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मंगलवार, 4 अगस्त 2020

दोहा सलिला

प्रसंग - 
कजलिया, कजलैंया, भुजरिया पर्व  
दोहा सलिला
*
मनोरमा है कजलिया, सलिलज हरित नवास
धरा पुनीता दे फसल, हँसे बबीता श्वास
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सलिल स्नेह को स्नेह ही, स्नेह सहित उपहार
दें-लें नित बढ़ता रहे, करें विहँस सत्कार
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धरती माँ धरती सदा, हँस धीरज संतोष 
क्या पाया सोचे नहीं, चुप दे घटे न कोष
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उगा कजलिया फसल का, करिए खुद अनुमान 
श्रम का फल क्या मिलेगा, जान कीजिए दान
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हरित-पीत शुभ कजलियाँ, धूप-छाँव ज्यों संग
सुख-दुख सम स्वीकारिए, नित्य नहाएँ गंग
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तरुण स्वप्न देखे पथिक, कर कर मधुर प्रयास
स्नेह सलिल सिंचन सतत, करे पूर्ण शुभ आस
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रक्षाबंधन कजलियाँ, संगी भैया दूज
सामाजिक सद्भाव के, पर्व मना प्रभु पूज
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कृषि मौसम पर्यावरण, सामाजिक सहकार
त्यौहारों का मूल है, मना करें साकार 
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भेदभाव तज वर सकें, समरसता हम साथ
यही सार त्यौहार का, साथ रखें पग-हाथ
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शब्द कजलियाँ लीजिए, दें हँस प्यार-दुलार 
बड़े प्रणति आशीष लघु, ग्रहण करें साभार 
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हिलमिल कर हम मनाएँ, कजलैंया हर साल 
संजीवित हों स्नेह से, साँसें मालामाल
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संजीव 
4-8-2020