मुख पुस्तक गोष्ठी
कवि गोष्ठियों और मुशायरों में कविता के माध्यम से तथा खेतों में लोकगीतों के माध्यम से काव्यात्मक प्रश्न उत्तर अब कम ही सुनने मिलते हैं. आज फेस बुक पर ऐसा एक प्रसंग अनायास ही बन गया. आभार लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला तथा पंडिताईन आशा हिंदुस्तानी का. इस रोचक प्रसंग का आनंद आप भी लें. यह प्रसंग मेरे पूर्व प्रस्तुत दोहों पर प्रतिक्रियात्मक टिप्पणी के रूप में सामने आया.
लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला वाह ! बहुत सुंदर आदरणीय -
पगले पग ले बढ़ जरा, ले मन्जिल को जीत,
कहे न पगला फिर तुम्हें, यही जगत की रीत ।
पगले पग ले बढ़ जरा, ले मन्जिल को जीत,
कहे न पगला फिर तुम्हें, यही जगत की रीत ।
Sanjiv Verma 'salil' 'पा लागू' कर ले 'सलिल', मिलता तभी प्रसाद
पंडिताईन आशा हिंदुस्तानी गंगा उल्टी कब बही, कब दिन में हो रात।
बड़े जहाँ आशीष दें, बने वहीं पर बात।।
बड़े जहाँ आशीष दें, बने वहीं पर बात।।
पंडिताईन आशा हिंदुस्तानी- लाख नेह बहु से मिले, नहीं सुता सा मान
बात बने संजीव सर, बेटी लो अब जान
बात बने संजीव सर, बेटी लो अब जान
पंडिताईन आशा हिंदुस्तानी दोहों में बतियाय है, दोहों में ही खाय।
दोहा दोहा डग भरे, दोहों में मुस्काय
दोहा दोहा डग भरे, दोहों में मुस्काय
पंडिताईन आशा हिंदुस्तानी मरते छंदों के लिये, दोहा है संजीव।
जहाँ अँधेरा ज्ञान का, बालो दोहा दीव
जहाँ अँधेरा ज्ञान का, बालो दोहा दीव
Sanjiv Verma 'salil' दोहा कोमल कली है, शुभ्र ज्योत्सना पांति
छंद पखेरू अन्य यह, राजहंस की भांति
छंद पखेरू अन्य यह, राजहंस की भांति
पंडिताईन आशा हिंदुस्तानी कविता के श्रृंगार का शीश फूल है छंद।
इसके फूलों की महक, भरती मन आनंद
इसके फूलों की महक, भरती मन आनंद
लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला छ्न्द प्रभावी सन्त के, देते आँखे खोल,
दिखा सके जो आइना, सुने उन्ही के बोल ।
दिखा सके जो आइना, सुने उन्ही के बोल ।
Sanjiv Verma 'salil' रामानुज सम लक्ष को, जो लेता है साध
रामा-राम भजे वही, लक्ष्मण सम निर्बाध
रामा-राम भजे वही, लक्ष्मण सम निर्बाध
दिनेश चन्द्र गुप्ता रविकर कांटे छिपाए/ कलरव करेंगे / उगेगा के प्रयोग पर असमंजस है आदरणीय
अवनीश तिवारी सुंदर । एक शंका है पहला दोहा कुछ खटका अंत मे गुरु लघु नही है ?
Sanjiv Verma 'salil' पहले दोहे के सम चरणों के अंत में गुरु लघु ही है. मात्रा गणना के नियम ठीक से समझें।
Ghanshyam Maithil Amrit मात्रा "भार" से मुक्त एक विचार
ग्राम "ग्राम" अब न रहे,हुए शहर सब सेर,
जंगल में जंगल नहीं, कहां जाएँ अब शेर
ग्राम "ग्राम" अब न रहे,हुए शहर सब सेर,
जंगल में जंगल नहीं, कहां जाएँ अब शेर
Sanjiv Verma 'salil' ग्राम नहीं अब आम हैं, शहर नहीं हैं ख़ास
सवा सेर हैं स्यार अब, शेर खा रहे घास
लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला आदरणीय -
बात बात से निकलती/ बात निकलती बात से
Sanjiv Verma 'salil' लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला
बात बात से निकलती, बात न करती बात
sanjiv
प्रात रात से निकलता, रात न बनती प्रात
घनश्याम मैथिल 'अमृत'
ग्राम नहीं अब "ग्राम" हैं, हुए शहर सब सेर,
जंगल में जंगल नहीं, कहां जाएँ अब शेर??
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संजीव
ग्राम नहीं अब आम हैं, शहर नहीं हैं ख़ास
सवा सेर हैं स्यार अब, शेर खा रहे घास
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