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हिंदी के ९ मात्रिक छंद : आंक जातीय छंद
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
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विश्व वाणी हिंदी का छांदस कोश अप्रतिम, अनन्य और असीम है। संस्कृत से विरासत में मिले छंदों के साथ-साथ अंग्रेजी, जापानी आदि विदेशी भाषाओँ तथा पंजाबी, मराठी, बृज, अवधी आदि आंचलिक भाषाओं/ बोलिओं के छंदों को अपनाकर तथा उन्हें अपने अनुसार संस्कारित कर हिंदी ने यह समृद्धता अर्जित की है। हिंदी छंद शास्त्र के विकास में ध्वनि विज्ञान तथा गणित ने आधारशिला की भूमिका निभायी है।
विविध अंचलों में लंबे समय तक विविध पृष्ठभूमि के रचनाकारों द्वारा व्यवहृत होने से हिंदी में शब्द विशेष को एक अर्थ में प्रयोग करने के स्थान पर एक ही शब्द को विविधार्थों में प्रयोग करने का चलन है। इससे अभिव्यक्ति में आसानी तथा विविधता तो होती है किंतु शुद्धता नहीँ रहती। विज्ञान विषयक विषयों के अध्येताओं तथा हिंदी सीख रहे विद्यार्थियों के लिये यह स्थिति भ्रमोत्पादक तथा असुविधाकारक है। रचनाकार के आशय को पाठक ज्यों का त्यो ग्रहण कर सके इस हेतु हम छंद-रचना में प्रयुक्त विशिष्ट शब्दों के साथ प्रयोग किया जा रहा अर्थ विशेष निम्न है -
अक्षर / वर्ण = ध्वनि की बोली या लिखी जा सकनेवाली लघुतम स्वतंत्र इकाई।
शब्द = अक्षरों का सार्थक समुच्चय।
मात्रा / कला / कल = अक्षर के उच्चारण में लगे समय पर आधारित इकाई।
लघु या छोटी मात्रा = जिसके उच्चारण में इकाई समय लगे। भार १, यथा अ, इ, उ, ऋ अथवा इनसे जुड़े अक्षर, चंद्रबिंदी वाले अक्षर
दीर्घ, हृस्व या बड़ी मात्रा = जिसके उच्चारण में अधिक समय लगे। भार २, उक्त लघु अक्षरों को छड़कर शेष सभी अक्षर, संयुक्त अक्षर अथवा उनसे जुड़े अक्षर, अनुस्वार (बिंदी वाले अक्षर)।
पद = पंक्ति, चरण समूह।
चरण = पद का भाग, पाद।
छंद = पद समूह।
यति = पंक्ति पढ़ते समय विराम या ठहराव के स्थान।
छंद लक्षण = छंद की विशेषता जो उसे अन्यों से अलग करतीं है।
गण = तीन अक्षरों का समूह विशेष (गण कुल ८ हैं, सूत्र: यमाताराजभानसलगा के पहले ८ अक्षरों में से प्रत्येक अगले २ अक्षरों को मिलाकर गण विशेष का मात्राभार / वज़्न तथा मात्राक्रम इंगित करता है. गण का नाम इसी वर्ण पर होता है। यगण = यमाता = लघु गुरु गुरु = ४, मगण = मातारा = गुरु गुरु गुरु = ६, तगण = ता रा ज = गुरु गुरु लघु = ५, रगण = राजभा = गुरु लघु गुरु = ५, जगण = जभान = लघु गुरु लघु = ४, भगण = भानस = गुरु लघु लघु = ४, नगण = न स ल = लघु लघु लघु = ३, सगण = सलगा = लघु लघु गुरु = ४)।
तुक = पंक्ति / चरण के अन्त में शब्द/अक्षर/मात्रा या ध्वनि की समानता ।
गति = छंद में गुरु-लघु मात्रिक क्रम।
सम छंद = जिसके चारों चरण समान मात्रा भार के हों।
अर्द्धसम छंद = जिसके सम चरणोँ का मात्रा भार समान तथा विषम चरणों का मात्रा भार एक सा हो किन्तु सम तथा विषम चरणोँ क़ा मात्रा भार समान न हों।
विषम छंद = जिसके चरण असमान हों।
लय = छंद पढ़ने या गाने की धुन या तर्ज़।
छंद भेद = छंद के प्रकार।
वृत्त = पद्य, छंद, वर्स, काव्य रचना । ४ प्रकार- क. स्वर वृत्त, ख. वर्ण वृत्त, ग. मात्रा वृत्त, घ. ताल वृत्त।
जाति = समान मात्रा भार के छंदों का समूहनाम।
प्रत्यय = वह रीति जिससे छंदों के भेद तथा उनकी संख्या जानी जाए। ९ प्रत्यय: प्रस्तार, सूची, पाताल, नष्ट, उद्दिष्ट, मेरु, खंडमेरु, पताका तथा मर्कटी।
दशाक्षर = आठ गणों तथा लघु - गुरु मात्राओं के प्रथमाक्षर य म त र ज भ न स ल ग ।
दग्धाक्षर = छंदारंभ में वर्जित लघु अक्षर - झ ह र भ ष। देवस्तुति में प्रयोग वर्जित नहीं।
गुरु या संयुक्त दग्धाक्षर छन्दारंभ में प्रयोग किया जा सकता है। इस लेख में कुछ नौ मात्रिक छंदों की रचना प्रक्रिया वर्णित है।
नौ मात्रिक छंद
जाति नाम आंक (नौ अंकों के आधार पर), भेद ५५,
आंकिक उपमान:
नन्द:, निधि:, विविर, भक्ति, नग, मास, रत्न , रंग, द्रव्य, नव दुर्गा - शैल पुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी एवं सिद्धिदात्री। गृह: सूर्य/रवि , चन्द्र/सोम, गुरु/बृहस्पति, मंगल, बुध, शुक्र, शनि, राहु, केतु, कुंद:, गौ: आदि।
नौगजा नौ गज का वस्त्र/साड़ी, नौरात्रि शक्ति ९ दिवसीय पर्व।, नौलखा नौ लाख का (हार),
नवमी ९ वीं तिथि आदि।
वासव छंदों के ३४ भेदों की मात्रा बाँट लघु-गुरु मात्रा संयोजन के आधार पर ५ वर्गों में निम्न अनुसार होगी:
अ. नव निधि वर्ग (१ प्रकार)-
छंद लक्षणः प्रति पद ९ लघु मात्रायें-
उदाहरणः
१. चल अशरण शरण
कर पग पथ वरण
वर नित नव क्षरण
मत डर शुभ मरण
२. दिनकर गगन पर
प्रगटित शगुन कर
कलरव सतत सुन
छिप मन सपन बुन
आ. सप्तेक वर्गः (८ प्रकार)-
छंद लक्षणः प्रति पद ७ लघु १ गुरु मात्रायें
उदाहरणः
१. हर पल समर है
सत-शुभ अमर है
तन-मन विवश क्यों?
असमय अवश क्यों?
२. सब सच सच बोल
मत रख कुछ झोल
कह तब जब तोल
सुन लहर-किलोल
इ. पंच परमेश्वर वर्ग (२१ प्रकार)-
छंद लक्षणः प्रति पद ५ लघु २ गुरु मात्रायें
उदाहरणः
१. कर मिलन मीता
रख मन न रीता
पग सतत नाचें
नित सुमिर गीता
२. जब घर आइए
हँस सुख पाइए
प्रिय मुख चूमिए
प्रभु गुण गाइए
ई. जननि कैकेयी वर्गः (२० प्रकार)
छंद लक्षणः प्रति पद ३ लघु ३ गुरु मात्रायें
उदाहरणः
१. जननि कैकेयी
प्रणत वैदेही
विहँस आशीषें
'हॄदय को जीतें'
२. कुछ भी न भाये
प्रिय याद आये...
उनको बुलादो
अब तो मिला दो
मन-बाग सूखा
कलियाँ खिला दो
सुख ना सुहाये
दिल को जलाये...
उ. जननि कैकेयी वर्गः (५ प्रकार) ५
छंद लक्षणः प्रति पद १ लघु ४ गुरु मात्रायें
उदाहरणः
१. नहीं छोड़ेंगे
कभी चाहों को
हमीं मोड़ेंगे
सदा राहों को
नहीं तोड़ेंगे
प्रिये! वादों को
चलो ओढेंगे
हसीं चाहों को
२. मीत! बोलो तो
राज खोलो तो
खूब रूठे हो
साथ हो लो तो
३. बातें बनाना
राहें भुलाना
शोभा न देता
छोड़ो बहाना
वादा निभाना!
छंद की ४ या ६ पंक्तियों में विविध तुकान्तों प्रयोग कर और भी अनेक उप प्रकार रचे जा सकते हैं।
छंद-लक्षण: प्रति पंक्ति ९ मात्रा
लक्षण छंद:
आंक छंद रचें,
नौ हों कलाएँ।
मधुर स्वर लहर
गीत नव गाएँ।
उदाहरण:
सूरज उगायें,
तम को भगायें।
आलस तजें हम-
साफल्य पायें।
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निधि छंद: ९ मात्रा
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लक्षण: निधि नौ मात्रिक छंद है जिसमें चरणान्त में लघु मात्रा होती है. पद (पंक्ति) में चरण संख्या एक या अधिक हो सकती है.
लक्षण छंद:
नौ हों कलाएं,
चरणांत लघु हो
शशि रश्मियां ज्यों
सलिल संग विभु हो
उदाहरण :
१. तजिए न नौ निधि
भजिए किसी विधि
चुप मन लगाकर-
गहिए 'सलिल' सिधि
२. रहें दैव सदय, करें कष्ट विलय
मिले आज अमिय, बहे सलिल मलय
मिटें असुर अजय, रहें मनुज अभय
रचें छंद मधुर, मिटे सब अविनय
३. आओ विनायक!, हर सिद्धि दायक
करदो कृपा अब, हर लो विपद सब
सुख-चैन दाता, मोदक ग्रहण कर
खुश हों विधाता, हर लो अनय अब
गंग छंद: ९ मात्रा
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लक्षण: जाति आंक, पद २, चरण ४, प्रति चरण मात्रा ९, चरणान्त गुरु गुरु
लक्षण छंद:
नयना मिलाओ, हो पूर्ण जाओ,
दो-चार-नौ की धारा बहाओ
लघु लघु मिलाओ, गुरु-गुरु बनाओ
आलस भुलाओ, गंगा नहाओ
उदाहरण:
१. हे गंग माता! भव-मुक्ति दाता
हर दुःख हमारे, जीवन सँवारो
संसार की दो खुशियाँ हजारों
उतर आस्मां से आओ सितारों
ज़न्नत ज़मीं पे नभ से उतारो
हे कष्टत्राता!, हे गंग माता!!
२. दिन-रात जागो, सीमा बचाओ
अरि घात में है, मिलकर भगाओ
तोपें चलाओ, बम भी गिराओ
सेना अकेली न हो सँग आओ
३. बचपन हमेशा चाहे कहानी
हँसकर सुनाये अपनी जुबानी
सपना सजायें, अपना बनायें
हो ज़िंदगानी कैसे सुहानी?
इनके अतिरिक्त अनेक उपभेद भी हो सकते हैं। हिंदी छंद शास्त्र जितना व्यवस्थित और व्यापक है, उतना अन्य किसी भाषा का छंद शास्त्र नहीं है।
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