एक बुंदेली लोक कथा
बैठे तो उठै नईं, परै तो टरै नईं
*
१०१. भौत दिना भए, अपने जा बुन्देलखण्ड मा चन्देलन की तूती बोलत हती।
१०२. चन्देलन के राज में परजा सुख-चैन की बाँसुरी बजात रही।
१०३. सुनों है के सेर और बकरिया एकई घाट पै पानी पियर रए।
१०४. राजा की मरजी कें बिना न चिरीया चीकत थी, ना बाज पर फरफरात तो।
१०५. सो ऊ राजा के एक बिटिया हती।
१०६. भौतऊ खूबसूरत, मनो पूनम कैसो चन्दा।
१०७.
एक रचना
*
वतन परस्तों से शिकवा किसी को थोड़ी है
गैर मुल्कों की हिमायत ही लत निगोड़ी है
*
भाईचारे के बीच मजहबी दखल क्यों हो?
मनमुटावों का हल, नाहक तलाक थोड़ी है
*
साथ दहशत का न दोगे, अमन बचाओगे
आज तक पाली है, उम्मीद नहीं छोड़ी है
*
गैर मुल्कों की वफादारी निभानेवालों
तुम्हारे बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है
*
है दुश्मनों से तुम्हें आज भी जो हमदर्दी
तो ये भी जान लो, तुमने ही आस तोड़ी है
*
खुदा न माफ़ करेगा, मिलेगी दोजख ही
वतनपरस्ती अगर शेष नहीं थोड़ी है
*
जो है गैरों का सगा उसकी वफा बेमानी
हाथ के पत्थरों में आसमान थोड़ी है
*
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वतन परस्तों से शिकवा किसी को थोड़ी है
गैर मुल्कों की हिमायत ही लत निगोड़ी है
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भाईचारे के बीच मजहबी दखल क्यों हो?
मनमुटावों का हल, नाहक तलाक थोड़ी है
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साथ दहशत का न दोगे, अमन बचाओगे
आज तक पाली है, उम्मीद नहीं छोड़ी है
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गैर मुल्कों की वफादारी निभानेवालों
तुम्हारे बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है
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है दुश्मनों से तुम्हें आज भी जो हमदर्दी
तो ये भी जान लो, तुमने ही आस तोड़ी है
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खुदा न माफ़ करेगा, मिलेगी दोजख ही
वतनपरस्ती अगर शेष नहीं थोड़ी है
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जो है गैरों का सगा उसकी वफा बेमानी
हाथ के पत्थरों में आसमान थोड़ी है
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