तसलीस गीतिका : आचार्य संजीव 'सलिल'
सूरज
*
बिना नागा निकलता है सूरज.
कभी आलस नहीं करते देखा..
तभी पाता सफलता है सूरज...
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सुबह खिड़की से झांकता सूरज.
कह रहा तंम को जीत लूँगा मैं..
कम नहीं ख़ुद को आंकता सूरज...
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उजाला सबको दे रहा सूरज.
कोई अपना न पराया कोई..
दुआएं सबकी ले रहा सूरज...
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