एक चर्चा:
राग और रागी जातीय छंद
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राग उद्देश्यपूर्ण जीवन से लगाव का सूचक है, वह अनुराग और विराग दोनों में है। संगीत में मुख्य छ: राग मान्य हैं। इन रागों को साध लेनेवाला 'षटरागी' जनसामान्य को 'खटरागी' प्रतीत हो क्या आश्चर्य? छ: रागों के आधार पर छ: मात्राओं के छंद को 'रागी' छंद' कहा गया है।
राग उद्देश्यपूर्ण जीवन से लगाव का सूचक है, वह अनुराग और विराग दोनों में है। संगीत में मुख्य छ: राग मान्य हैं। इन रागों को साध लेनेवाला 'षटरागी' जनसामान्य को 'खटरागी' प्रतीत हो क्या आश्चर्य? छ: रागों के आधार पर छ: मात्राओं के छंद को 'रागी' छंद' कहा गया है।
रागों के वर्गीकरण की परंपरागत पद्धति (१९वीं सदी तक) के अनुसार हर एक राग का परिवार है। विविध मतों के अनुसार मुख्य छः राग हैं पर उनके नामों तथा उनके पारिवारिक सदस्यों की संख्या आदि में अन्तर है। इस पद्धति को मानने वालों के चार मत हैं।
१. शिव मत इसके अनुसार छः राग माने जाते थे, प्रत्येक की छः-छः रागिनियाँ तथा आठ पुत्र हैं। इस मत में मान्य छः राग- १. राग भैरव, २. राग श्री, ३. राग मेघ, ४. राग बसंत, ५. राग पंचम, ६. राग नट नारायण।
कल्लिनाथ मत- इसके वही छः राग माने गए हैं जो शिव मत के हैं, पर रागिनियाँ व पुत्र-रागों में अन्तर है।
भरत मत- के अनुसार छः राग, प्रत्येक की पाँच-पाँच रागिनियाँ आठ पुत्र-राग तथा आठ वधू राग हैं। इस मत में मान्य छः राग निम्नलिखित हैं- १. राग भैरव, २. राग मालकोश, ३. राग मेघ, ४. राग दीपक, ५. राग श्री, ६. राग हिंडोल।
हनुमान मत- इस मत के अनुसार भी वही छः राग हैं जो 'भरत मत के हैं, परन्तु इनकी रागिनियाँ, पुत्र-रागों तथा पुत्र-वधुओं में अन्तर है।
ये चारों पद्धति १८१३ ई. तक चलीं तत्पश्चात पं॰ भातखंडे जी ने 'थाट राग' पद्धति का प्रचार व प्रसार किया।
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