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गुरुवार, 6 जनवरी 2022

प्राण शर्मा

 ग़ज़ल - प्राण शर्मा 

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देश में छाएँ न ये बीमारियाँ 
लोग कहते हैं जिन्हें गद्दारियाँ 
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ऐसे भी हैं लोग दुनिया में कई 
जिनको भाती ही नहीं किलकारियाँ 
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क्या ज़माना है बुराई का कि अब 
बच्चों पर भी चल रही हैं आरियाँ 
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राख में ही तोड़ दें दम वो सभी 
फैलने पाएँ नहीं चिंगारियाँ 
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`प्राण`तुम इसका कोई उत्तर तो दो 

खो गयी हैं अब कहाँ खुद्दारियाँ

तीन त्रिपदियाँ - प्राण शर्मा 

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ऐसे भी दुनिया में कई होते हैं दोस्तो 
जग के दुखों को जो सदा ढोते हैं दोस्तो 
दुश्मन की मौत पर भी जो रोते हैं दोस्तो 
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ऐसे भी दुनिया में कई होते हैं दोस्तो 
विश्वास दोस्ती में जो खोते हैं दोस्तो 
जो मन ही मन उदास से रोते हैं दोस्तो 
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ऐसे भी दुनिया में कई होते हैं दोस्तो 
काँटे सभी की राह में बोते हैं दोस्तो 
ख़ुद को भी जो जलन में डुबोते हैं दोस्तो 
*
देखो,हमारे जीने का कुछ ऐसा ढंग हो 
अपने वतन के वास्ते सच्ची उमंग हो 
मक़सद हमारा सिर्फ़ बुराई से जंग हो 
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कहलायेंगे जहान में तब तक फ़कीर हम 
बन पायेंगे कभी नहीं जग में अमीर हम 
जब तक करेंगे साफ़ न अपना ज़मीर हम
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उनसे बचें सदा कि जो भटकाते हैं हमें 
जो उल्टी - सीधी चाल से फुसलाते हैं हमें 
नागिन की तरह चुपके से डस जाते हैं हमें
*
जग में गंवार कौन बना सकता है हमें 
बन्दर का नाच कौन नचा सकता है हमें 
हम एक हैं तो कौन मिटा सकता है हमें 
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