नवगीत: 
संजीव
*
अंधड़-तूफां आया
बिजली पल में 
गोल हुई 
*
निष्ठा की कमजोर जड़ें 
विश्वासों के तरु उखड़े
आशाओं के नीड़ गिरे 
मेघों ने धमकाया 
खलिहानों में 
दौड़ हुई. 
*
नुक्कड़ पर आपाधापी 
शेफाली थर-थर काँपी 
थे ध्वज भगवा, नील, हरे 
दोनों को थर्राया 
गिरने की भी 
होड़ हुई.
*
उखड़ी जड़ खापों की भी 
निकली दम पापों की भी 
गलती करते बिना डरे 
शैतां भी शर्माया 
घर खुद का तो 
छोड़ मुई!.
*
२६-५-२००१५: जबलपुर में ५० कि.मी. की गति से चक्रवातजनित आंधी-तूफ़ान, भारी तबाही के बाद रचित.  
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