कुल पेज दृश्य

सोमवार, 3 अगस्त 2020

विमर्श ; अल्फ़ाज़ या अल्फ़ाज़ों ?

विमर्श ; अल्फ़ाज़ या अल्फ़ाज़ों ?

A. In colloquial, spoken Urdu?

Yes, Alfazon could be used, albeit I’ve never really heard it being used that way.

In the literary, formal Urdu used in law books/biographies, etc, Alfaaz is the plural for Lafz.

ألفاظ is plural for لفظ.

As evinced from the last letter in the word (Zoay exists only in words of Arabic/Semitic origin), this is an Arabic word, and Arabic has a very irregular method of turning words to plural. This is unlike Farsi, or Urdu, where a -An/-Ha or -on pluralizes a word (respectively).

A common error made is the word “Zan”. This is the Farsi word for “Woman”.

Its plural is Zanan- Women (-An used as it is a human).

In Hindi/Urdu, “Women” are sometimes called ZananiyaaN/JananiyaaN*, which is a double plural.

JananiyaaN is pronounced with a “J” sound, as pure Hindi lacks a “Z” sound.
*
प्लैट्स शब्दकोश

الفاظ alfāẕ
A الفاظ alfāẕ s.m. pl. (of لفظ lafẕ), Words, articulate sounds, terms; technical terms.
*
https://www.bsarkari.com
अल्फाज- संज्ञा पुलिंग [अरबी लफ्ज का बहुव०] वाक्य । शब्द समूह ।
*
YourQuote

सही शब्दों का वाक्य-प्रयोग-

'हालातों' गलत, सही है 'हालात' (हालत का बहुवचन)

'जज़्बातों' गलत, सही है 'जज़्बात' (जज़्बा या भावना का बहुवचन)

'अल्फ़ाजों' गलत, सही है जगह 'अलफ़ाज़' (लफ्ज़ या शब्द का बहुवचन)
*

संकलित काव्य पंक्तियाँ :

"खुशियाँ बढ़ाने आये हैं तो अपने अच्छे हालात ही बताना,
अपने अच्छे जज़्बात को अच्छे अल्फ़ाज़ से भी फैलाना!"
*
शायद इश्क़ अब उतरा रहा है सर से
मुझे अल्फ़ाज़ नहीं मिलते शायरी के लिए
*
कागज़ पर गम को उतारने के अंदाज़ ना होते
मर ही गए होते अगर शायरी के अल्फ़ाज़ ना होते
*
अब ये न पूछना कि ये अल्फ़ाज़ कहाँ से लाता हूँ
कुछ सुनता हूँ दर्द दूसरों के कुछ अपना हाल सुनाता हूँ
*
आँसू मेरे देख के क्यों परेशान है ऐ दोस्त!
ये तो वो अल्फ़ाज़ हैं जो जुबां तक न आ सके
*
मैं उन पन्नों में अहसास लिखते रहा
वो उन पन्नों में अल्फ़ाज़ पढ़ते रहे
*
मेरी शायरी का असर उन पर हो भी तो कैसे हो
के मैं अहसास लिखता हूँ वो अल्फ़ाज़ पढ़ते हैं
*
जब अलफ़ाज़ पन्नो पर शोर करने लगे
समझ लेना सन्नाटे बढ़ गए हैं।
*
सभी तारीफ करते हैं मेरे तहरीर की लेकिन
कभी कोई नहीं सुनता मेरे अल्फ़ाज़ की सिसकियाँ
*
तुम्हे सोचा तो हर सोच से खुशबू आयी
तुम्हे लिखा तो हर अल्फ़ाज़ महकता पाया
*
अल्फ़ाज़ गिरा देते हैं जज्बात की कीमत
हर बात को अल्फ़ाज़ में तोला न करो
*
रुकते नहीं हैं मेरी आँखों से आंसू
मैं जब भी उसकी याद में अल्फ़ाज़ लिखता हूँ
*
मैं अल्फ़ाज़ हूँ तेरी हर बात समझता हूँ
मैं एहसास हूँ तेरे जज़्बात समझता हूँ
*
खता कुछ नहीं, बस प्यार किया है
उनका प्यार याद आता है, हर अल्फ़ाज़ के साथ
*
दिल चीर जाते हैं… ये अल्फ़ाज़ उनके
वो जब कहते हैं हम कभी एक नहीं हो सकते
*
बिखरे पड़े हैं हर्फ कई तू समेट कर इन्हे अल्फ़ाज़ कर दे
जोड़ दे बिखरे पन्ने को मेरी जिंदगी को तू किताब कर दे
*
मैं ख़ामोशी तेरे मन की, तू अनकहा अल्फ़ाज़ मेरा
मैं एक उलझा लम्हा, तू रूठा हुआ हालात मेरा
*
यहाँ अल्फ़ाज़ की तलाश में न आया करो यारो
हम तो बस एहसास लिखते हैं, महसूस किया कीजिये
*
खत्म हो गयी कहानी बस कुछ अलफाज बाकी हैं
एक अधूरे इश्क की एक मुक़्क़मल सी याद बाकी है
*
हां… याद आया उसका आखरी अलफ़ाज़ यही था
जी सको तो जी लेना, लेकिन मर जाओ तो बेहतर है
*
रुतबा तो खामोशियों का होता है मेरे दोस्त
अलफ़ाज़ तो बदल जाते है लोगों को देखकर
*
और यह भी
हम अल्फाजो से खेलते रह गए
और वो दिल से खेल के चली गयी।
*
सिमट गई मेरी गजल भी चंद अल्फ़ाज़ों में
जब उसने कहा मोहब्बत तो है पर तुमसे नहीं
*
निवेदन : विमर्श केवल शब्द पर है, किसी रचनाकार पर नहीं। स्वतंत्र देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सबको है। अंतरजाल पर सही-गलत सब तरह की जानकारी है। कौन किस पर भरोसा करे यह उस पर निर्भर है। मुझे ऐसा लगता है कि परंपरा से बहुवचन 'अल्फ़ाज़' ही है, अपनी सुविधा के लिए कुछ रचनाकार 'अल्फ़ाज़ों' का प्रयोग कर रहे हैं जो भाषा शास्त्र की दृष्टि से सही नहीं है तथापि रचनाकार अपनी सृष्टि का ब्रह्मा है, मन की मौज में लीक और नियमों को तोड़ता-छोड़ता है उसे पाठक और समीक्षक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देनी होगी। साहित्यिक चर्चाओं को व्यक्तिगत आक्षेप नहीं समझा जाना चाहिए। जिन्हें ऐसे लगता हो कि उनका लिखा 'अंतिम सत्य' है वे रचना के आरम्भ में ही लिख दें 'विमर्श हेतु नहीं' ताकि पाठक उनके चाहे अनुसार केवल प्रशंसा की टीप अंकित करें।

***

कोई टिप्पणी नहीं: