मुक्तक
*
गाँठ अहं की खुल जाए तो सलिल-धार नर्मदा बने।
सुलभ सके झट सारी उलझन, भौंह न कोई रही तने।।
अपने गैर न हो पाएँगे, गैर सभी अपने होंगे-
नेह नर्मदा नित्य नहाओ, भले बचाओ चार चने।।
*
मुक्तक मोती माल ले, करें समय से बात।
नहीं रात को दिन कहें, नहीं दिवस को रात।।
औरों को सम मान दे, पाएँ नित सम्मान-
मत भूलें उपकार को, कभी करें मत घात।।
*
१-८-२०१९
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गाँठ अहं की खुल जाए तो सलिल-धार नर्मदा बने।
सुलभ सके झट सारी उलझन, भौंह न कोई रही तने।।
अपने गैर न हो पाएँगे, गैर सभी अपने होंगे-
नेह नर्मदा नित्य नहाओ, भले बचाओ चार चने।।
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मुक्तक मोती माल ले, करें समय से बात।
नहीं रात को दिन कहें, नहीं दिवस को रात।।
औरों को सम मान दे, पाएँ नित सम्मान-
मत भूलें उपकार को, कभी करें मत घात।।
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१-८-२०१९
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