यमकीय दोहे
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संगसार वे कर रहे, होकर निष्ठुर क्रूर
संग सार हम गह रहे, बरस रहा है नूर
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काया भीतर वह बसा, बाहर पूजें आप?
चित्रगुप्त का चित्र है गुप्त, दिखाना पाप.
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हर अपात्र भी पात्र हो, सच देखें ज्यों सूर
संगति में घनश्याम की, हो कायर भी शूर
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तुनक ठुनक कर यमक ने, जब दिखलाया रंग
अमन बिखेरे चमन में, यमन न हो बेरंग
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बेल न बेलन जब बनें, हाथों का हथियार
झाड न झाड़ू तब चले, तज निज शस्त्रागार
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क्यों हरकत नापाक तज, पाक न होता पाक
उलझ, मात खा कटाता, बार-बार निज नाक
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जो भूलें मर्याद वे, कभी न आते याद
जो मर्यादित हो जियें, वे आते मर-याद
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