दो मुक्तक
नेह नर्मदा में अवगाहो, तन-मन निर्मल हो जाएगा।
रोम-रोम पुलकित होगा प्रिय!, अपनेपन की जय गाएगा।।
हर अभिलाषा क्षिप्रा होगी, कुंभ लगेगा संकल्पों का-
कोशिश का जनगण तट आकर, फल पा-देकर तर जाएगा।।
७-६-२०१६
देह दीवानी दुनिया सारी, नेह निभाना तनिक न आया।
गेह बसाना सीख न पाई, मकां बनाना ही मन भाया।।
पाकर खोया, खोकर पाया, गड़बड़ सब मीजान हो गया-
रिश्ता- नाता नहीं निभाया, नाता-रिश्ता तुरत भुनाया।।
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