ॐ
।। अथ वेदोक्त रात्रि सूक्तं ।।
।। वेदोक्त रात्रि सूक्त।।
*
ॐ रात्री व्यख्यदायती पुरुत्रा देव्यक्षभि:। विश्र्वा अधिश्रियोधित ।१।
। ॐ रात्रि! विश्रांतिदायिनी जगत आश्रित। सब कर्मों को देखें, फल दें।१।
*
ओर्वप्रा अमर्त्या निवतो देव्युद्वत:। ज्योतिषा बाधते तम:।२।
।। देवी अमरा व्याप विश्व में, नष्ट करें अज्ञान तिमिर को ज्ञान ज्योति से ।२।
*
निरु स्वसारमस्कृतोषसं देव्येति। अपेदु हासते तम: ।३।
। पराशक्ति रूपा रजनी प्रगटा दें ऊषा, नष्ट अविद्या तिमिर स्वत्: हो। ३।
*
सा नो अद्य यस्या वयं नि ते यामन्नाविक्ष्महि। वृक्षे न वसतिं वय:।४।
।रात्रि देवी पधारें हों मुदित , सो सकें हम खग सदृश निज घोंसले में।४।
*
नि ग्रामासो अविक्षत नि पद्वन्तो नि पक्षिण:। नि श्येना सश्चिदर्थिन:।५।
। सोते सुख से ग्राम्य जन, पशु, जीव-जंतु,खग, रात्रि अंक में।५।
*
यावया वृक्यं वृकं यवय स्तेनमूर्म्ये। अथा न: सुतरा भव। ६।
।रात्रि देवी! पाप वृक वासना वृकी को, दूर कर सुखदायिनी हो।६।
*
उप मा पेपिशत्तम: कृष्णं व्यक्तमस्थित। उष ऋणेव् यातय। ७।
।घेरे अज्ञान तिमिर ज्ञान दे कर दूर, उषा! उऋण करतीं मुझे दे धन। ७।
*
उप ते गा इवाकरं वृणीष्व दुहितर्दिव:। रात्रि स्तोमं न जिग्युषे। ८।
। पयप्रदा गौ सदृश रजनी!, व्योमकन्या!! हविष्य ले लो।३।
२९.३.२०२०
***
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें