सामयिक दोहे
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वादों को जुमला कहें, जुमले बिसरा चौंक
धूल आज कल झौंकते, आँखों में वे भौंक
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देशभक्ति के नाम पर, सेना का उपयोग
हाय! सियासत कर रही, रोको बढ़े न रोग
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जो मुखिया उसको नहीं, उचित रखे मन बैर
है सबका सबके लिए, माँगे सबकी खैर
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इसने उसकी बात की, उसने इसकी बात
बात न कर्म करते रहे दोनों ही आघात
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मुखिया जो परिवार का, वही करे यदि भेद
उसकी गलती के लिए, कौन करेगा खेद?
सामयिक सोरठे
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एक न अगर विपक्ष, तब समझ सूपड़ा साफ़
सत्ताधारी दक्ष, पटक-कुचल देगा सम्हल
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दली जा रही दाल, छाती छप्पन इंच पर
बिगड़ रहे हैं हाल, हार सन्निकट देखकर
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कहिए जिनपिंग संग, झूला झूले क्या मिला?
दावत खाने आप, गए पाक हारा किला
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बजा रहा है बीन, पाकिस्तानी आजकल
भूल गया है चीन, डँसता सर्प न छोड़ता
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नष्ट हुआ शिवराज, घोटाले नव नित्य कर
खोज रहा है ताज, जुमलेबाजी कर नयी
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उनकी है यह चाह, हो विपक्ष बाकी नहीं
तज देंगे वह राह, जहाँ सुरा-साकी नहीं?
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उसके जैसा दीन, दुनिया में कोई नहीं।
भ्रमवश वह है चीन महाशक्ति कहते जिसे।।
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दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
गुरुवार, 14 मार्च 2019
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