९ चिड़िया
*
चूँ चूँ चिड़िया फुर्र उड़े।
चुग्गा चुग चुपचाप।
चूजे चें-चें कर थके।।
लपक चुगाती आप।।
पंखों में लेती लुका।
कोई करे न तंग।
प्रभु का करती शुक्रिया।।
विपदा से कर जंग।।
पंख उगें तब नीड़ से
देखी आप निकाल।
उड़ गिर उठ नभ नाप ले
व्यर्थ बजा मत गाल।।
खोज संगिनी घर बसा।
लूट जिंदगी का मजा।।
१२-१-२०२२
***
५८ विवेकानंद
*
मिल विवेक आनंद जब दिखलाते हैं राह।
रामकृष्ण सह सारदा मिल करते उद्धार।
नर नरेंद्र-गुरु भक्ति जब होती समुद अथाह।।
बनें विवेकानंद तब कर शत बाधा पार।।


गुरु-प्रति निष्ठा-समर्पण बन जीवन-पाथेय।
संकट में संबल बने, करता आत्म प्रकाश।
विधि-हरि-हर हों सहायक, भाव-समाधि विधेय।।
धरती को कर बिछौने, ओढ़े हँस आकाश।।


लगन-परिश्रम-त्याग-तप, दीन-हीन सेवार्थ।
रहा समर्पित अहर्निश मानव-मानस श्रेष्ठ।
सर्व धर्म समभाव को जिया सदा सर्वार्थ।।
कभी न छू पाया तुम्हें, काम-क्रोध-मद नेष्ठ।।


जाकर भी जाते नहीं, करते जग-कल्याण।
स्वामि विवेकानंद पथ, अपना तब हो त्राण।।
१२-१-२०२२
***
५७ हिंदी
*
जगवाणी हिंदी का वंदन, इसका वैभव अनुपम अक्षय।
हिंदी है कृषकों की भाषा, श्रमिकों को हिंदी प्यारी है। 
मध्यम वर्ग कॉंवेंटी है, रंग बदलता व्यापारी है।। 
जनवाणी, हैं तंत्र विरोधी, न्यायपालिका अंग्रेजीमय।। 

बच्चों से जब भी बतियाएँ, केवल हिंदी में बतियाएँ। 
अन्य बोलिओं-भाषाओँ को, सिखा-पढ़ाएँ साथ-साथ ही।  
ह्रदय-दिमाग न हिंदी भूले, हिंदी पुस्तक लिए हाथ भी।। 
हिंदी में प्रार्थना कराएँ, भजन-कीर्तन नित करवाएँ।।
 
शिक्षा का माध्यम हिंदी हो, हिंदी में हो काम-काज भी। 
क्यों अंग्रेजी के चारण हैं,  तनिक न आती हया-लाज भी। 
हिंदी है सहमी गौरैया, अंग्रेजी है निठुर बाज सी। 

शिवा कह रहे हैं शिव जी को, कैसे आए राम राज जी?
हो जब निज भाषा में शिक्षा, तभी सधेंगे, सभी काज जी।
देवनागरी में लिखिए हर भाषा, होगा तब सुराज जी।। 
***
५६ मरने न दीजिए 
जात को अपनी कभी मरने न दीजिए।
बात से फिरिए नहीं, तभी तो बात है।
ऐब को यह जिस्म-जां चरने न दीजिए।।
करें फरेब जीत मिले तो भी मात है।।

फायदा हो कायदे से तभी लीजिए। 
छीनिए मत और से, न छीनने ही दें।
वायदा टूटे नहीं हर जतन कीजिए।।
पंछियों को अन्न कभी बीनने भी दें।।

दुर्दशा लोगों की देखकर पसीजिए। 
तंत्र रौंद लोक को गर्रा रहा हुज़ूर।  
आईने में देख शकल नहीं रीझिए।।
लोग मरे जा रहे हैं; देखिए जरूर।।

सचाई से आखें कभी चार कीजिए।
औरों की सुन; तनिक ख़ुशी कभी दीजिए।। 
१०-१-२०२२
***
५५ बातचीत 


९-१-२०२२ 
***
५४ तिल का ताड़
*
तिल का ताड़ बना रहे, भाँति-भाँति से लोग।
अघटित की संभावना, क्षुद्र चुनावी लाभ।
बौना खुद ओढ़कर, कहा न हो अजिताभ।।
नफरत फैला समझते, साध रहे हो योग।।

लोकतंत्र में लोक से, दूरी, भय, संदेह।
जन नेता जन से रखें, दूरी मन भय पाल।
गन के साये सिसकता, है गणतंत्र न ढाल।।
प्रजातंत्र की प्रजा को, करते महध अगेह।।

निकल मनोबल अहं का, बाना लेता धार।
निज कमियों का कर रहा, ढोलक पीट प्रचार।
जन को लांछित कर रहे, है न कहीं आधार।

भय का भूत डरा रहा, दिखे सामने हार।।
सत्ता हित बनिए नहीं, आप शेर से स्यार।।
जन मत हेतु न कीजिए, नौटंकी बेकार।।
८-१-२०२२
***
५३ साहब 
*
गाल उनके गुलाब हैं साहब। 
आब ज्यों माहताब  है साहब।
ताब तो आफताब है साहब।।
हाल हर लाजवाब है साहब।।

ज़ुल्फ़ उनकी नक़ाब है साहब।
मात उनसे उक़ाब है साहब। 
हाथ जिनके गिलास है साहब।। 
चाल सचमुच शराब है साहब।।

रंग उनका अजीब है साहब। 
जंग लगती करीब है साहब। 
ख्वाब उनका सलीब है साहब।

हाय दुनिया रकीब है साहब।। 
संग दिल हर गरीब है साहब।।
संग मिलना नसीब है साहब।।
*** 
५२ सॉनेट
*
सॉनेट रच आनंद मिला है।
मिल्टन-शेक्सपिअर आभार।
काव्य बाग में सुमन खिला है।।
आंग्ल काव्य का यह उपहार।।

लिखे त्रिलोचन ने, नियाज ने।
हैं संजीव, रामबली लिखते।
राग बजाए कलम साज ने।।
कथ्य भाव रस इनमें सजते।।

अलंकार रस बिंब सुसज्जित।
गूँथ कहावत अरु मुहावरे।
शब्द-नर्मदा हुए निमज्जित।।
कथ्य अनगिनत बोल खरे।।

शब्द-शक्तियाँ हों अभिव्यंजित।
सॉनेट विधा हुई अभिनंदित।।
७-१-२०२२
***
५१ चक्की
*
चक्की चलती समय की, पीस रही बारीक।
अलग सभी से दीख, बच जा कीली से चिपक।
दूर ईश से आत्म, काल करे स्वागत लपक।।
पक्षपात करती नहीं, सत्य सनातन लीक।।

चक्की पीसा ग्रहणकर, चले सृष्टि व्यापार।
अन्य पिसे तो हँसा, आप पिसा सब हँस रहे।
मोह जाल मजबूत, माया मृग जा फँस रहे।।
परम शक्ति गृहणी कुशल, पाले कह आभार।।

निशि-दिन चक्की पाट हैं, कीली है भगवान।
नादां प्रभु को भज बचे, जाने जीव सुजान।
हथदंडा है पुरोहित, दाना तू यजमान।
परम ब्रह्म है कील, सज समझ मौन मतिमान।।

शेष कर रहे भूल, भज सक न, भूल भगवान।।
कर्म-दंड चुप झेल, संबल प्रभु का गुणगान।।
६-१-२०२२ 
***
५० दीवार
*
क्या कहती? दीवार मनुज सुन।
पीड़ा मन की मन में तहना।
धूप-छाँव चुप हँसकर सहना।।
हो मजबूत सहारा दे तन।।
थक-रुक-चुक टिक गहे सहारा।
समय साइकिल को दुलराती।
सुना किसी को नहीं बताती।।
टिके साइकिल कह आभार।।
झाँक झरोखा दुनिया दिखती।
मेहनत अपनी किस्मत लिखती।
धूप-छाँव मिल सुख-दुख तहती।
दुनिया लीपे-पोते-रँगती।।
पर दीवार न तनिक बदलती।।
न ही किसी पर रीझ फिसलती।।
४-१-२०२२

***
४९  सरगम
*
सरगम में हैं शारदा, तारें हमको मात।
सरगम से सर गम सभी, करिए रहें प्रसन्न।
ज्ञान-ध्यान में लीन हों, ईश-कृपा आसन्न।।
चित्र गुप्त दिखता नहीं, नाद सृष्टि का तात।।

कलकल-कलरव सुन मिटे, मन का सभी तनाव।
कुहुक-कुहुक कोयल करे, भ्रमर करें गुंजार।
सरगम बिन सूना लगे, सब जीवन संसार।।
सात सिंधु स्वर सात 'सा', छोड़े अमित प्रभाव।।

'रे' मत सो अब जाग जा, करनी कर हँस नेक।
'गा' वह जो मन को छुए, खुशी दे सके नेंक।
'मा' मृदु ममता-मोह मय, मायाजाल न फेक।।

'पा' पाता-खोता विहँस, जाग्रत रखे विवेक।।
धारण करता 'धा' धरा, शेष न छोड़े टेक।।
लीक नीक 'नी' बनाता, 'सा' कहता प्रभु एक।।
संवस
३-१-२०२२
***
४८ सॉनेट 
चित्रगुप्त 
नाद अनाहद ब्रह्म परम् हे!
अक्षर अजर जन्मा-मरणा। 
मूल चराचर के अदृश्य हे!
तुम्हें सुमिर भवसागर तरणा।।

निराकार निर्गुण अविकारी। 
कौन नहीं जो उपजा तुमसे? 
चिदानंद आनंदविहारी।। 
कौन नाहने जा मिलता तुमसे? 

माया-मोह न छूटे जिनसे। 
वे जाकर फिर-फिर आते हैं। 
जो ध्याते वे छूटें भव से।।
चित्र गुप्त पा खो जाते हैं।।

कण-कण में भगवान तुम्हीं हो।।
लय-रस-गुण की खान तुम्हीं हो।।     

***
४७ सॉनेट 
सूरज 
*
सूरज प्यारा कभी न हारा। 
काम करे निष्काम भाव से। 
पल-पल बाँट रहा उजियारा।।
काम करे रह मौन चाव से।।

रजनी की आँखों का तारा। 
ऊषा बहिना बांधे राखी। 
किरण-सखा है रसिया न्यारा।।
वसुधा के सँग पढ़ता साखी।।

दोपहरी गृहणी पर रीझे। 
कर संध्या के करता पीले। 
शशि को सत्ता दे बिन खीझे।।
नील गगन झट उसको लीले।।

तारे चारण कीर्ति सुनाते। 
भुवन भास्कर पूजे जाते।।
१-१-२०२२
*** 
४६ सॉनेट
जाड़ा आया है
*
ठिठुर रहे हैं मूल्य पुराने, जाड़ा आया है।
हाथ तापने आदर्शों को सुलगाया हमने।
स्वार्थ साधने सुविधाओं से फुसलाया हमने।।
जनमत क्रयकर अपना जयकारा लगवाया है।।

अंधभक्ति की ओढ़ रजाई, करते खाट खड़ी। 
सरहद पर संकट के बादल, संसद एक नहीं। 
जंगल पर्वत नदी मिटाते, आफत है तगड़ी।। 
उलटी-सीधी चालें चलते, नीयत नेक नहीं।।

नफरत के सौदागर निश-दिन, जन को बाँट रहे। 
मुर्दे गड़े उखाड़ रहे, कर ऐक्य भावना नष्ट।  
मिलकर चोर सिपाही को ही, नाहक डाँट रहे।। 
सत्ता पाकर ऐंठ रहे, जनगण को बेहद कष्ट।।

गलत आँकड़े, झूठे वादे, दावे मनमाने। 
महारोग में रैली-भाषण, करते दीवाने।।
*** 
४५ सॉनेट
नया साल
*
नया साल है, नया हाल है, चाल नई।
आशा-आक्रमणों का सफर नया हो अब।
अमरकंटकी नीर सदा, निर्मल हो अब।।
याद न कर जो बीत गई सो बीत गई।।

बना सके तो बना सृजन की रीत नई।
जैसा था वैसा ही है इंसां, जग, रब।
किया न अब साकार करेगा सपना कब?
पुरा-पुरातन हो प्रतीत अब प्रीत नई।।

नया-पुराना, चित-पट, दो पहलू जैसे।
करवट बदले समय न जानें हम कैसे?
नहीं बदलते रहते जैसे के तैसे।

जैसे भी हो पाना चाहें पद-पैसे।
समझ न पाते अकल बड़ी हैं या भैंसें?
जैसी चाह आओ बन जाएँ, हम वैसे।।
१-१-२०२२ 
***
४४ सॉनेट
राग दरबारी
*
मेघ आच्छादित गगन है, रवि न दिखता खोज लाएँ।
लॉकडाउन कर चुनावी भीड़ बन हम गर्व करते।
खोद कब्रें, हड्डियों को अस्थियाँ कह मार मरते।।
राग दरबारी निरंतर सुनाकर नव वर्ष लाएँ।।
आम्रपाली के पुजारी, आपका बंटी सिरजते।
एक था चंदर सुधा को विवाहे, फिर छोड़ जाए।
थाम सत्ता सुंदरी की बाँह, जाने किसे ध्याए?
अब न दिव्या रही भव्या, चित्रलेखा सँग थिरकते।।
लक्ष्य मुर्दे उखाड़ें परिधान पहना नाम बदलें।
दुश्मनों के हाथ खाकर मात, नव उपलब्धि कह लें।।
असहमत को खोज कुचलें, देख दिल अपनों के दहलें।।
प्रदूषित कर हर नदी, बन अंधश्रद्धा सुमन बह लें।।
जड़ें खोदें रात-दिन, जड़मति न बोलें, अनय सह लें।।
अधर क्या कहते न सुनकर, लाठियाँ को हाथ धर लें।।
***
४३ सॉनेट 
अलविदा
*
अलविदा उसको जो जाना चाहता है, तुरत जाए।
काम दुनिया का किसी के बिन कभी रुकता नहीं है?
साथ देना चाहता जो वो कभी थकता नहीं है।।
रुके बेमन से नहीं, अहसान मत नाहक जताए।।
कौन किसका साथ देगा?, कौन कब मुँह मोड़ लेगा?
बिना जाने भी निरंतर कर्म करते जो न हारें।
काम कर निष्काम,खुद को लक्ष्य पर वे सदा वारें।।
काम अपना कर चुका, आगे नहीं वह काम देगा।।
व्यर्थ माया, मोह मत कर, राह अपनी तू चला चल।
कोशिशों के नयन में सपने सदृश गुप-चुप पला चल।
ऊगना यदि भोर में तो साँझ में हँसकर ढला चल।
आज से कर बात, था क्या कल?, रहेगा क्या कहो कल?
कर्म जैसा जो करेगा, मिले वैसा ही उसे फल।।
मुश्किलों की छातियों पर मूँग तू बिन रुक सतत दल।।
३१-१२-२०२१
*
४२ सॉनेट
ठंड
*
ठंड ठिठुरती गर्म सियासत।
स्वार्थ-सिद्धि ही बनी रवायत।
ईश्वर की है बहुत इनायत।।
दंड न देता सुने शिकायत।।
पाँच साल को सत्ता पाकर।
ऐंठ रहे नफरत फैलाकर।
आपन मूँ अपना गुण गाकर।।
साधु असाधु कर्म अपनाकर।।
जला झोपड़ी आग तापते।
मुश्किल से डर दूर भागते।
सच सूली पर नित्य टाँगते।।
झूठ बोलकर वोट माँगते।।
मत मतदान कभी करना बिक।
सदा योग्य पर ही रहना टिक।।
३०-१२-२०२१
***
४१ सॉनेट
शीत
प्रीत शीत से कीजिए, गर्मदिली के संग।
रीत-नीत हँस निभाएँ, खूब सेंकिए धूप।
जनसंख्या मत बढ़ाएँ, उतरेगा झट रंग।।
मँहगाई छू रही है, नभ फीका कर रूप।।
सूरज बब्बा पीत पड़, छिपा रहे निज फेस।
बादल कोरोना करे, सब जनगण को त्रस्त।
ट्रस्ट न उस पर कीजिए, लगा रहा है रेस।।
मस्त रहे जो हो रहे, युवा-बाल भी पस्त।।
दिल जलता है अगर तो, जलने दे ले ताप।
द्वार बंद रख, चुनावी ठंड न पाए पैठ।
दिलवर कंबल भा रहा, प्रियतम मत दे शाप।।
मान दिलरुबा रजाई, पहलू में छिप बैठ।।
रैली-मीटिंग भूल जा, नेता हैं बेकाम।
ओमिक्रान यदि हो गया, कोई न आए काम।।
२९-१२-२०२१
***
४० सॉनेट
गौरैया
*
बैठ डाल गौरैया चहके, साँझ सवेरे।
हँसती अधिक न रोती ज्यादा, चुग्गा चुगती।
चूजे भूखे उन्हें चुगाती, कर सौ फेरे।।
तनिक न थकती, करे न शिकवा, कभी न रुकती।।

पुरवैया हो या हो पछुआ, करे न नागा।
जोड़ न धरती, लोभ न करती, संतोषी है।
नहीं पैर को जूती, सिर पर रखे न पागा।।
मंदिर-मस्जिद नहीं, प्रेम की यह भूखी है।।

गूँज रही आवाज दूर तक, जगो-उठो रे!
कनक सरीखी धूप, सूर्य ने बिखराई है।
हिल-मिल रहो न आपस में तुम कभी लड़ो रे!!
अँगुली मिल हो मुट्ठी, जीत तभी पाई है।।

सलिल-धार से सीखो कलकल गाकर बहना।
प्यास बुझाना सबकी, मन की पीर न कहना।।
२८-१२-२०२१
*
३९ सॉनेट
चंपा
*
गमक रहा है चंपा महक रहा है।
कलियाँ झूम रहीं मदमाती-गातीं।
अठखेली करती हैं, हाथ न आतीं।।
पंखुड़ियों पर यौवन दमक रहा है।।

फूल कह रहे चादर में रख पैर।
गौरैया कहती सब बंधन तोड़ो।
आसमान को नापो, देहरी छोड़ो।।
आवारा भँवरों की रहे न खैर।।

पर्ण भाई का मान न घटने देना।
अपने सपने कोशिश कर-कर सेना।
मन भटकाए भ्रमर नहीं सँग लेना।

अपने बूते नाव हमेशा खेना।।
शाख साथ रह खाकर चना-चबेना।।
खिलना अपने कदम न रुकने देना।।
२८-१२-२०२१
*
३८ सॉनेट
उपनिषद
*
आत्मानंद नर्मदा देती, नाद अनाहद कलकल में।
धूप-छाँव सह अविचल रहती, ऊँच-नीच से रुके न बहती।
जान गई सच्चिदानंद है, जीवन की गति निश्छल में।।
जो बीता सो रीता, होनी हो, न आज चिंता तहती।।

आओ! बैठ समीप ध्यान कर गुरु से जान-पूछ लो सत्य।
जिज्ञासा कर, शंका मत कर, फलदायक विश्वास सदा।
श्रद्धा-पथिक ज्ञान पाता है, हटता जाता दूर असत्य।।
काम करो निष्काम भाव से, होनी हो, जो लिखा-बदा ।।

आत्म और परमात्म एक हैं, पूर्ण-अंश का नाता है।
उसको जानो, उस सम हो लो, सबमें झलक दिखे उसकी।
जिसको उसका द्वैत मिटे, अद्वैत एक्य बन जाता है।।
काम करो निष्काम भाव से, होगा वह जो गति जिसकी।।

करो उपनिषद चर्चा सब मिल, चित्त शांत हो, भ्रांति मिटे।
क्रांति तभी जब स्वार्थ छोड़, सर्वार्थ राह चल, शांति मिले।।
२७-१२-२०२१
***
३७ सॉनेट
कोरोना
*
कोरोना है मायावी, रूप बदलता है, नेता वत छलता है।
रातों को लॉकडाउन, करती हैं सरकारें, रैली-चुनाव होते।
जनता की छाती को, दिन-रात भक्त बनकर, यह छलनी करता है।।
दागी हैं जनप्रतिनिधि, हत्यारे जनमत के, नित स्वार्थ बीज बोते।।

कंपनी दवाई की, निष्ठुर व्यापारी है, जन-धन ले लूट रहीं।
ये अस्पताल डॉक्टर, धनलोलुप जनद्रोही, बेरहम कसाई रे!
है खेल कमीशन का, मँहगा इलाज बेहद, हर आशा टूट रही।।
चौथा खंबा बोले, सरकारों की भाषा, सच बात छिपाई रे!!

सब क्रिया-कर्म छूटे, कंधा भी न दे पाए, कैसी निष्ठुर क्रीड़ा?
राजा के कर्मों का, फल जनता को मिलता, यह लोक जानता है।
ओ ओमेक्रान! सुनो, नेता-अफसर को हो, वे जानें जन-पीड़ा।।
गण सत्य अगर बोले, गन तंत्र तान लेता, जन विवश भागता है।।

हे दीनानाथ! सुनो, धनवान रहें रोगी, निर्धन निरोग रखना।
जो जैसा कर्म करे, वैसा फल दे तत्क्षण, निष्पक्ष सदा दिखना।।
२६-१२-२०२१
***
३५-३६  मिल्टनी सॉनेट
जबलपुर 
नित्य निनादित नर्मदा, कलकल सलिल प्रवाह। 
नंदिकेsश्वर पूजिए, बरगी बाँध निहार। 
क्रूज बुलाता घूमिए, करिए नदी विहार।। 
रम्य पायली की छटा, निरख कीजिए वाह।। 

सिद्धघाट जप-तप करें, रहें ध्यान में लीन। 
गौरीघाट सुदाह कर, नहा कीजिए ध्यान। 
खारीघाट विमुक्ति दे, पूजें शिव मतिमान।। 
साई के दीदार कर, नदी न करें मलीन।। 

घाट लम्हेटा देखिए, अगिन शिला चट्टान। 
कौआडोल शिला लखें, मदनमहल लें घूम। 
देवताल है ध्यान हित, पावन भावन भूम। 
एक्वाडक्ट न भूलिए, तिलवारा की शान।। 

छप् छपाक् झट कूदती, रेवा नर्तित घूम।। 
धुआँधार में शिलाएँ, भुजभर लेती चूम।। 
गौरीशंकर पूजिए, चौसठ योगिन संग। 
घाट सरस्वती नाव ले, बंदरकूदनी देख। 
भूलभुलैया खोजिए, दिखे नहीं जल-रेख।। 
भेड़ाघाट निहारिए, संगमरमरी रंग।। 

त्रिपुरसुंदरी के करें, दर्शन लें कर जोड़। 
धूसर लोहा फैक्ट्री, रचे सतत इतिहास। 
फैक्ट्री गन कैरिज करे उत्पादन नित खास।। 
आयुध निर्माणी करे हथियारों की होड़।। 

दुर्गावती अमर हुईं, किंतु न छोड़ी आन। 
त्रिपुरी वीर सुभाष की, कथा सुनाए खास। 
हुईं सुभद्रा-महीयसी, सखियाँ दो बेजोड़। 
ओशो और महर्षि से, हुए सिद्ध मतिमान।। 

संस्कारधानी कहें, संत विनोबा खास।। 
हिंदी पहला व्याकरण, गुरु ने दिया न तोड़।।
२५-१२-२०२१ 
***
३४ सॉनेट
सत्य की वाह
*
चित्रगुप्त मन में बसें, हों मस्तिष्क महेश।
शारद उमा रमा रहें, आस-श्वास- प्रश्वास।
नेह नर्मदा नयन में, जिह्वा पर विश्वास।।
रासबिहारी अधर पर, रहिए हृदय गणेश।।
पवन देव पग में भरें, शक्ति गगन लें नाप।
अग्नि देव रह उदर में, पचा सकें हर पाक।
वसुधा माँ आधार दे, वसन दिशाएँ पाक।।
हो आचार विमल सलिल, हरे पाप अरु ताप।।
रवि-शशि पक्के मीत हों, सखी चाँदनी-धूप।
ऋतुएँ हों भौजाई सी, नेह लुटाएँ खूब।
करतल हों करताल से, शुभ को सकें सराह।
तारक ग्रह उपग्रह विहँस मार्ग दिखाएँ अनूप।।
बहिना सदा जुड़ी रहे, अलग न हो ज्यों दूब।।
अशुभ दाह दे मनोबल, करे सत्य की वाह।।
२४-१२-२०२१
*
नव प्रयोग
३३ दोहा सॉनेट
बेबस सारा देश
*
दल के दलदल में फँसा, बेबस सारा देश।
दाल दल रहा लोक की, छाती पर दे क्लेश।
सत्ता मोह न छूटता, जनसेवा नहिं लेश।।
राजनीति रथ्या मुई, चाह-साध्य धन-एश।।

प्रजा प्रताड़ित तंत्र से, भ्रष्टाचार अशेष।
शुचिता को मिलता नहीं, किंचित् कभी प्रवेश।।
अफसर नेता सेठ मिल, साधें स्वार्थ विशेष।।
जनसेवक खूं चूसते, खुद को मान नरेश।।

प्रजा-लोक-गण पर हुआ, हावी शोषक तंत्र।
नफरत-शंका-स्वार्थ का, बाँट रहा है मंत्र।
मान रहा नागरिक को, यह अपना यंत्र।।
दूषित कर पर्यावरण, बढ़ा रहे संयंत्र।।

लोक करे जनजागरण, प्रजा करे बदलाव।
बनें अंगुलियाँ मुट्ठियाँ, मिटा सकें अलगाव।।
२४-१२-२०२१
***
३२ सॉनेट
चलते रहिए
*
अलग सोचना राह सही है, चलते रहिए।
जहाँ जरूरत वहाँ सहारा बेशक ले लें।
ठोकर लगे न रुकें, गिरें उठ बढ़ते रहिए।।
जीत-हार सम मान खेल को मिलकर खेलें।।

मूल्य सनातन शुचि हों, सारस्वत चिंतन हो।
जन की पीड़ा उपचारें, कुछ समाधान हो।
साहचर्य की दिशा सुझाएँ, भय भंजन हो।।
हो निशांत तम मिटे, उजाला ले विहान हो।।

बीज नवाशा का बोएँ नवगीत-ग़ज़ल मिल।
कोशिश हो लघुकथा, सफलता बने कहानी।
जवां हौसले हों निबंध, रस-भाव सकें खिल।।
नीर-क्षीर सम रहे समीक्षा, लिखें सुज्ञानी।।

मुदित सरस्वती सुमन-सलिल हँस अंगीकारें।
शशि-रवि कर अभिषेक, सृजन-पथ सजा-सँवारें।।
२३-१२-२०२१
***
३१ बाल सॉनेट
भोर
*
झाँक झरोखे से सूरज ने कहा जाग जाओ।
उषा किरण आ कर झकझोरे उठो न अब सोना।
बैठ मुँडेरे गौरैया बोले न समय खोना।।
बाँग दे रहा मुर्गा कर प्रभु नमन, मुस्कुराओ।।

धरती माँ को कर प्रणाम, पग धर नभ को देखो।
जड़ें जमीं में जमा खड़ा बरगद बब्बा दे छाँह।
है कमजोर लता, न गिरे थामे है उसकी बाँह।।
कितना ऊँचा उड़ सकते हो, मन ही मन लेखो।

दसों दिशाएँ स्वागत करतीं, बिना स्वार्थ सबका।
आलस तजकर काम करो अपने-सबके मनका।
कठिनाई से हार न मानो, फिर-फिर कोशिश कर।

बहे पसीना-धार तभी आशीष मिले रब का।।
मिले सफलता मत घमंड कर, मोह तजो छिन का।।
राधा-कान्हा सम मुस्काओ, सबको मोहित कर।।
२३-१२-२०२१
***
३०  सॉनेट
गणपति
*
जय जय गणपति!, ऋद्धि-सिद्धिपति, मंगलकर्ता, हे प्रथमेश।
भव बाधा हर, हे शब्देश्वर!, सदय रहो प्रभु जोड़ूँ हाथ।
जयति गजानन, जय मतिदाता, शिवा तनय जय, हे विघ्नेश।।
राह न भटकूँ, कहीं न अटकूँ, पैर न पटकूँ, बल दो नाथ।।

वंदन-चंदन, कर अभिनंदन, करूँ स्तवन नित, हे सर्वेश!
जगजननी-जगपिता की कृपा, हो हम पर ऐसा वर दो।
विधि-हरि, शारद-रमा कृपा पा, भज पाएँ हम तुम्हें हमेश।।
करें काम निष्काम भाव से, शांति निकेतन सा घर दो।।

सत्य सनातन कह पाएँ जो ऐसी रचनाएँ हो दैव।
समयसाsक्षी घटनाओं में देखें-दिखा प्रगति की रेख।
चित्र गुप्त हो हरदम उज्जवल, निर्मल हो आचार सदैव।।
सकल सृष्टि परिवार हमारा, प्रकृति मैया पाएँ लेख।।

जय जय दीनानाथ! दयामय, द्रुतलेखी जय जय कलमेश!
रहे नर्मदा जीवन यात्रा, हर लो सारे कष्ट-कलेश।।
***
२९ सॉनेट
विवाह
*
चट मँगनी पट माँग भराई।
दुलहा सूरज दुल्हन धूप है।
उषा निहारे खूब रूप है।।
सास धरा को बहू सुहाई।।
द्वार हरिद्रा-छाप लगाई।
छाप पाँव की शुभ अनूप है।
सुतवधु रानी, पुत्र भूप है।।
जोड़ी विधि ने भली मिलाई।।
भौजाई की कर पहुनाई।
ननदी कोयल है हर्षाई।
नाचे मिट्ठू, देवर झूमे।।
नववधू ही मन मुस्काई।
सबने सोचा है सँकुचाई।
नजर बजा सूरज वधु चूमे।।
२२-१२-२०२१
***
२८ सॉनेट
गणपति
*
जय जय गणपति!, ऋद्धि-सिद्धिपति, मंगलकर्ता, हे प्रथमेश।
भव बाधा हर, हे शब्देश्वर!, सदय रहो प्रभु जोड़ूँ हाथ।
जयति गजानन, जय मतिदाता, शिवा तनय जय, हे विघ्नेश।।
राह न भटकूँ, कहीं न अटकूँ, पैर न पटकूँ, बल दो नाथ।।

वंदन-चंदन, कर अभिनंदन, करूँ स्तवन नित, हे सर्वेश!
जगजननी-जगपिता की कृपा, हो हम पर ऐसा वर दो।
विधि-हरि, शारद-रमा कृपा पा, भज पाएँ हम तुम्हें हमेश।।
करें काम निष्काम भाव से, शांति निकेतन सा घर दो।।

सत्य सनातन कह पाएँ जो ऐसी रचनाएँ हो दैव।
समयसाsक्षी घटनाओं में देखें-दिखा प्रगति की रेख।
चित्र गुप्त हो हरदम उज्जवल, निर्मल हो आचार सदैव।।
सकल सृष्टि परिवार हमारा, प्रकृति मैया पाएँ लेख।।

जय जय दीनानाथ! दयामय, द्रुतलेखी जय जय कलमेश!
रहे नर्मदा जीवन यात्रा, हर लो सारे कष्ट-कलेश।।
२२-१२-२०२१
***
२७ सॉनेट
नारी
*
शारद-रमा-उमा की जय-जय, करती दुनिया सारी।
भ्रांति मिटाने साथ हाथ-पग बढ़ें तभी हो क्रांति।
एक नहीं दो-दो मात्राएँ, नर से भारी नारी।।
सफल साधना तभी रहे जब जीवन में सुख-शांति।।

जाया-माया, भोगी-भोग्या, चित-पट अनगिन रंग।
आशा पुष्पा दे बगिया को, सुषमा-किरण अनंत।
पूनम तब जब रहे ज्योत्सना, रजनीपति के संग।।
उषा-दुपहरी-संध्या सहचर दिनपति विभा दिगंत।।

शिक्षा-दीक्षा, रीति-नीति बिन सार्थक हुई न श्वासा।
क्षुधा-पिपासा-तृष्णा बिना हो, जग-जीवन बेरंग।
कीर्ति-प्रतिष्ठा, सज्जा-लज्जा से जीवन
मधुमासा।।
राधा धारा भक्ति-मुक्ति की, शुभ्रा-श्वेता संग।।

अमला विमला धवला सरला, सुख प्रदायिनी नारी।
मैया भगिनि भामिनि भाभी पुत्री सखी दुलारी।।
२२-१२-२०२१
***
२१ बाल सॉनेट
पाखी
*
पाखी नील गगन को नापे।
पका हुआ फल खा जाएगा।
बैठ मुँडेरे जहँ-तहँ झाँके।।
मधुर प्रभाती भी गाएगा।।

नीचे बिल्ली घात लगाए।
ऊपर बाज ताकता फिरता।
इसे न हो कुछ राम बचाए।।
हिम्मतवाला तनिक न डरता।।

चुग्गा-दाना चुन उड़ जाता।
जा चूजों का पेट भरेगा।
चलना-उड़ना भी सिखलाता।।
जो समर्थ हो वही बचेगा।।

श्रम-अनुशासन पाठ पढ़ाता।
पाखी बच्चों के मन भाता।।
२०-१२-२०२१
***
२५ सॉनेट
शारदा
*
शारदा माता नमन शत, चित्र गुप्त दिखाइए।
सात स्वर सोपान पर पग सात हमको दे चला।
नाद अनहद सुनाकर, भव सिंधु पार कराइए।।
बिंदु-रेखा-रंग से खेलें हमें लगता भला।।
अजर अक्षर कलम-मसि दे, पटल पर लिखवाइए।
शब्द-सलिला में सकें अवगाह, हों मतिमान हम।
भाव-रस-लय में विलय हों, सत्सृजन करवाइए।।
प्रकृति के अनुकूल जीवन जी सकें, हर सकें तम।।
अस्मिता हो आस मैया, सुष्मिता हो श्वास हर।
हों सकें हम विश्व मानव, राह वह दिखलाइए।
जीव हर संजीव, दे सुख, हों सुखी कम कष्ट कर।।
क्रोध-माया-मोह से माँ! मुक्त कर मुस्काइए।।
साधना हो सफल, आशा पूर्ण, हो संतोष दे।
शांति पाकर शांत हों, आशीष अक्षय कोष दे।।
१९-१२-२०२१
***
२४ सॉनेट
अभियान
*
सृजन सुख पा-दे सकें, सार्थक तभी अभियान है।
मैं व तुम हम हो सके, सार्थक तभी अभियान है।
हाथ खाली थे-रहेंगे, व्यर्थ ही अभिमान है।।
ज्यों की त्यों चादर रखें, सत्कर्म कर अभियान है।।
अरुण सम उजियार कर, हम तम हरें अभियान है।
सत्य-शिव-सुंदर रचें, मन-प्राण से अभियान है।
रहें हम जिज्ञासु हरदम, जग कहे मतिमान है।।
सत्-चित्-आनंद पाएँ, कर सृजन अभियान है।।
प्रीत सागर गीत गागर, तृप्ति दे अभियान है।
छंद नित नव रच सके, मन तृप्त हो अभियान है।
जगत्जननी-जगत्पितु की कृपा ही वरदान है।।
भारती की आरती ही, 'सलिल' गौरव गान है।।
रहे सरला बुद्धि, तरला मति सुखद अभियान है।
संत हो बसंत सा मन, नव सृजन अभियान है।।
१९-१२-२०२१
***
२३ सॉनेट
चित्रगुप्त
*
काया-स्थित ईश का चित्र गुप्त है मीत
अंश बसा हर जीव में आत्मा कर संजीव
चित्र-मूर्ति के बिना हम पूजा करते रीत
ध्यान करें आभास हो वह है करुणासींव
जिसका जैसा कर्म हो; वैसा दे परिणाम
सबल-बली; निर्धन-धनी सब हैं एक समान
जो उसको ध्याए, बनें उसके सारे काम
सही-गलत खुद जाँचिए; घटे न किंचित आन

व्रत पूजा या चढ़ावा; पा हो नहीं प्रसन्न
दंड गलत पाए; सही पुरस्कार का पात्र
जो न भेंट लाए; नहीं वह पछताए विपन्न
अवसर पाने के लिए साध्य योग्यता मात्र

आत्म-शुद्धि हित पूजिए, जाग्रत रखें विवेक
चित्रगुप्त होंगे सदय; काम करें यदि नेक
१८-१२-२०२१
***
२२ सॉनेट
सौदागर
*
भास्कर नित्य प्रकाश लुटाता, पंछी गाते गीत मधुर।
उषा जगा, धरा दे आँचल, गगन छाँह देता बिन मोल।
साथ हमेशा रहें दिशाएँ, पवन न दूर रहे पल भर।।
प्रक्षालन अभिषेक आचमन, करें सलिल मौन रस घोल।।

ज्ञान-कर्म इंद्रियाँ न तुझसे, तोल-मोल कुछ करतीं रे।
ममता, लाड़, आस्था, निष्ठा, मानवता का दाम नहीं।
ईश कृपा बिन माँगे सब पर, पल-पल रही बरसती रे।।
संवेदन, अनुभूति, समझ का, बाजारों में काम नहीं।।

क्षुधा-पिपासा हो जब जितनी, पशु-पक्षी उतना खाते।
कर क्रय-विक्रय कभी नहीं वे, सजवाते बाजार हैं।
शीघ्र तृप्त हो शेष और के लिए छोड़कर सुख पाते।।
हम मानव नित बेच-खरीदें, खुद से ही आजार हैं।।

पूछ रहा है ऊपर बैठे, ब्रह्मा नटवर अरु नटनागर।
शारद-रमा-उमा क्यों मानव!, शप्त हुआ बन सौदागर।।
१८-१२-२०२१
***
२१ सॉनेट
नमन
*
तूलिका को, रंग को, आकार को नमन ।
कल्पना की सृष्टि, दृष्टि ईश का वरदान।
शब्द करें कला-ओ-कलाकार को नमन।।
एक एक चित्र है रस-भावना की खान।।

रेखाओं की लय सरस सूर-पद सुगेय।
वर्तुलों में साखियाँ चित्रित कबीर की।
निराला संसार है प्रसाद शारदेय।।
भुज भेंटती नीराजना, दीपशिखा भी।।

ध्यान लगा, खोल नयन, निरख छवि बाँकी।
ऊँचाई-गहराई-विस्तार है अगम।
झरोखे से झाँक, है बाँकी नवल झाँकी।।
अधर पर मृदु हास ले, हैं कमल नयन नम।।

निशा-उषा-साँझ, घाट-बाट साथ-साथ।
सहेली शैली हरेक, सलिल नवा माथ।।
१७-१२-२०२१
***
२० सॉनेट
गुरुआनी
*
गुरुआनी गुरु के हृदय, अब भी रहीं विराज।
देख रहीं परलोक से, धीरज धरकर आप।
विधि-विधान से कर रहे, सारे अंतिम काज।।
गुरु जी उनको याद कर, पल-पल सुधियाँ व्याप।।

कवि-कविता-कविताइ का, कभी न छूटे साथ।
हुई नर्मदा की सुता, गंगा-तनया मीत।
सात जन्म बंधन रहे, लिए हाथ में हाथ।।
देही थी अब विदेही, हुई सनातन प्रीत।।

गुरुआनी जी थीं सरल, पति गौरव पर मुग्ध।
संस्कार संतान को, दिए सनातन शुद्ध।
व्रत-तप से हर अशुभ को, किया निरंतर दग्ध।।
संगत पाकर साँड़ भी, गुरु हो पूज्य प्रबुद्ध।।

दिव्यात्मा आशीष दे, रहे सुखी कुल वंश।
कविता पुष्पित-पल्लवित, हो बन सुधि का अंश।।
१६-१२-२०२१
***
१९ सॉनेट
वीणा की झंकार
*
आशा पुष्पाती रहे, किरण बिखेर उजास।
गगन सरोवर में खिले, पूनम शशि राजीव सम।
सुषमा हेरें नैन हो, मन में शांति हुलास।।
सुमिर कृष्ण को मौन, हो जाते हैं बैन नम।।

वीणा की झंकार सुन, वाणी होती मूक।
ज्ञान भूल कर ध्यान, सुमिर सुमिर ओंकार।
नेत्र मुँदें शारद दिखें, सुन अनहद की कूक।।
चित्र गुप्त झलके तभी, तर जा कर दीदार।।

सफल साधना सिद्धि पा, अहंकार मत पाल।
काम-कामना पालकर, व्यर्थ न तू होना दुखी।
ढाई आखर प्रेम के, कह हो मालामाल।
राग-द्वेष से दूर, लोभ भुला मन हो सुखी।।

दाना दाना फेरकर, नादां बन रह लीन।
कर करतल करताल, हँस बजा भक्ति की बीन।।
१६-१२-२०२१
***
१८ सॉनेट
भक्ति की बीन
आशा पुष्पाती रहे, किरण बिखेर उजास।
गगन सरोवर में खिले, पूनम शशि राजीव सम।
सुषमा हेरें नैन हो, मन में खुशी हुलास।।
सुमिर कृष्ण को मौन, हो जाते हैं बैन नम।।
वीणा की झंकार सुन, वाणी होती मूक।
ज्ञान भूल कर ध्यान, सुमिर सुमिर ओंकार।
नेत्र मुँदें शारद दिखें, सुन अनहद की कूक।।
चित्र गुप्त झलके तभी, तर जा कर दीदार।।
सफल साधना सिद्धि पा, अहंकार मत पाल।
काम-कामना पालकर, व्यर्थ न तू होना दुखी।
ढाई आखर प्रेम के, कह हो मालामाल।
राग-द्वेष से दूर, लोभ भुला मन हो सुखी।।
दाना दाना फेरकर, नादां बन रह लीन।
कर करतल करताल, हँस बजा भक्ति की बीन।।
१६-१२-२०२१
***
१७ सॉनेट 
सरदार 
*
शीश झुका मिल करो सरदार को नमन। 
शाश्वत विभूति नाम-काम -कीर्ति अमर है /
पुरुषार्थ से महका दिया है देश का चमन।।
मिट नहीं सकता जो पीढ़ियों पे असर है।  

खंड-खंड था; अखंड देश कर दिया।
सामना चुनौतियों का किया बिन डरे। 
श्रेय महत्कार्य का किंचित नहीं लिया।।
समय की कसौटियों पे थे सदा खरे।।

पीढ़ियों को प्रेरणा दे मौन हो गए। 
दूसरा सरदार कोई फिर नहीं हुआ।  
एकता के बीज-सूत्र अगिन बो गए।।
देश सुदृढ़ कर सकें हम; है यही दुआ।।

सरदार की जयकार कर न मुक्त होइए।।
देश हित मतभेद भुला; एक होइए।।
***    
१६ सॉनेट
हुक्मरां
*
सौ-सौ सवाल पूछिए, कोई नहीं जवाब।
है हुक्मरां की चुप्पियों से चुप्प भी हैरान।
कल तक थे आदमी मगर इस वक्त हैं जनाब।।
जो हर हुकुम बजाए वही हो सके दीवान।।

खुद को कहें फकीर, शान बादशाह सी।
जो हाँ में हाँ मिलाए नहीं, मिटा दें उसे।
जरा भी परवाह नहीं, हाय-आह की।।
हकीकत सिसक रही है एड़ियाँ घिसे।।

दर्द आम का न खास अहमियत रखे।
मौज खास कर सके, अवाम चुप रहे।
जंगल, पहाड़, खेत का नामो-निशां मिटे।।
मसान बने मुल्क भले दिल दहल दहे।।

सिक्के हों चाम के, कहे भिश्ती की सल्तनत।
इक्के हुए गुलाम, जोकरों की हुकूमत। ।
१५-१२-२०२१
***
१५ साॅनेट गीत ३१-३२
नवांकुर
*
नवांकुर को खाद-पानी दीजिए।

मोह-माटी में न उसको कैद करिए, जड़ जमीं में खुद जमाने दें।
सड़ा देगा लाड़ ज्यादा मानिए भी, धूप-बारिश सहे हो मजबूत।
गीत गाए आप अपने भाव के वह, मत उसे बासी तराने दें।।
दिखे कोमल वज्र सी है शक्ति उसमें, और है संकल्प शक्ति अकूत।।

रीझने हँसकर रिझाए, रीझिए
नवांकुर को खाद-पानी दीजिए।

देख बालारुण नहीं आभास होता, यही है मार्तण्ड सूर्य प्रचण्ड।
रश्मिरथ ले किरणपति बन सृष्टि को तम मुक्त कर, देगा नवल उजास।
शशि अमावस में कभी कब बता पाता, पूर्णिमा की रूप-राशि अखण्ड।।
बूँद जल की जलधि बन गर्जन करेगी, रोकने का मत करें प्रयास।।

भिगाए तो बाल-रस में भीगिए
नवांकुर को खाद-पानी दीजिए

हौसले ले नील नभ को नापना, चाहता तो नाप लेने दीजिए।
चढ़े गिरि पर गिरे तो उठ हो खड़ा, चोटियों पर चढ़े करतल ध्वनि करें।
दस दिशाएँ राह उसकी देखतीं, दिगंबर ओढ़े न राहें रोकिए।।
जां हथेली पर लिए दनु से भिड़े, हौसला दे, पुलक अभिनंदन करें।।

सफलता पय पिए, पीने दीजिए
नवांकुर को खाद-पानी दीजिए
१४-१२-२०२१
*
१४ सॉनेट
प्रेम की भागीरथी २६-२७
*
प्रेम की भागीरथी में, प्रेमपूर्वक स्नान कर।
तिलक ऊषा का करें, संजीव हो हर जीव तब।
मन रहे मिथिलेश सा, तन व्यर्थ मत अभिमान कर।।
कांति हीरा लाल सी दे, हमें रवि ईशान अब।।

संत बन संतोष कर, जीवन बसंत बहार हो।
अस्मिता रख छंद-लय की अर्चना कर गीत की।
प्रवीण होकर पा विजय, हर श्वास बंदनवार हो।। २७
दिति-अदिति का द्वैत मेटो, रच ऋचाएँ प्रीत की।।

घर स्वजन से घर; विजन महल ना हमको चाहिए।
भक्ति पूर्वक जिलहरी को, तिलहरी पूजे निहार। २७
बिलहरी अभियान कर, हरितिमा हो अब कम नहीं।।
मंजरी छाया ग्रहणकर, अनंतारा पर निसार।। २७

साधना हो सफल, आशा पूर्ण हो, हर सुख प्रखर।
अनिल भू नभ सलिल पावक, शुद्ध मन्वन्तर निखर।।
१३-१२-२०२१
***
१३ सॉनेट
गृह प्रवेश २४
*
गृह प्रवेश सोल्लास कर, रहिए सदा सचेष्ट।
ताजमहल सा भव्य, दर्शनीय न मकां बने।
आस-पास हों महकती, खुशियाँ नित्य यथेष्ट।।
स्वप्न करें साकार, हाथ रखें माटी सने।।

भँवरे खुश हों; सुरक्षित, रहें तितलियाँ मीत।
झूमे तरु पर बैठ, तोता पिंजरे में न हो।
नहीं बिल्लियों से रहे, गौरैया भयभीत।।
गीत-कहानी सत्य, लिखे कलम को भय न हो।।

कंकर-कंकर में सखे!, शंकर पाएँ देख।
कलरव सुनिए जाग, सूर्य-किरण आ जगाए।
माथे पर आए नहीं, चिंताओं की रेख।।
खूब पले अनुराग, मैं-तुम को हम सुहाए।।

गृह स्वामी गृह स्वामिनी, रहें न दो हों एक।
मन-बस; मन में हो बसा, आगंतुक सविवेक।।
१३-१२-२०२१
***
१२ सॉनेट
समय
*
समय चक्र को नमन कर, चलें समय के साथ।
समय मीत बनता सखे!, समयबद्धता से सदा।
समय साथ पल-पल चलें, रखकर ऊँचा माथ।।
समय न भूले भूलिए, तभी जगत होगा फिदा।।

समय फर्क करता नहीं, राजा हो या रंक।
समय न देखे राह, चलता अपनी चाल वह।
समय फूल देता नहीं, नहीं चुभाता डंक।।
समय न भरता आह, रात न सोकर जगे सुबह।।

समय समय की बात है, समय समय का फेर।
समय न सकें खरीद, समय कहीं बिकता नहीं।
समय देर करता नहीं, नहीं करे अंधेर।।
समय सुलभ यदि सत्य, सुनें समय का सब यहीं।।

समय अनाहद नाद है, जो सुन ले हो धन्य।
समय सच्चिदानंद, इस सम कहीं न अन्य।।
१२-१२-२०२१
***
११ सॉनेट
काग गाएँ
*
कह रहे नवगीत, लिख-लिख विसंगतियाँ।
शारदे! दे मति, सुसंगति देख पाएँ।
दिशा-भ्रम जिनको न उनकी रुचें बतियाँ।।
कोयलों को चुप कराकर काग गाएँ।।

समय साक्षी है कि जन-मन पर्व धर्मी।
अभावों में भी हँसे रह साथ मिलकर।
पंक में पंकज बने रहकर सुकर्मी।।
सकल जग को सुरभि दे दिन-रात खिलकर।।

मूल्य पारंपरिक माने सनातन कह।
त्याज्य कहते हैं प्रगति का नाम ले कुछ।
दिखा ठेंगा करे अनदेखी सतत यह।।
लोक सुनता ही नहीं, ईनाम दे कुछ।।

लिखो नवगीतों में अब तो राष्ट्र गौरव।
सत्य-शिव-सुंदर गुँजाओ गीत कलरव।।
११-१२-२०२१
***

१०. विसंगतियाँ
(चतुर्दश छंद)
*
कह रहे नवगीत, लिख-लिख विसंगतियाँ।
शारदे! दे मति, सुसंगति देख पाएँ।
दिशा-भ्रम जिनको न उनकी रुचें बतियाँ।।
कोयलों को चुप कराकर काग गाएँ।।

समय साक्षी है कि जन-मन पर्व धर्मी।
अभावों में भी हँसे रह साथ मिलकर।
पंक में पंकज बने रहकर सुकर्मी।।
सकल जग को सुरभि दे दिन-रात खिलकर।।

मूल्य पारंपरिक माने सनातन कह।
त्याज्य कहते हैं प्रगति का नाम ले कुछ।
दिखा ठेंगा करे अनदेखी सतत यह।।
लोक सुनता ही नहीं, ईनाम दे कुछ।।

लिखो नवगीतों में अब तो राष्ट्र गौरव।
सत्य-शिव-सुंदर गुँजाओ गीत कलरव।।
११-१२-२०२१
***
९ सॉनेट
संतोष
*
है संतोष कृपा शारद की बरस रही हम सबके ऊपर।
हो संतोष अगर कुछ सार्थक गह-कह पाएँ।।
जड़ें जमीं में जमा, उड़ें, आएँ नभ छूकर।
सत-शिव-सुंदर भाव तनिक तो हम तह पाएँ।।

मानव हैं माया-मद-मोह, न ममता छूटे।
इन्सां हैं ईश्वर के निकट तनिक हो पाएँ।
जोड़ें परोपकार की पूँजी, काल न लूटे।।
दीनबंधु बन नर में ही नारायण पाएँ।।

काया-माया-छाया नश्वर मगर सत्य भी।
राग और वैराग्य समन्वय शुभ कर गाएँ।
ईश्वर की करुणा, मनुष्य के हृदय बसेगी।
जब तब ही हम ज्यों की त्यों चादर धर पाएँ।।

सरला विमला मति दे शारद!, सफल साधना।
तभी जीव संजीव हो सके, साज साध ना।।
११-१२-२०२१
***
०८ सॉनेट - गीत
सैनिक
*
सैनिक कभी नहीं मरते हैं
*
जान हथेली पर ले जीते
चुनौतियों से टकराते हैं।
जैसे हों अपराजित चीते।।
देवोपम गरिमा पाते हैं।।

नित्य मौत से टकराते हैं।
जीते जी बनते उदाहरण।
मृत्युंजय बन जी जाते हैं।।
जूझ मौत का विहँस कर वरण।।

कीर्ति कथाएँ लोक सुनाता।
अपने दिल में करे प्रतिष्ठित।
उन्हें याद कर पुष्प चढ़ाता।।
श्रद्धा सुमन करे रो अर्पित।।

शत्रु नाम सुनकर डरते हैं।
सैनिक नहीं मरा करते हैं।।
*
सैनिक जिएँ तानकर सीना।
कठिन चुनौती हर स्वीकारें।
मार मौत को जानें जीना।।
नित आपद को अंगीकारें।।

अस्त्र-शस्त्र ले पग-पग बढ़ते।
ढाल थाम झट करते रक्षा।
लपक वक्ष पर अरि के चढ़ते।।
अरि माँगे प्राणों की भिक्षा।

हर बाधा से डटकर जूझें।
नहीं आपदाओं से डरते।
हर मुश्किल सवाल को बूझें।।
सदा देश का संकट हरते।।

होते अमर श्वास तजते हैं।
सैनिक नहीं मरा करते हैं।।
*
मत रोएँ संकल्प करें सब।
बच्चा-बच्चा बिपिन बनेगा।
मधूलिका हो हर बच्ची अब।।
हर मोर्चे पर समर ठनेगा।।

बने विरासत शौर्य-पराक्रम।
काम करें निष्काम भाव से।
याद करे दुश्मन बल-विक्रम।।
बच्चे सैनिक बनें चाव से।।

आँख आँख में डाल शत्रु की।
आँख निकाल लिया करते हैं।
जान बचाने देश-मित्र की।।
बाँह पसार दिया करते हैं।।

वीर-कथा गा कवि तरते हैं।
सैनिक नहीं मरा करते हैं।।
९-१२-२०२१
***
७ सॉनेट
अपनी कहे
*
अपनी कहे, न सुने और की।
कुर्सी बैठा अति का स्याना।
करुण कथा लिख रहा दौर की।।
घर-घर लाशें दे कोरोना।।

बौने कहते खुद को ऊँचा।
सागर को बतलाते मीठा।
गत पर थूक हो रहा नीचा।।
कुकुर चाटे दौना जूठा।।

गर्दभ बाघांबर धारण कर।
सीना ताने रेंक रहा है।
हर मुद्दे पर मुँह की खाकर।।
ऊँची-ऊँची फेंक रहा है।।

जिसने हाँ में हाँ न मिलाई।
उसकी समझो शामत आई।।
८-१२-२०२१
***
अभिनव प्रयोग
६ सॉनेट गीत
जिंदगी के रंग
*
जिंदगी के रंग कई रे!
*
शैशव-बचपन खेल बिताया।
हो किशोर देखे नव सपने।
तरुणाई तन-मन हुलसाया।।
सोचा बदलूँ जग के नपने।।

यौवन बसंत मन हर्षाया।
तज द्वैत वारा अद्वैत विहँस।
हो प्रौढ़ समझ कुछ सच आया।।
वार्धक्य उपेक्षित गया झुलस।।

अब अपने ही अपने न रहे।
जिसने देखा मुँह फेर लिया।
साथी अपने सपने न रहे।।
झट फूँक राख का ढेर किया।।

छाया तम न संग गयी रे!
जिंदगी के रंग कई रे!!
७-१२-२०२१
***
५ सॉनेट
वंदना
*
वंदन देव गजानन शत-शत।
करूँ प्रणाम शारदा माता।
कर्मविधाता चित्र गुप्त प्रभु।।
नमन जगत्जननी-जगत्राता।।
अंतरिक्ष नवगृह हिंदी माँ।
दसों दिशाएँ सदा सदय हों।
छंदों से आनंदित आत्मा।।
शब्द शक्ति पा भाव अजय हों।।
श्वास-श्वास रस बरसाओ प्रभु!
अलंकार हो आस हास में।
सत-शिव-सुंदर कह पाऊँ विभु।।
रखूँ भरोसा सत्प्रयास में।।
नाद ताल लिपि अक्षर वाणी।
निर्मल मति दे माँ कल्याणी।।
६-१२-२०२१
४ सॉनेट
कबीर
*
ज्यों की त्यों चादर धर भाई
जिसने दी वह आएगा।
क्यों तैंने मैली कर दी है?
पूछे; क्या बतलायेगा?

काँकर-पाथर जोड़ बनाई
मस्जिद चढ़कर बांग दे।
पाथर पूज ईश कब मिलता?
नाहक रचता स्वांग रे!

दो पाटन के बीच न बचता
कोई सोच मत हो दुखी।
कीली लगा न किंचित पिसता
सत्य सीखकर हो सुखी।

फेंक, जोड़ मत; तभी अमीर
सत्य बोलता सदा कबीर।।
५-१२-२०२१
***
३ सॉनेट
भोर भई
*
भोर भई जागो रे भाई!
उठो न आलस करना।
कलरव करती चिड़िया आई।।
ईश-नमन कर हँसना।

खिड़की खोल, हवा का झोंका।
कमरे में आकर यह बोले।
चल बाहर हम घूमें थोड़ा।।
दाँत साफकर हल्का हो ले।।

लौट नहा कर, गोरस पी ले।
फिर कर ले कुछ देर पढ़ाई।
जी भर नए दिवस को जी ले।।
बाँटे अरुण विहँस अरुणाई।।

कोरोना से बचकर रहना।
पहन मुखौटा जैसे गहना।।
***
२ सॉनेट
मन की बात
*
मन की बात कर रहे, जन की बात न जिनको भाए।
उनको चुनकर चूक हो गई, पछताए मतदाता।
सत्ता पाकर भूले सीढ़ी, चढ़कर तोड़ गिराए।।
अन्धभक्त जो नहीं, न फूटी आँखों तनिक सुहाता।।

जन आंदोलन दबा-कुचलता, शासन मनमानी कर।
याद न आता रह विरोध में, संसद खुद थी रोकी।
येन-केन सरकार बनाता, बेहद नादानी कर।।
अब न सुहाती है विरोध की, किंचित रोका-रोकी।।

पर उपदेश कुशल बहुतेरे, बैर पड़ोसी से कर।
पड़े अकेले लेकिन फिर भी फुला रहे हैं छाती।
चंद धनिक खुश; अगिन रो रहे रोजी-काम गँवाकर।।
जनप्रतिनिधि गण सेवा भूले, सजे बने बाराती।।

त्याग शहीदों का भूले हैं, बन किसान के दुश्मन।
लाश उगलती गंगा, ढाँकेँ; कहें न गंदी; पावन।।
५-१२-२०२१
***
१ सॉनेट
सवेरा
*
रश्मिरथी जब आते हैं
प्राची पर लाली छाती
पंछी शोर मचाते हैं
उषा नृत्य करती गाती

आँगन में आ गौरैया
उछल-कूदकर फुदक-फुदक
करती है ता ता थैया
झाँक-झाँककर, उचक-उचक

मुर्गा देता बाँग जगो
उठो तुरत शैया त्यागो
हे ईश्वर! सुख-शांति रहे
सबमें रब है अनुरागो

करो कलेवा दूध पियो
सौ बरसों तक विहँस जियो
***
३-१२-२०२१

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