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शुक्रवार, 28 अप्रैल 2017

doha

दोहा दुनिया 
बात से बात 
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बात बात से निकलती, करती अर्थ-अनर्थ 
अपनी-अपनी दृष्टि है, क्या सार्थक क्या व्यर्थ? 
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'सर! हद सरहद की कहाँ?, कैसे सकते जान? 
सर! गम है किस बात का, सरगम से अनजान 
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'रमा रहा मन रमा में, बिसरे राम-रमेश.
सब चाहें गौरी मिले, हों सँग नहीं महेश.

राम नाम की चाह में, चाह राम की नांय.
काम राम की आड़ में, संतों को भटकाय..
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'है सराह में, वाह में, आह छिपी- यह देख.
चाह कहाँ कितनी रही?, करले इसका लेख..
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'गुरु कहना तो ठीक है, कहें न गुरु घंटाल.
वरना भास्कर 'सलिल' में, डूब दिखेगा लाल..' 
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'लाजवाब में भी मिला, मुझको छिपा जवाब.
जैसे काँटे छिपाए, सुन्दर लगे गुलाब'.
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'डूबेगा तो उगेगा, भास्कर ले नव भोर.
पंछी कलरव करेंगे, मनुज मचाए शोर..'
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'एक-एक कर बढ़ चलें, पग लें मंजिल जीत.
बाधा माने हार जग, गाये जय के गीत.'.
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'कौन कहाँ प्रस्तुत हुआ?, और अप्रस्तुत कौन?
जब भी पूछे प्रश्न मन, उत्तर पाया मौन.'.
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तनखा ही तन खा रही, मन को बना गुलाम. 
श्रम करता गम कम 'सलिल', करो काम निष्काम.
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'पा लागू' कर ले 'सलिल', मिलता तभी प्रसाद
पंडितैन जिस पर सदय, वही रहे आबाद
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रामानुज सम लक्ष को, जो लेता है साध
रामा-राम भजे वही, लक्ष्मण सम निर्बाध  
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इन्द्रप्रस्थ पर कर रहे, देखें राज्य नरेंद्र
यह उलटी गंगा बही, बेघर हुए सुरेन्द्र
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आशा के पग छुए तो, बनते बिगड़े काम
नमन लक्ष्मण को करो, तुरत सदय हों राम
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माँ भगिनी भाभी सखी, सुता सभी तव रूप
जिसके सर पर हाथ हो, वह हो जाता भूप
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बड़ा राम से भी अधिक, रहा राम का दास
कहा आप श्री राम ने, लछमन सबसे ख़ास
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दोहा नैना-दृष्टि हैं, दोहा घूंघट आड़
दोहा बगिया भाव की, दोहा काँटा-बाड़
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दोहा आशा-रूप है, दोहा भाषा-भाव
दोहा बिम्ब प्रतीक है, मेटे सकल अभाव
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बेंदा नथ करधन नवल, बिछिया पायल हार
दोहा चूड़ी मुद्रिका, काव्य कामिनी धार
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पौ फट ऊषा आ गई, हरने तम अंधियार
जहाँ स्नेह सलिला बहे, कैसे हो तकरार?
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जीते हिंदी के लिए, मरें छंद पर नित्य
सुषमा सौरभ छटाएँ, अगणित अमर अनित्य
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भोर दुपहरी साँझ भी, रात चाँदनी चंद
नभ सूरज दोहा हुआ, अक्षय ज्योति अमंद
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धारक-तारक छंद है, दोहा अमृत धार
है अनंत इसकी छटा, 'सलिल' न पारावार
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दोहा कोमल कली है, शुभ्र ज्योत्सना पांति
छंद पखेरू अन्य यह, राजहंस की भांति
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जुही चमेली मोगरा, चम्पा हरसिंगार
तेइस दोहा-बाग़ है, गंधों का संसार
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हिन्दुस्तानी सुरभि है, भारतीय परिधान
दोहा नव आशा 'सलिल', आन-बान सह शान
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दोहा दुनियादार है, दोहा है दिलदार
घाट नाव पतवार है, दोहा ही मझधार
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शक-सेना संहार कर, दे अनंत विश्वास
श्री वास्तव में लिए है, खरे मूल्य सह हास
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ज्यों भोजन में जल रहे, दोहा छंदों बीच
भेद-भाव करता नहीं, स्नेह-सलिल दे सींच
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छंदों की महिमा अमित, मनुज न सकता जान,
'सलिल' अँजुरी-घूँट ले, नित्य करे रस-पान
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पग प्रक्षालन कर 'सलिल', छंदों का सौभाग्य
जन्म-जन्म कर साधना, माँग नहीं वैराग्य
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