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शनिवार, 1 अप्रैल 2017

durga saptshati kilak stotra

ॐ 
श्री दुर्गा शप्तसती कीलक स्तोत्र
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ॐ मंत्र कीलक शिव ऋषि ने, छंद अनुष्टुप में रच गाया। 
प्रमुदित देव महाशारद ने, श्री जगदंबा हेतु रचाया।।    
सप्तशती के पाठ-जाप सँग, हो विनियोग मिले फल उत्तम। 
ॐ चण्डिका देवी नमन शत, मारकण्डे' ऋषि ने गुंजाया।।
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देह विशुद्ध ज्ञान है जिनकी, तीनों वेद नेत्र हैं जिनके
उन शिव जी का शत-शत वंदन, मुकुट शीश पर अर्ध चन्द्र है।१। 
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मन्त्र-सिद्धि में बाधा कीलक, अभिकीलन कर करें निवारण।                                                           
 कुशल-क्षेम हित सप्तशती को, जान करें नित जप-पारायण।२।
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अन्य मंत्र-जाप से भी होता, उच्चाटन-कल्याण किंतु जो 
देवी पूजन सप्तशती से, करते देवी उन्हें सिद्ध हो।३।
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अन्य मंत्र स्तोत्रौषधि  की, उन्हें नहीं कुछ आवश्यकता है। 
बिना अन्य जप, मंत्र-यंत्र के, सब अभिचारक कर्म सिद्ध हों।४।  
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अन्य मंत्र भी फलदायी पर, भक्त-मनों में रहे न शंका। 
सप्तशती ही नियत समय में, उत्तम फल दे बजता डंका।५।
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महादेव ने सप्तशती को गुप्त किया, थे पुण्य अनश्वर।  
अन्य मंत्र-जप-पुण्य मिटे पर, सप्तशती के फल थे अक्षर।६।
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अन्य स्तोत्र का जपकर्ता भी, करे पाठ यदि सप्तशती का। 
हो उसका कल्याण सर्वदा, किंचितमात्र न इसमें शंका।७।
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कृष्ण-पक्ष की चौथ-अष्टमी, पूज भगवती कर सब अर्पण। 
करें प्रार्थना ले प्रसाद अन्यथा विफल जप बिना समर्पण।८।  
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निष्कीलन, स्तोत्र पाठ कर उच्च स्वरों में सिद्धि मिले हर। 
देव-गण, गंधर्व हो सके भक्त, न उसको हो कोंचित डर।९। 
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हो न सके अपमृत्यु कभी भी, जग में विचरण करे अभय हो। 
अंत समय में देह त्यागकर, मुक्ति वरण करता ही है वो।१०।
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कीलन-निष्कीलन जाने बिन, स्तोत्र-पाठ से हो अनिष्ट भी। 
ग्यानी जन कीलन-निष्कीलन, जान पाठ करते विधिवत ही।११। 
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नारीगण सौभाग्य पा रहीं, जो वह देवी का प्रसाद है। 
नित्य स्तोत्र का पाठ करे जो पाती रहे प्रसाद सर्वदा।१२।
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पाठ मंद स्वर में करते जो, पाते फल-परिणाम स्वल्प ही
पूर्ण सिद्धि-फल मिलता तब ही, सस्वर पाठ करें जब खुद ही।१३।  
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दें प्रसाद-सौभाग्य सम्पदा, सुख-सरोगी, मोक्ष जगदंबा
अरि नाशें जो उनकी स्तुति, क्यों न करें नित पूजें अंबा।१४। 
३१-३--२०१७ 
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