एक रचना-
अपने सपने कहाँ खो गये?
*
तुमने देखे,
मैंने देखे,
हमने देखे।
मिल प्रयास कर
कभी रुदन कर
कभी हास कर।
जाने-अनजाने, मन ही मन, चुप रह लेखे।
परती धरती में भी
आशा बीज बो गये।
*
तुमने खोया,
मैंने खोया ,
हमने खोया।
कभी मिलन का,
कभी विरह का,
कभी सुलह का।
धूप-छाँव में, नगर-गाँव में पाया मौक़ा।
अंकुर-पल्लव ऊगे
बढ़कर वृक्ष हो गये।
*
तुमने पाया,
मैंने पाया,
हमने पाया।
एक दूजे में,
एक दूजे कोको,
गले लगाया।
हर बाधा-संकट को, जीता साथ-साथ रह।
पुष्पित-फलित हुए तो
हम ही विवश हो गये।
अपने सपने कहाँ खो गये?
*
तुमने देखे,
मैंने देखे,
हमने देखे।
मिल प्रयास कर
कभी रुदन कर
कभी हास कर।
जाने-अनजाने, मन ही मन, चुप रह लेखे।
परती धरती में भी
आशा बीज बो गये।
*
तुमने खोया,
मैंने खोया ,
हमने खोया।
कभी मिलन का,
कभी विरह का,
कभी सुलह का।
धूप-छाँव में, नगर-गाँव में पाया मौक़ा।
अंकुर-पल्लव ऊगे
बढ़कर वृक्ष हो गये।
*
तुमने पाया,
मैंने पाया,
हमने पाया।
एक दूजे में,
एक दूजे कोको,
गले लगाया।
हर बाधा-संकट को, जीता साथ-साथ रह।
पुष्पित-फलित हुए तो
हम ही विवश हो गये।
५.४.२०१६
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