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सोमवार, 3 मई 2021

रमण शांडिल्य

परमादरणीय रमण शांडिल्य के प्रति भावांजलि
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
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रमण करें नित सृजन संग, शारद माँ के पूत। 
परिवर्तन के पक्षधर, राष्ट्रप्रेम के दूत।।
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मधुसूदन-तारा तनय, वसुंधरा के नाथ। 
रख गोत्र शांडिल्य का, उन्नत प्रियवर माथ।।
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अनुकंपा चाहे अरुण, बन तव तनय हमेश। 
करें अर्चना विमल सिंह, मान तुम्हें शब्देश।।
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जीवन है आलोकमय, पा खुशियाँ अनमोल। 
भोजपुरी का बजाय, दसों दिशा में ढोल।।
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काव्य कहानी रच मिला, जो अक्षय आनंद। 
नाटक यात्रावृत्त लिख, बाँट दिया मकरंद।।
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शब्दकोष निर्माण कर,  पाया सुयश अपार। 
रहा बज्जिका से तुम्हें, हार्दिक स्नेह उदार।।
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असमी एवं बांग्ला, में - से कर अनुवाद। 
संस्मरण रोचक रचे, मिली लोक से दाद।।
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जनभाषा साहित्य रच, हुए देश विख्यात। 
ग्रंथ खेमका पर लिखा, जीवन मूल्य उदात।।
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'पूर्व भारती', 'सांगपो',  'अरुण नागरी' छाप। 
छोड़ी 'जनपद' पर सतत, मित्र आपने छाप।।
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बहुआयामी कार्य कर, आप बने युग दूत। 
भारत माता चाहती, ऐसे अनगिन पूत।। 
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हिंद और हिंदी ऋणी, सदा रहेंगे मीत। 
शारद आशीषित करें, सुधिजन पालन प्रीत।।
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अक्षत चंदन समर्पित, रोली टीका माथ। 
शब्द उतारें आरती,  सर पर रखिए हाथ।।
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कलमवीर तुम अहर्निश, करते रचना कर्म। 
कर्मयोग का ज्ञात है, प्रियवर तुमको मर्म।।
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काम सदा निष्काम कर, राखी नहीं फल-चाह। 
मिली लोक से निरंतर, भैया, तुमको वाह।।
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शतवर्षी जीवन मिले, रच दो ग्रंथ अनेक। 
समय कहे तुम सा नहीं, ज्ञानी लिए विवेक 
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 संयोजक विश्ववाणी हिंसी संस्थान अभियान 
४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन जबलपुर ४८२००१ 
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