कुल पेज दृश्य

सोमवार, 3 मई 2021

हिंदी ग़ज़ल ब्रह्म से ब्रह्मांश/ मुक्तिका

हिंदी ग़ज़ल
*
ब्रम्ह से ब्रम्हांश का संवाद है हिंदी ग़ज़ल।
आत्म की परमात्म से फ़रियाद है हिंदी ग़ज़ल।।
*
मत गज़ाला-चश्म कहना, यह कसीदा भी नहीं।
जनक-जननी छन्द-गण, औलाद है हिंदी ग़ज़ल ।।
*
जड़ जमी गहरी न खारिज़ समय कर सकता इसे
सिया-सत सी सियासत, मर्याद है हिंदी ग़ज़ल ।।
*
भार-पद गणना, पदांतक, अलंकारी योजना
दो पदी मणि माल, वैदिक पाद है हिंदी ग़ज़ल ।।
*
सत्य-शिव-सुन्दर मिले जब, सत्य-चित-आनंद हो
आsत्मिक अनुभूति शाश्वत, नाद है हिंदी ग़ज़ल ।।
*
नहीं आक्रामक, न किञ्चित भीरु है, युग जान ले
प्रात कलरव, नव प्रगति का नाद है हिंदी ग़ज़ल ।।
*
धूल खिलता फूल, वेणी में महकता मोगरा
छवि बसी मन में समाई याद है हिंदी ग़ज़ल ।।
*
धीर धरकर पीर सहती, हर्ष से उन्मत्त न हो
ह्रदय की अनुभूति का, अनुवाद है हिंदी ग़ज़ल ।।
*
मुक्तिका है, तेवरी है, गीतिका है, सजल भी 
भाव का अनुभूति से संवाद है हिंदी ग़ज़ल ।।
*
परिश्रम, पाषाण, छेनी, स्वेद गति-यति नर्मदा
युग रचयिता प्रयासों की दाद है हिंदी ग़ज़ल ।।
***
[महाभागवत जातीय छन्द] हिंदी गज़ल
छंद : हरिगीतिका
मापनी : ११२१२
बह्र : मुतफाइलुं
*
जब भी मिलो
खुश हो खिलो
हम भी चलें
तुम भी चलो
जब भोर हो
उगती चलो
जब साँझ हो
ढलती चलो
छवि नैन में
छिपती चलो
मत मौन हो
कहती चलो
*
मुक्तिका
*
आज खत का जवाब आया है
धूल में फूल मुस्कुराया है
*
याद की है किताब हाथों में
छंद था मौन; खिलखिलाया है
*
नैन नत बोलते बिना बोले
रोज डे रोज ही मनाया है
*
कौन किसको प्रपोज कब करता
चाह ने चाहकर बुलाया है
*
हाथ बढ़ हाथ थामकर सिहरा
पैर ने पैर झट मिलाया है
*
देख मुखड़ा बना लिया मुखड़ा
अंतर में अंतरा बसाया है
*
दे दिया दिल न दिलरुबा छोड़ा
दिलवरी की न दिल दुखाया है
*
मुक्तिका:
*
जब भी होती है हव्वा बेघर
आदम रोता है मेरे भीतर
*
आरक्षण की फाँस बनी बंदूक
जले घोंसले, मरे विवश तीतर
*
बगुले तालाबों को दे ढाढ़स
मार रहे मछली घुसकर भीतर
*
नहीं चेतना-चिंतन संसद में
बजट निचोड़े खूं थोपे जब कर
*
खुद के हाथ तमाचा गालों पर
मार रहे जनतंत्र अश्रु से तर
*
पीड़ा-लाश सियासत का औज़ार
शांति-कपोतों के कतरें नित पर
*
भक्षक के पहरे पर रक्षक दीन
तक्षक कुंडली मार बना अफसर
***
मुक्तिका:
तुम 
*
तुम कैसे जादू कर देती हो? 
भवन-मकां में आ, घर देती हो
*
रिश्तों के वीराने मरुथल को
मंदिर होने का वर देती हो
*
चीख-पुकार-शोर से आहत मन
मरहम, संतूरी सुर देती हो
*
खुद भूखी रह, अपनी भी रोटी
मेरी थाली में धर देती हो
*
जब खंडित होते देखा विश्वास
नव आशा निशि-वासर देती हो
*
नहीं जानतीं गीत, ग़ज़ल, नवगीत
किन्तु भाव को आखर देती हो
*
'सलिल'-साधना सफल तुम्हीं से है
पत्थर पल को निर्झर देती हो
***
चामर छंद
*
छंद परिचय:
पन्द्रह वार्णिक अतिशर्करी जातीय चामर छंद।
तेईस मात्रिक रौद्राक जातीय छंद।
संरचना: SIS ISI SIS ISI SIS
सूत्र: रजरजर।
बहर: फ़ाइलुं मुफ़ाइलुं मुफ़ाइलुं मुफ़ाइलुं।
*
देश का सवाल है न राजनीति खेलिए
लोक को रहे न शोक लोकनीति कीजिए
*
भेद-भाव भूल स्नेह-प्रीत खूब बाँटिए
नेह नर्मदा नहा, रीति-प्रीति भूलिए
*
नीर के बिना न जिंदगी बिता सको कभी
साफ़ हों नदी-कुएँ सभी प्रयास कीजिए
*
घूस का न कायदा, न फायदा उठाइये
काम-काज जो करें, न वक्त आप चूकिए
*
ज्यादती न कीजिए, न ज्यादती सहें कभी
कामयाब हों, प्रयास बार-बार कीजिए
*
पीढ़ियाँ न एक सी रहीं, न हो सकें कभी
हाथ थाम लें, गले लगा, न आप जूझिए
*
घाल-मेल छोड़, ताल-मेल से रहें सुखी
सौख्य पालिए, न राग-द्वेष आप घोलिए
*
हिंदी ग़ज़ल:
नमन में आये
संजीव 'सलिल'
*
पुनीत सुन्दर सुदेश भारत, है खुशनसीबी शरण में आए.
यहाँ जनमने सुरेश तरसें, माँ भारती के नमन में आ
..

जमीं पे ज़न्नत है सरजमीं ये, जहेनसीबी वतन में आ
.
हथेलियों पे लिए हुए जां ,शहीद होने चमन में आ
..

कहे कलम वो कलाम मौला, मुहावरा बन कहन में आ
..
अना की चादर उतार फेंकें, मुहब्बतों के चलन में आ
..

करे इनायत कोई न हम पर, रवायतों के सगन में आ
.
भरी दुपहरी बहा पसीना, शब्द-उपासक सृजन में आ
..

निशा करे क्यों निसार सपने?, उषा न आँसू 'सलिल' गिरा
.
दिवस न हारे, न सांझ रोए, प्रयास-पंछी गगन में आ
..

मिले नयन से नयन विकल हो, मन, उर, कर, पग 'सलिल' मिला
.
मलें अबीरा सुनें कबीरा, नसीहतों के हवन में आ
..

**************************************
बह्र: बहरे मुतकारिब मकबूज़ असलम मुदायाफ़
रदीफ़: में आये, काफिया: अन


दोहा ग़ज़ल :
संजीव
*
जमा निगाहें लक्ष्य पर, बन जा सलिल उकाब।
पैर जमीं पर जमाकर, देख गगन की आब।।

हूँ तो मैं खोले हुए, पढ़ता नहीं किताब।
आनंदित मन-प्राण पा, सूखा हुआ गुलाब।।

गिनती की साँसें मिलीं, रखना तनिक हिसाब।
किसे पता कहना पड़े, कब अलविदा जनाब।।

दकियनूसी हुए गर, पिया नारियल-डाब।
प्रगतिशील पी कोल्ड्रिंक, करते गला ख़राब।।

किसने लब से छू दिया, पानी हुआ शराब।
बढ़कर थामा हाथ तो, टूट गया झट ख्वाब।।

सच्चाई छिपती नहीं, ओढ़ें लाख नकाब।
उम्र न छिपती बाल पर, मलकर 'सलिल' खिजाब।।

नेह निनादित नर्मदा, प्रमुदित मन पंजाब।
सलिल-प्रीत गोदावरी, साबरमती चनाब।।

***
हाइकु ग़ज़ल-
नव दुर्गा का, हर नव दिन हो, मंगलकारी
नेह नर्मदा, जन-मन रंजक, संकटहारी

मैं-तू रहें न, दो मिल-जुलकर एक हो सकें
सुविचारों के, सुमन सुवासित, जीवन-क्यारी

गले लगाये, दिल को दिल खिल, गीत सुनाये
हों शरारतें, नटखटपन मन,-रञ्जनकारी

भारतवासी, सकल विश्व पर, प्यार लुटाते
संत-विरागी, सत-शिव-सुंदर, छटा निहारी

भाग्य-विधाता, लगन-परिश्रम, साथ हमारे
स्वेद बहाया, लगन लगाकर, दशा सुधारी

पंचतत्व का, तन मन-मंदिर, कर्म धर्म है
सत्य साधना, 'सलिल' करे बन, मौन पुजारी
(वार्णिक हाइकु छन्द ५-७-५)
*
मुक्तिका
*
नाजनीं को नमन मुस्कुरा दीजिए
मशविरा है बिजलियाँ गिरा दीजिए
*
चिलमनों के न पीछे से अब वार हो
आँख से आँख बरबस मिला दीजिए
*
कल्पना ही सही क्या बुरा है अगर
प्रेरणा बन के आगे बढ़ा दीजिए
*
कांता के हुए कांत अब तो 'सलिल'
बैठ पलकों पे उनको बिठा दीजिए
*
जो खलिश दिल में बाकी रहे उम्र भर
ले के बाँहों में उसको सजा दीजिए
***
मुक्तिका:रात
संजीव
( तैथिक जातीय पुनीत छंद ४-४-४-३, चरणान्त २२२१)
.
चुपके-चुपके आई रात
सुबह-शाम को भाई रात
झरना नदिया लहरें धार
घाट किनारे काई रात
शरतचंद्र की पूनो है
'मावस की परछाईं रात
आसमान की कंठ लंगोट
चाहे कह लो टाई रात
पर्वत जंगल धरती तंग
कोहरा-पाला लाई रात
वर चंदा तारे बारात
हँस देखे कुडमाई रात
दिन है हल्ला-गुल्ला-शोर
गुमसुम चुप तनहाई रात
*
संजीव
१०-४-२०२०
९४२५१८३२४४

कोई टिप्पणी नहीं: