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बुधवार, 5 जनवरी 2022

हाइकु गीत, लघुकथा, दोहा, कुण्डलिया, मुक्तिका, नवगीत

सॉनेट 
दिल हारे दिल जीत



















मेघ उमड़ते-घुमड़ते लेते रवि भी ढाँक। 
चीर कालिमा रश्मियाँ फैलतीं आलोक। 
कूद नदी में नहातीं, कोइ सके न रोक।।
कौन चितेरा मनोरम छवि छिप लेता आँक?

रूप देखकर सिहरते तीर खड़े तरु मौन।
शाखाओं चढ़ निहारें पक्षी करते वाह। 
करतल ध्वनि पत्ते करें, भरें बेहया आह।।
गगन-क्षितिज भी मुग्ध हैं, संयं साढ़े कौन?

लहर-लहर के हो रहे गाल गुलाबी-पीत। 
गव्हर-गव्हर छिप कर करे मत्स्य निरंतर प्रीत। 
भ्रमर कुमुदिनी रच रहे लिव इन की नव रीत। 

तप्त उसाँसे भर रही ठिठुरनवाली शीत।।
दादुर ढोलक-थाप दे, झींगुर गाता गीत।।
दिल जीते दिल हारकर, दिल हारे दिल जीत।।  
***
हाइकु गीत
*
बोल रे हिंदी
कान में अमरित
घोल रे हिंदी
*
नहीं है भाषा
है सभ्यता पावन
डोल रे हिंदी
*
कौन हो पाए
उऋण तुझसे, दे
मोल रे हिंदी?
*
आंग्ल प्रेमी जो
तुरत देना खोल
पोल रे हिंदी
*
झूठा है नेता
कहाँ सच कितना?
तोल रे हिंदी
*
बहुत हुआ
अब न काम में हो
झोल रे हिंदी
*
सुने न अब
सब जग में पीटें
ढोल रे हिंदी
***
लघुकथा :
खिलौने
*
दिन भर कार्यालय में व्यस्त रहने के बाद घर पहुँचते ही पत्नी ने किराना न लाने का उलाहना दिया तो वह उलटे पैर बाज़ार भागा। किराना लेकर आया तो बिटिया रानी ने शिकायत की 'माँ पिकनिक नहीं जाने दे रही।' पिकनिक के नाम से ही भड़क रही श्रीमती जी को जैसे-तैसे समझाकर अनुमति दिलवाई तो मुँह लटकाए हुए बेटा दिखा। उसे बुलाकर पूछ तो पता चला कि खेल का सामान चाहिए। 'ठीक है' पहली तारीख के बाद ले लेना' कहते हुए उसने चैन की साँस ली ही थी कि पिताजी क खाँसने और माँ के कराहने की आवाज़ सुन उनके पास पहुँच गया। माँ के पैताने बैठ हाल-चाल पूछा तो पाता चला कि न तो शाम की चाय मिली है, न दवाई है। बिटिया को आवाज़ देकर चाय लाने और बेटे को दवाई लाने भेजा और जूते उतारने लगा कि जीवन बीमा एजेंट का फोन आ गया 'क़िस्त चुकाने की आखिरी तारीख निकल रही है, समय पर क़िस्त न दी तो पालिसी लेप्स हो जाएगी। अगले दिन चेक ले जाने के लिए बुलाकर वह हाथ-मुँह धोने चला गया।
आते समय एक अलमारी के कोने में पड़े हुए उस खिलौने पर दृष्टि पड़ी जिससे वह कभी खेलता था। अनायास ही उसने हाथ से उस छोटे से बल्ले को उठा लिया। ऐसा लगा गेंद-बल्ला कह रहे हैं 'तुझे ही तो बहुत जल्दी पड़ी थी बड़ा होने की। रोज ऊँचाई नापता था न? तब हम तुम्हारे खिलौने थे, तुम जैसा चाहते वैसा ही उपयोग करते थे। अब हम रह गए हैं दर्शक और तुम हो गए हो सबके हाथ के खिलौने।
***
दोहा सलिला
सकल सृष्टि कायस्थ है, सबसे करिए प्रेम
कंकर में शंकर बसे, करते सबकी क्षेम
*
चित्र गुप्त है शौर्य का, चित्रगुप्त-वरदान
काया स्थित अंश ही, होता जीव सुजान
*
महिमा की महिमा अमित, श्री वास्तव में खूब
वर्मा संरक्षण करे, रहे वीरता डूब
*
मित्र मनोहर हो अगर, अभय ज़िंदगी जान
अभय संग पा मनोहर, जीवन हो रस-खान
*
उग्र न होते प्रभु कभी, रहते सदा प्रशांत
सुमति न जिनमें हो तनिक, वे ही मिलें अशांत
***
कार्यशाला:
एक कुण्डलिया : दो कवि
तन को सहलाने लगी, मदमाती सी धूप
सरदी हंटर मारती, हवा फटकती सूप -शशि पुरवार
हवा फटकती सूप, टपकती नाक सर्द हो
हँसती ऊषा कहे, मर्द को नहीं दर्द हो
छोड़ रजाई बँधा, रहा है हिम्मत मन को
लगे चंद्र सा, सूर्य निहारे जब निज तन को - संजीव
***
मुक्तिका
*
नेह नर्मदा बहने दे
मन को मन की कहने दे
*
बिखरे गए रिश्ते-नाते
फ़िक्र न कर चुप तहने दे
*
अधिक जोड़ना क्यों नाहक
पीर पुरानी सहने दे
*
निज हित की चिंता जायज
कुछ सब-हित भी रहने दे
*
काला धन जिसने जोड़ा
उसको थोड़ा दहने दे
*
देह सजाते उम्र कटी
'सलिल' रूह को गहने दे
५-१-२०१८
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नवगीत:
संजीव
.
आओ भी सूरज!
छट गये हैं फूट के बादल
पतंगें एकता की मिल उड़ाओ
गाओ भी सूरज!
.
करधन दिप-दिप दमक रही है
पायल छन-छन छनक रही है
नच रहे हैं झूमकर मादल
बुराई हर अलावों में जलाओ
आओ भी सूरज!
.
खिचड़ी तिल-गुड़वाले लडुआ
पिज्जा तजकर खाओ बबुआ
छोड़ बोतल उठा लो छागल
पड़ोसी को खुशी में साथ पाओ
आओ भी सूरज!
५-१-२०१५
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